मधुबनी : प्रलेस द्वारा कविगोष्ठी का आयोजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 22 मार्च 2021

मधुबनी : प्रलेस द्वारा कविगोष्ठी का आयोजन

kavi-goshthi-madhubani
मधुबनी (रजनीश के झा) 21 मार्च को केंद्रीय पुस्तकालय मधुबनी में सायंकाल मधुबनी ज़िला प्रगतिशील लेखक संघ(प्रलेस) द्वारा कविगोष्ठी का आयोजन कवि एवं कथाकार रामविलास साहु जी के सभापतित्व में  हुआ। कार्यक्रम का आरंभ  जहाँ प्रलेस के प्रधान ज़िला सचिव अरविन्द प्रसाद द्वारा आगत कवियों के स्वागत भाषण से हुआ; वहीं  बिहार प्रलेस एवं अखिल भारतीय प्रलेस के पूर्व महासचिव राजेन्द्र राजन जी ने उपस्थित कवियों का दूरभाष से अभिनंदन किया। डॉ. विजयशंकर पासवान जी की कविता-"लॉकडाउन" की पंक्तियों--"कोरोना का कहर देखा;लॉकडाउन में दुनिया का गाँव-शहर देखा"--ने कोरोनाकाल की भयावहता का कारुणिक दृश्य उपस्थित किया तो पंकज सत्यम जी की "वसन्त" कविता की पंक्तियों--"सूने आंगन में देखो गूंजा नवगीतों का छन्द"--ने लोगों के मन में वासन्ती उल्लास भर दिया। कवयित्री डॉ. बिभा कुमारी की "किसानिन" कविता की पंक्तियों--"मैं किसानिन; करूँगी नाज़ तेरे मुरेठे और कोठी भरे अनाज पर"--ने  भारतीय महिला किसान की, सिर पर मुरेठा बाँधे अपने पति के साथ कृषिकर्म में सहभागिता और अनाज से भरी कोठी  पर इतराने के भाव का अत्यंत मोहक दृश्य उपस्थित कर दिया। डॉ. श्रीदेवलाल कर्ण की कविता की पंक्तियाँ--"देवाधिदेव हे महादेव! हमरा सबहक सुधि कखन लेब" --ने कोरोना के प्रकोप से मुक्ति हेतु उनकी पुकार को लोगों ने रेखांकित किया। सेवानिवृत्त बैंककर्मी सुखदेव राउत जी की कविता--"एकता ठौर चाही"--ने लोगों की गृहविहीनता की पीड़ा की गहनता का कारुणिक दृश्य उपस्थित  किया। मर्यादापुरुषोत्तम  राम की महानता पर आधारित अरविन्द प्रसाद की कविता की पंक्तियाँ--"शापित नार अहल्या तारे, अनगिन विकट असुर संहारे, दुर्दम कामी रावण मारे, सीता संग ले अवध पधारे। जय हो असुरनिकन्दन जी की; कौसल्यासुत सिय के पी की"--काफी सराही गयीं।  रामविलास साहुजी की कविता --वीर सपूत-- की इन पंक्तियों--"हे  अमर शहीदो परमवीर; तुम हुए कभी भी न अधीर"--ने भारतीय सेना के जवानों के अदम्य साहस और शौर्य का बखान कर लोगों के मन में  स्वाभिमान का संचार कर दिया। श्रीदेवलाल कर्ण एवं लेखनाथ मिश्र द्वारा पढ़ी गयी कविताओं पर "तत्काल-टिप्पणी" प्रस्तुत की गयी।

कोई टिप्पणी नहीं: