आलेख : श्रीराम भक्त हनुमान के जन्म स्थान पर विवाद चरम पर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 6 मई 2021

आलेख : श्रीराम भक्त हनुमान के जन्म स्थान पर विवाद चरम पर

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शक्ति, भक्ति, आस्था, बल, बुद्धि, ज्ञान, दैवीय शक्ति, बहादुरी, बुद्धिमत्ता, निःस्वार्थ सेवा-भावना आदि गुणों और अपना सम्पूर्ण जीवन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व माता सीता की सेवा व भक्ति में लगा देने तथा बिना किसी उद्देश्य के कभी भी अपनी शक्तियों का, अपने शौर्य का व्यर्थ प्रदर्शन नहीं करने के कारण त्रेतायुग से आज तक प्रसिद्ध श्रीराम भक्त हनुमान के जन्मस्थल को लेकर दक्षिण भारत के दो राज्यों, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के मध्य विवाद चरम पर है। संकट मोचक, बजरंगवली, पवनसुत, पवन कुमार, महावीर, बालीबिमा, मारुतसुत, अंजनिसुत, मारुति आदि नामों से भक्तों के बीच प्रसिद्ध श्रीहनुमान के जन्म स्थली को लेकर पूर्व से ही कर्नाटक और आंध्र प्रदेश दोनों ही राज्य अपने राज्य में हनुमान की जन्मस्थली होने का दावा ठोकते रहे हैं। इस नए विवाद की शुरुआत कर्नाटक के इस नए दावे पर हुई जिसमें कर्नाटक के शिवमोगा स्थित एक मठ के धर्मगुरु ने मारुतिनंदन के जन्म स्थान पर नया दावा ठोकते हुए यह कहा है कि उत्तर कन्नड़ जिले के तीर्थस्थल गोकर्ण में रामदूत हनुमान का जन्म हुआ था। कर्नाटक के शिवमोगा स्थित रामचंद्रपुर मठ के प्रमुख राघवेश्वर भारती अपने दावे के समर्थन में रामायण में उल्लिखित प्रमाण का जिक्र करते हैं कि रामायण में हनुमान सीता से समुद्र के पार गोकर्ण में अपना जन्म स्थान होने की बात बतलाते हैं। रामायण के इस प्रमाण से यह सिद्ध है कि गोकर्ण हनुमान की जन्मभूमि है और किष्किंधा स्थित अंजनाद्रि उनकी कर्मभूमि है। इस नये दावा के बाद धार्मिक और पुरातात्विक हलकों में विवाद शुरू हो गया है। उधर आंध्रप्रदेश आंध्र के तिरुपति की पहाड़ी पर हनुमान जन्मस्थली होने का दावा पूर्व से ही करता रहा है। हैरतअंगेज बात यह है कि हनुमान का जन्म स्थल पूर्व से ही कई अन्य स्थलों पर होने का दावा भी किया जाता रहा है। पूर्व से ही कई अन्य स्थलों पर हनुमान की जन्म स्थली होने के दावे के मध्य इन नए दावों से प्रश्न उत्पन्न होता है कि कोप्पल का गोकर्ण, उत्तर कन्नड़ का गोकर्ण अथवा तिरुपति की अंजानाद्रि पहाड़ी, या फिर झारखण्ड का आंजन धाम, या गुजरात का डांग, या कहीं और, आखिर कहां हनुमान का जन्म हुआ था? 

 

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक का पूर्व से ही यह दावा रहा है कि हनुमान का जन्म कोप्पल जिले के अनेगुंडी में किष्किंधा के अंजनाद्रि पर्वत पर हुआ था। कर्नाटक वासी बेल्लारी के पास स्थित हम्पी ( हंपी) को सदियों से किष्किंधा क्षेत्र अथवा वानरों का प्रदेश मानते आए हैं। रामायण में हम्पी से लगे किष्किंधा का एक संदर्भ अंकित है। रामायण के अनुसार इसी किष्किंधा नामक स्थान पर भगवान राम और लक्ष्मण पहली बार हनुमान से मिले थे। कर्नाटक ने किष्किंधा के अंजनाद्रि को लेकर अपने दावे के समर्थन में एक प्रोजेक्ट पर काम भी शुरू किया है। दूसरी ओर आंध्र प्रदेश भी हनुमान की जन्मस्थली पर पूर्व से ही दावा करता आ रहा है कि हनुमान की जन्मभूमि तिरुपति की सात पहाड़ियों में से एक पर है। इस पहाड़ी का नाम भी अंजनाद्रि ही है। तिरुपति में स्थित तिरुमला मंदिर हिन्दुओं की आस्था, बिश्वास और मान्यता का बड़ा केंद्र है। तेलुगू में तिरुमला का अर्थ सात पहाड़ियां होता है। यह मंदिर इन्हीं सात पहाड़ियों को पार करने पर आता है। टीटीडी अर्थात तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट बोर्ड के कार्यकारी अधिकारी केएस जवाहर रेड्डी का कहना है, हमारे पास पौराणिक और पुरातात्विक प्रमाण हैं। इनके आधार पर हम साबित कर सकते हैं कि तिरुपति के अंजनाद्रि पर्वत पर ही हनुमान का जन्म हुआ था। दावे के प्रमाण के तौर पर टीटीडी द्वारा सुबूत आधारित एक पुस्तिका भी जारी की गई है, जिसमें यह प्रमाणित करने की कोशिश की गई है कि हनुमान का जन्म तिरुमाला की सात पवित्र पहाड़ियों में से एक पर हुआ था। यह भगवान वेंकटेश्वर का निवास स्थान है। खगोलीय, पुरालेखीय, वैज्ञानिक और पौराणिक प्रमाण वाली यह पुस्तिका, यह साबित करेगी कि तिरुमला पहाड़ियों पर भगवान हनुमान का जन्म हुआ था। इस विवाद को सुलझाने के लिए टीटीडी द्वारा पिछले साल दिसम्बर में विद्वानों की एक उच्चस्तरीय समिति का गठन अध्ययन करने और सात पहाड़ियों में से एक अंजनाद्रि में प्रमाण एकत्रित करने के लिए किया गया था। लेकिन कुछ पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने टीटीडी के दावे को खारिज कर दिया है। इतिहासकारों की राय है कि हम्पी या विजयनगर राजवंश की पूर्ववर्ती राजधानी के आस- पास का क्षेत्र किष्किंधा क्षेत्र है। उनका दावा है कि हम्पी में पुरा-ऐतिहासिक काल की अनेक शिला कलाकृतियों में पूंछ वाले लोगों को चित्रित किया गया है। संगमकल्लू, बेलाकल्लू के पास अनेक गुफा कृतियों में मनुष्य के साथ पूंछ जैसी आकृति देखी जा सकती है। कुछ विद्वान विवाद सुलझाने के लिए कलाकृतियों को आधार बना रहे हैं। रामायण में वर्णित किष्किंधा के सभी भौगोलिक क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए प्राप्य अभिलेख, उपलब्ध साक्ष्य, मौजूदा परंपराएं तथा लोक श्रुतियां यह प्रमाणित करती हैं कि पूर्ववर्ती विजयनगर राज्य, जिसे पहले पंपा क्षेत्र कहा जाता था, को किष्किंधा के रूप में पहचाना गया है, जहां सैकड़ों हनुमान मंदिर हैं।

 

ज्योतिषीय गणना के अनुसार श्रीहनुमान का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 120 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 माता अंजनी के गर्भ से जन्म हुआ था। चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन ही श्रीहनुमान का जन्म दिन अर्थात हनुमान जयन्ती का पर्व मनाया जाता है।  लेकिन हनुमान जन्म से सम्बंधित व्रत हनुमान जयन्ती एक और दिन, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भी मनाया जाता है, अर्थात हनुमान जयंती वर्ष में दो बार दो विभिन्न तिथियों को मनाई जाती हैं। इसका कारण यह है कि हनुमान की जन्मतिथि को लेकर भी विद्वानों के मध्य मतभेद हैं। कुछ विद्वान हनुमान जयन्ती की तिथि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मानते हैं तो कुछ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा। विचित्र बात यह भी है कि इस विषय में पुरातन ग्रंथों में दोनों तिथियों के ही उल्लेख मिलते हैं, परन्तु इनके कारणों में भिन्नता बतलाई गई है। इसी प्रकार हनुमान के जन्म स्थान को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है और इस सम्बन्ध में कई प्रकार के मत प्रचलित हैं। जिसके कारण आज भी कोई यह स्पष्ट रूप से दावा करने की स्थिति में नहीं है कि हनुमान का जन्म आखिर भारत के किस स्थान अथवा प्रदेश में और कहां हुआ था?  श्रीराम भक्त हनुमान की माता का नाम अंजना होने के कारण उन्हें आंजनेय तथा उनके पिता का नाम केसरी होने से उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है। केसरी को कपिक्षेत्र का राजा होने के कारण कपिराज भी कहा जाता था। लेकिन आज भी यह अनुतरित ही है कि यह कपि क्षे‍त्र भारत में कहां स्थित है? हरियाणा के लोग राज्य के कैथल को हनुमान की जन्म स्थली मानते और कहते हैं कि वानरों की कपि नाम की जाति के वहां निवासरत होने के कारण उसे कपि क्षेत्र कहा जाता था। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का आज का कैथल ही पूर्व में कपिस्थल था, जो पहले करनाल जिले का भाग था। कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि कैथल ही हनुमान का जन्म स्थान है। कुछ विद्वान हनुमान की माता का नाम अंजनी और फिर अंजनी पुत्र होने से हनुमान की संज्ञा आंजनेय होने के कारण उनके नाम से बसे स्थल आंजनेय के आधार पर तथा इस आधार पर स्थानीय स्तर पर प्रचलित किम्बदन्तियों के परिप्रेक्ष्य में हनुमान की जन्मस्थली झारखण्ड के गुमला जिलान्तर्गत आंजन धाम में होने का दावा करते हैं। झारखण्ड में प्रचलित स्थानीय मान्यताओं के अनुसार हनुमान का जन्म गुमला जिला मुख्यालय से करीब पन्द्रह किलोमीटर दूर जंगलों- पहाड़ों के मध्य स्थित आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। आंजन ग्राम पंचायत के सचिव सुरेश कुमार शाही का कहना है कि जंगलों -पहाड़ों और नदी- नालों के मध्य इस सुरम्य स्थल पर स्थित इसी गांव में माता अंजनी निवास करती थी, और आंजन गांव की पहाड़ी पर स्थित गुफा में रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ था। माता अंजनी और उनके पुत्र आंजनेय के इस स्थल पर निवास करने के कारण ही इस स्थल का नाम आंजन धाम प्रचलित हुआ है। इसे प्राचीन काल में आंजनेय कहा जाता था, और इस आंजनेय का अपभ्रंश रूप आंजन नाम से आज इस स्थान को जाना जाता है। यहां की पहाडी पर माता अंजनी की गोद में हाथ में गदा धारण किए बाल्यरूप हनुमान  की एक प्राचीन प्रस्तर की मूर्ति स्थापित है। समीप ही यहाँ आंजन की पहाडी पर ही स्थानीय सरना सनातन धर्मावलम्बियों ने विगत दशकों में माता अंजनी और बालक हनुमान की प्रतिमा से संयुक्त एक मन्दिर का निर्माण किया गया है, जहाँ श्रीरामनवमी, हनुमान जन्मोत्सव और राम व हनुमान से सम्बन्धित अन्य दिवसों पर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजनों के साथ ही भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यहां की आदिवासी- गैरआदिवासी दोनों समुदाय की जातियां बड़ी संख्या में भक्ति और श्रद्धा के साथ माता अंजनी और बजरंगबली की पूजा करती है। वर्तमान में इस स्थल की महता व लोकप्रियता को देखकर स्थानीय प्रशासन द्वारा वुनियादी सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए हाथ- पाँव मारने की सुगबुगाहट सुनाई दी रही है। मान्यतानुसार यहाँ से लगभग बीस किलोमीटर दूर गुमला जिले के पालकोट प्रखंड में बालि और सुग्रीव का राज्य था। पालकोट को प्राचीन काल में पम्पापुर के नाम से जाना जाता था। यहाँ की एक पहाड़ी को किष्किंधा नाम से जाना जाता है। यहीं पर एक पहाडी पर माता शबरी का आश्रम था। यहाँ की पहाड़ियों में कई गुफाएं आज भी विद्यमान हैं। समीप ही पहाडी में स्थित एक प्राचीन तालाब पम्पासर नाम से विख्यात है। उल्लेखनीय है कि मैसूर में भी पंपासरोवर अथवा पंपासर नामक  एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है । तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपा सरोवर स्थित है । यहां के एक पर्वत में स्थित स्थित एक गुफा को रामभक्त शबरी के नाम पर शबरी गुफा कहते हैं। गुजरात के डांग जिले के के अंजनी पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमान का जन्म होने का दावा किया जाता रहा है। मान्यता के अनुसार त्रेत्तायुग में गुजरात स्थित डांग जिला दण्डकारण्य प्रदेश के रूप में जाना जाता था। यहीं भगवान राम व लक्ष्मण को शबरी ने बेर खिलाए थे। आज यह स्थल शबरीधाम नाम से जाना जाता है। डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग जिले के अंजनी पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमान का भी जन्म हुआ था। कहा जाता है कि अंजनी माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न के रूप में हनुमान की प्राप्ति हुई थी। माता अंजनी ने अंजनी गुफा में ही हनुमान को जन्म दिया था। इसी प्रकार अन्य मतों के अनुसार कुछ लोग राजस्थान के चुरु जिले के सुजानगढ़ में, कुछ हंफी में तो कुछ लोग नासिक के त्र्यंबकेश्वर के पास अंजनेरी पहाड़ी को हनुमान का जन्म स्थल मानते हैं। इन सभी स्थलों पर हनुमान की जन्म स्थली होने के अपने -अपने दावे हैं, परन्तु यह स्थापित किया जाना आवश्यक है कि हनुमान की जन्मस्थली आखिर कहाँ है?




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-अशोक “प्रवृद्ध”-

करमटोली , गुमला नगर पञ्चायत ,गुमला 

पत्रालय व जिला – गुमला (झारखण्ड)

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