- भारत, यूएस, यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ग्रीस, मध्य पूर्व, अफ्रीका, इंडोनेशिया के न्यूज़ मीडिया में शामिल
- लॉकडाउन के अवधि में गांव में रहके किया था शोध, आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी कर रहे हैं प्रो० झा
दरभंगा (रजनीश के झा) लनामिवि के स्थानीय सीएम कॉलेज के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो० अमृत कुमार झा का शोध पत्र अंडरस्टैंडिंग कोरोनाफोबिया विश्व के दिग्गज न्यूज़ एजेंसीयो तथा पत्रिकाओं में शामिल किया गया है। इसे कोविड-19 के व्यापक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर सबसे सटीक और प्रभावी वैज्ञानिक शोध माना जा रहा है, जिससे दुनिया भर में फिर मिथिला और भारत का डंका बजा है। प्रो० झा और उनकी टीम के इसी शोध पत्र को कोरोनाफोबिया का आधार बताया गया है, जिससे कोरोना के मनोवैज्ञानिक डर और उसके लक्षण के बारे में दुनिया भर के वैज्ञानिकों तथा मानवजाति को समझने में मदद मिली है। विश्व प्रख्यात शोध प्रकाशन ऐलसेवियर के एशियन जर्नल ऑफ साइकेट्रि के दिसंबर 2020 में छपे इस शोध पत्र को अभी तक वाशिंगटन पोस्ट, सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड, ब्रिसबेन टाइम्स, मेट्रो यूके, हेल्थ, बसल, परेड, बोस्टन ग्लोब, कनाडियन टेलीविजन नेटवर्क, क्वीन, गल्फ न्यूज़, नर्सेज अफ्रीका, सीएनएन इंडोनेशिया, सिंडो न्यूज़ जो क्रमशः यूएस, यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ग्रीस, मध्य पूर्व, अफ्रीका, इंडोनेशिया देश के है, ने इस शोध पत्र को शामिल किया है। भारत में अभी तक टाइम्स ऑफ इंडिया तथा दैनिक जागरण ने इसे संदर्भित किया है। परिणामस्वरूप यह शोध पत्र ऑल्टमैट्रिक गणना, जो वैश्विक स्तर पर सोशल मीडिया तथा अन्य मीडिया में बहुचर्चित शोधों का मापन करता है, में इस साल टॉप 5% शोधों में पहले से ही शामिल हो चुका है। ज्ञातव्य हो कि यह आलेख पिछले साल से ही डब्ल्यूएचओ के कोविड-19 डेटाबेस में शामिल होते ही गूगल सर्च पर नंबर वन रहा है और वाशिंगटन स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ ने इसे अपने कोविड-19 के रोकथाम के क्रम में भी उपयोग किया था। प्रो० झा ने इस अवसर पर अपने साथी लेखकों के प्रति आभार जताया और अपने साथी शोधार्थियों से सीमित संसाधनों मे रहकर भी उत्कृष्ट शोध करने की आवाहृन की। गौरतलब है कि प्रो० झा ने लॉकडाउन के समय में अपने पैतृक गांव चतरिया (दरभंगा) में रहते हुए इस शोधपत्र को आकार देते हुए अपनी टोली के साथ मिलकर इसे अपने मंजिल तक पहुंचाया। प्रो० झा ने यह बताया की भविष्य के मद्देनजर स्थानीय लोगों के मध्य वायरस से उत्पन्न ऐसे फोबिया के प्रति जागरूकता के लिए इस शोधपत्र की मैथिली तथा हिंदी अनुवाद की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है।
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