पत्रकार-स्पीकर विवाद की अंतर्कथा – 1
--- वीरेंद्र यादव, स्वतंत्र पत्रकार ---
बिहार विधान सभा के अध्यक्ष हैं विजय सिन्हा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटलबिहारी वाजपेयी की विचारधारा वाली पार्टी के विधायक हैं। उन्होंने गुरुवार को मार्शलों को दिये मौखिक आदेश में कहा है कि पत्रकार वीरेंद्र यादव को विधानसभा के गलियारे में प्रवेश नहीं करने देना है। वजह क्या है, स्पीकर ही बता पायेंगे। पिछले 8 जनवरी को स्पीकर ने पत्रकारों के लिए दही-चूड़ा-खिचड़ी भोज का आयोजन किया गया था। इस मौके पर पत्रकार सम्मान के नाम पर पत्रकारों को झोला, डायरी और चादर बांटी गयी। इसी को हमने खबर बना दी। इसके बाद से स्पीकर पत्रकार वीरेंद्र यादव के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। प्रेस सलाहकार समिति की बैठक में हमारे खिलाफ आग उगलते रहे तो अपने चैंबर में भी विधायकों के सामने अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल करते रहे।हम ऐसी बातों को इग्नोर करते रहे। लेकिन जब स्पीकर ने हमारे खिलाफ मार्शल को कार्रवाई करने का निर्देश दिया तो अपने पाठकों के साथ उन परिस्थितियों को साझा करना जरूरी समझते हैं, जिन परिस्थितियों के कारण स्पीकर के निर्णय पर सवाल उठाना पड़ रहा है। यादव एक लोकतांत्रिक जाति है। लोकतंत्र की मर्यादाओं को समझते हैं और पद की गरिमा का भी ख्याल रखते हैं। लेकिन पद विपथ होने लगे तो सवाल उठाना भी जरूरी हो जाता है। स्पीकर से हमारी अंतिम मुलाकात 5 फरवरी को हुई थी। विधान सभा भवन शताब्दी समारोह के दो दिन पहले। इससे पहले हमारे खिलाफ उनका अभियान उफान पर था। इसकी सूचना भी हमें मिलती रही थी। इसके बावजूद हम स्पीकर से मिलने गये, क्योंकि शताब्दी समारोह के लिए कार्ड चाहिए था। उनके चेहरे पर गुस्सा दिख ही रहा था। हमने कार्ड का आग्रह करते हुए अपनी पत्रिका ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ की कॉपी दी। पत्रिका देखकर हेडिंग पढ़ी। शीर्षक था- अहीर-दुसाध की ‘खिचड़ी’ ने बदला सत्ता का स्वाद। इसके बाद उन्होंने अपनी नाराजगी जतायी और कहा कि ऐसे लिखना होगा हमें पत्रिका मत दीजियेगा। पिछले 5 वर्षों में हम अपने पाठकों की ऐसी नाराजगी के अभ्यस्त हो गये हैं। ठीक उसी समय चैंबर में तीन पूर्व विधायक और एक विधायक के साथ एक अन्य पत्रकार भी बैठे थे। तीन पूर्व विधायकों में एक महिला भी थीं। इसी में से एक पूर्व विधायक स्पीकर के सामने ही अपने देसी अंदाज में दूसरे पूर्व सदस्य को ‘मां-बहन’ के साथ ‘राजनीतिक’ प्रवचन सुना जा रहे थे। खैर यह उनका ‘विशेषाधिकार’ है। हम फिर अपने मुद्दे पर आये। हमने कहा कि कार्ड के लिए किसी स्टाफ को बोल देते। तो उन्होंने कहा कि कार्यालय में बात कर लीजिये। यह अलग बात है कि हमें सूचना पहले ही मिल गयी थी कि आपको कार्ड नहीं देने का आदेश है।
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