आध्यात्मिकता में जीते हैं जनजातीय समुदाय - कपिल तिवारी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 9 जनवरी 2021

आध्यात्मिकता में जीते हैं जनजातीय समुदाय - कपिल तिवारी

  • दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान
भोपाल - हम एक ऐसे जगत में प्रवेश कर रहे हैं जिसके तर्क बहुत कम होते हैं दिखता बहुत ज्यादा है  तर्क में कम आस्था में ज्यादा। जिस मनोविश्व की रचना से देवता प्रकट होते हैं उनको समझने के लिए उसी मनोविश्व में प्रवेश करना पड़ता है, वह समाजशास्त्र के भरोसे नहीं जाना जा सकता लेकिन एक अजीब सा दुर्भाग्य रहा है बहुत से विषयों के साथ की  सांस्कृतिक विषयों की दिशा में भी भारत यूरोप की दृष्टि से देखता आया है। यूरोप के नेतृत्व में शास्त्र समाजशास्त्र और उसी की माइथोलॉजी के भरोसे चला है उसने स्वयं कोई विचार करने की कोशिश नहीं की यह बात आज राजधानी के जनजातीय संग्रहालय में दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ कार्यक्रम में बीज वक्तव्य देते हुए अध्येता डॉ कपिल तिवारी ने कही। उल्लेखनीय है की दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के द्वारा जनजातीय धार्मिक परंपरा और देवलोक विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है जिसका शुभारंभ आज मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति व पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर संस्कृति विभाग के संचालक  श्री आदित्य कुमार त्रिपाठी आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के निदेशक डॉ धर्मेंद्र पारे डॉ कपिल तिवारी  एवं वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रामचंद्र खराड़ी के द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया।


नगरीय जीवन से आगे है जनजातीय समुदाय - सुश्री उषा ठाकुर

मंत्री ठाकुर ने कहा कि जनजाति समाज नगरीय समाज से कई विषयों में आगे है जनजाति समाज का आतिथ्य मन को गदगद कर देने वाला होता है जब जनजाति समाज के किसी बंधु के यहां कोई अतिथि आता है तो वह अतिथि को अपने कमरे में सुला कर खुद खुले आसमान के नीचे सो जाते हैं यह आसान नहीं होता । जनजाति समाज अतिसंवेदनशील अतीत्यागी और अनुशासन प्रिय समाज है। जनजाति समाज की धार्मिक परंपरा और देवलोक विषय पर आयोजित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी अपने आप में एक अद्भुत आयोजन है। कार्यक्रम में बीज वक्तव्य रखते हुए डॉ कपिल तिवारी ने कहा जनजाति समाज ऐसा अनुशासन प्रिय समाज है जो सब कुछ अपने आप करता है वह किसी पर निर्भर नहीं रहता नगरीय समाज अपनी छोटी-छोटी आवश्यकता ओं के लिए सरकारों पर निर्भर रहता है किंतु जनजाति समाज की सरकारों व किसी अन्य से कोई अपेक्षा नहीं होती । श्री तिवारी ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जो लोग धर्म में नहीं धार्मिकता में थे राज्य में नहीं एक अनुशासन में थे उनको तो हमने पिछड़ा कहा और हम जो रोज रोज राज्य के गुलाम हो रहे थे हर छोटी चीज के लिए हम राज्य की ओर आशा भरी निगाहों से देखते हैं हम कथित रूप से अगले कहलाने लगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्री राम चन्द्र खराडे ने कहा कि देश में अभी तक जनजातियों के बारे में वही पढ़ाया जाता था जो विदेशी लेखक लिख कर गए या भारत की किसी ऐसी जगह पर किसी  कही सुनी बातों पर किताबें लिखकर हमें जनजाति समाज के बारे में बताया जाता था।  हमारी जनजाति संस्कृति को कई बार अंग्रेजों का मिशनरियों के द्वारा नष्ट करने का प्रयास किया गया लेकिन जनजाति समाज के  लोग अपने मूल और अपनी संस्कृति से नहीं हटे।


जनजातीय समुदाय को भटकाने का हो रहा प्रयास - मनोज श्रीवास्तव

अकादमिक सत्र के मुख्य वक्ता मनोज श्रीवास्तव ने उपनिवेशवाद और नव उपनिवेशवाद को समझाते हुए बताया कि किस प्रकार अंग्रेजों ने आदिवासियों और जनजातियों को हिन्दू धर्म से  भारतीय संस्कृति से अलग दिखाने का षडयंत्र किया है जो कि पूर्णतया कल्पनाओं पर आधारित है। इतना ही नहीं नव उपनिवेशवाद में आदिवासियों को हिन्दू पौराणिक का अंग बताते हुए उन्हें  असुर बताया है। वास्तविकता यह है कि जनजातीय लोग जों देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं वो हिन्दू धर्म में भी मौजूद हैं बस उनके स्वरूप में अंतर है और हम सिर्फ इस अंतर को ही नहीं बल्कि यूरोपियों की साज़िश को भी समझने की आवश्यकता है। इस सत्र में घुमंतू  जनजाति में देवलोक की संकल्पना पर गिरीश परगुणे ने अपने विचार रखे जबकि सत्र की अध्यक्षता सुरेश मिश्रा ने की। इसी कार्यक्रम में डॉ धर्मेंद्र पारे के द्वारा लिखित पुस्तक भारिया देव लोक का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम का स्वागत उद्बोधन संस्कृति विभाग के संचालक अदिति कुमार त्रिपाठी ने किया साथी डॉ धर्मेंद्र पारे ने इस पूरे विषय का विषय परिवर्तन किया। 


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