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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

विशेष : ये हैं नये भारत के सबसे बेस्ट शिक्षक

  • 10 ऐसे शिक्षक जिनके बारे में जानकर आप भी कहेंगे ' टीचर हो तो ऐसा'---

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शिक्षा देने वाले शिक्षक तो देश में लाखों की संख्या में हैं। लेकिन कुछ ऐसे विरले शिक्षक भी हैं, जो अपनी अनोखी शिक्षण शैली के कारण देश-दुनिया में प्रसिद्ध हैं। एक नजर ऐसे ही अनोखे शिक्षकों पर। शिक्षक का नाम लेते ही हमारे मन में एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है, जो क्लासरूम में चश्मा लगाए, एक हाथ में चॉक लिए ब्लैकबोर्ड के सामने खड़ा है। लेकिन हम जिन शिक्षकों के बारे में आपको यहां बता रहे हैं, वे बहुत अलग और अनोखे हैं। 


सोनम वांगचुक:  ----------

-आपने ‘3 इडियट्स’ फिल्म में आमिर खान को जिस शख्सियत का किरदार निभाते देखा था, वास्तव में वे हैं लद्दाख के विलक्षण शिक्षाविद सोनम वांगचुक। बीते तीन दशकों से शिक्षा की अलख जगाए रखने वाले शिक्षक और मैकेनिकल इंजीनियर वांगचुक उन चंद भारतीय लोगों में से हैं, जिन्हें उनके अनोखे प्रयास के लिए रेमन मैग्सेसे पुरुस्कार मिल चुका है। उन्होंने सरकार, समाज और अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर शिक्षा को व्यावहारिक और उपयोगी बनाने के अनूठे प्रयास किए हैं। लद्दाख जैसे शिक्षा के मामले में पिछड़े इलाके के छात्रों में शिक्षा के प्रति जो जागरूकता आई है, उसका श्रेय इन्हीं को जाता है। फेल होने वाले छात्रों की शिक्षा के लिए भी इन्होंने वैकल्पिक व्यवस्था की है, जो उन्हें लगातार आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। 


सुगत मित्रा: ---------

2013 में टीइडी (टेक्नोलॉजी, एंटरटेनमेंट, डिजाइन) अवार्ड से सम्मानित हो चुके, कोलकाता से ताल्लुक रखने वाले सुगत मित्रा के ‘स्कूल इन द क्लाउड’ का कॉन्सेप्ट यह है कि बच्चे ही एक-दूसरे को पढ़ाएं। पेशे से एजुकेशनल रिसर्चर सुगत मित्रा का मानना है कि बच्चों में खुद पढ़ने और दूसरों को पढ़ाने की अद्भुत क्षमता होती है। उनका यह भी मानना है कि अगर हम अपने बच्चों को कंप्यूटर की पर्याप्त सुविधा दें तो वे काफी कुछ खुद ही सीख सकते हैं। उन्हें मिनिमल गाइडेंस के साथ कंप्यूटर की शिक्षा मोटिवेशन और एंटरटेनमेंट के माध्यम से दे सकते हैं।


गगन दीप सिंह: ---------

राजस्थान के जैसलमेर के रहने वाले गगनदीप सिंह ने अब तक दर्जनों दृष्टिहीन बच्चों की जिंदगी में शिक्षा के दीप जलाकर उनकी जिंदगी रोशन की है। इन्होंने हर बच्चे की समस्या के अनुसार अलग शैक्षिक प्रोग्राम बनाया और उसे पढ़ाया। बच्चों के साथ-साथ इन्होंने उनके परिवारों की भी काउंसलिंग की ताकि वे अपने बच्चे को फुल सपोर्ट दे सकें। गगनदीप सिंह ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ द विजुअली इंपेयर्ड में प्रशिक्षण लिया है। ये बच्चों को ब्रेलर्स जैसे इक्विपमेंट का उपयोग भी सिखाते हैं।


बाबर अली: ------------ 

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले बाबर अली ने उस उम्र से शिक्षक की भूमिका निभानी शुरू कर दी, जिस उम्र में लोग खुद पढ़ना सीखते हैं। जी हां! बाबर अली 9 वर्ष की उम्र से लोगों को पढ़ा रहे हैं। आज 23 साल के हो चुके बाबर अली किसी तरह से बनाए अपने स्कूल में 300 से ज्यादा गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इस काम के लिए उन्होंने 6 शिक्षकों को भी रखा है। 


आदित्य कुमार: ----------

‘साइकिल गुरुजी’ के नाम से मशहूर साइंस ग्रेजुएट आदित्य कुमार शिक्षा के सच्चे वाहक और प्रसारक हैं। ये शिक्षा को उन जगहों तक पहुंचाते हैं, जहां तक स्कूलों की पहुंच नहीं। आदित्य हर रोज अपनी साइकिल पर सवार होकर 60-65 किलोमीटर सफर करके लखनऊ के आस-पास के इलाकों में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। स्वयं एक गरीब परिवार में जन्मे आदित्य 1995 से यह अनोखा कार्य कर रहे हैं। आदित्य अपने साथ साइकिल पर ही एक बोर्ड लेकर घूमते हैं। जहां उन्हें कुछ छात्र मिलकर रोक लेते हैं, वे वहीं बैठकर पढ़ाने लगते हैं।


अरविंद गुप्ता:---------- 

खेल-खेल में बच्चों को विज्ञान जैसे गूढ़ विषय का ज्ञान देना कोई अरविंद से सीखे। ये बच्चों को खिलौने बनाने की प्रक्रिया के माध्यम से विज्ञान के पाठ पढ़ा देते हैं। खिलौने भी बाजार से खरीदे मैटीरियल से नहीं बनवाते बल्कि कबाड़ से बनवाते हैं। खिलौने बनाने के एक-एक चरण के माध्यम से वे विज्ञान की कोई नई बात सिखा देते हैं। ये अपनी फन टीचिंग टेकनीक के वीडियो यू-ट्यूब पर भी अपलोड करते हैं।


राजेश कुमार शर्मा:-------- 

‘अंडर द ब्रिज स्कूल’ के संस्थापक राजेश कुमार शर्मा दिल्ली के एक मेट्रो ब्रिज के नीचे लगभग 200 बच्चों का स्कूल लगाते हैं। उनके छात्र आस-पास की बस्तियों में रहने वाले बच्चे हैं, जिन्हें अपनी गरीबी के कारण कभी स्कूल जाने का सौभाग्य नहीं मिला। इनके स्कूल में भले ही कोई इमारत, कुर्सी या अन्य सुविधाएं न हों लेकिन बच्चों को शिक्षा अच्छी तरह दी जाती है। यह स्कूल इन्होंने 2005 से शुरू किया। कभी-कभी यहां कुछ चर्चित शख्सियतों को भी बुलाया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि राजेश कुमार पेशे से कभी शिक्षक नहीं रहे।


आनंद कुमार: ------

बिहार के पटना जिले में रहने वाले शिक्षक आनंद कुमार न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स के बीच एक चर्चित नाम हैं। इनका ‘सुपर 30’ प्रोग्राम विश्व प्रसिद्ध है। इसके तहत वे आईआईटी-जेईई के लिए ऐसे तीस मेहनती छात्रों को चुनते हैं, जो बेहद गरीब हों। 2018 तक उनके पढ़ाए 480 छात्रों में से 422 अब तक आईआईटीयन बन चुके हैं। आनंद कुमार की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि डिस्कवरी चैनल भी उन पर डॉक्यूमेंट्री बना चुका है। उन्हें विश्व प्रसिद्ध मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हार्वर्ड युनिवर्सिटी से भी व्याख्यान का न्योता मिल चुका है।


आरके श्रीवास्तव--------

बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले आरके श्रीवास्तव  देश मे मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर है । चुटकुले सुनाकर खेल खेल में जादूई तरीके से गणित पढाने का तरीका लाजवाब है । कबाड़ की जुगाड़ से प्रैटिकल कर गणित सिखाते है । सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर स्टूडेंट्स को पढाते है, सैकङो आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी,एनआईटी, बीसीईसीई सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानो मे पहुँचाकर उनके सपने को पंख लगा चुके है । 540 स्टूडेंट्स को बना चुके है इंजीनियर ,वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड मे भी आरके श्रीवास्तव का नाम दर्ज है । राष्ट्रपति  रामनाथ कोविंद भी कर चुके है आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्य शैली की प्रशंसा । इनके द्वारा चलाया जा रहा नाइट क्लासेज अभियान अद्भुत, अकल्पनीय है । स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने लिये  450 क्लास से अधिक बार पूरे रात लगातार 12 घंटे गणित पढा चुके है । सैकङो से अधिक बार  इनके शैक्षणिक कार्यशैली की खबरे देश के सारे प्रतिष्ठित अखबारो मे छप चुके है, विश्व प्रसिद्ध गूगल ब्वाय कौटिल्य के गुरु के रूप मे भी देश इन्हे जानता है 


रोशनी मुखर्जी: -------

बैंगलुरु से ताल्लुक रखने वाली डिजिटल टीचर रोशनी मुखर्जी न तो कहीं पढ़ाने जाती हैं, न उन्होंने कोई स्कूल खोल रखा है। इसके बावजूद वे हजारों स्टूडेंट्स की फेवरेट टीचर हैं। असल में रोशनी ने अपना ऑनलाइन एजूकेशन प्लेटफॉर्म बना रखा है, जिसका लाभ हजारों विद्यार्थी उठा रहे हैं। ये अपने वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड करती हैं, जिनकी मदद से स्टूडेंट्स पढ़ाई करते हैं। उन्हें अपने विद्यार्थियों से लगातार फीडबैक भी मिलता है।

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