सेंचुरी के श्रमिकों का सवाल: क्या मिल्स की बिक्री कानूनी है या फर्जी? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 17 जुलाई 2021

सेंचुरी के श्रमिकों का सवाल: क्या मिल्स की बिक्री कानूनी है या फर्जी?

  • **क्या है मिल्स की कीमत ? 426 करोड़, 151 करोड़, 180 करोड़ या 66 करोड रुपए ?*
  • **मेधा पाटकर सहित 4* *महिलाओं का अनिश्चितकालीन अनशन समाप्त: क्रमिक अनशन जारी।*

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सेंचुरी के श्रमिकों का सत्याग्रही आंदोलन आज भी जारी है। श्रमिकों की रोजगार की मांग होते हुए सेंचुरी मैनेजमेंट ने 29 जून 2021 से VRS ( स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) थोपी जो कि अनैच्छिक बताकर 13 जुलाई की समय सीमा डाल दी। कंपनी के तथा कुछ अन्य यूनियन के (जिनके 10 % भी सदस्य न होते हुए अधिकार खत्म है) नुमाइंदों ने कई सारी साजिशें चलाई फिर भी श्रमिकों ने रोजगार के पक्ष में अपनी एकजुटता और शक्ति का दर्शन प्रस्तुत किया है। कंपनी की ही जानकारी बताती है कि 873 श्रमिक और कर्मचारियों नेVRS अस्वीकार किया है। इसमें बहुसंख्य श्रमिक ही है । 30 स्टाफ मेंबर्स भी VRS के बदले रोजगार के अधिकार के लिए कटिबद्धता जाहिर कर चुके हैं।   इस बीच इन 873 श्रमिक और कर्मचारियों के अकाउंट्स में जबरन बिना अकाउंट होल्डर की सहमति के बिना दो प्रकार की राशि का भुगतान दो किश्तों में किया है। उसका विश्लेषण उपलब्ध नहीं किया है नहीं जो पहली किश्त 25(FF) की धारा, औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत डाली है तो दूसरी किस्त क्या VRS की राशि है ? अगर हां, तो वह प्रस्तुत योजना के अनुसार ना होते हुए, कुछ लाख रुपए कम दिखाई दे रहे हैं । जो कंपनी ने दिए हुए श्रमिक कॉलोनी या स्टाफ क्वार्टर समय रहते हैं , उन्हें दूसरी किस्त, मकान खाली करने के बाद ही देना जाहिर किया है। नोटिस के बाद नोटिस चिपकाना , धमकाना, शर्तें डालना जारी रखा है, पारदर्शिता और जनतंत्र की हत्या है। सवाल यह भी है कि मनजीत ग्लोबल ने सेंचुरी खरीदी है ,यह घोषणा लगातार सेंचुरी गेट से चल रही है। इसमें मनजीत ग्लोबल ने कंपनी खरीद ली है और सेंचुरी का अस्तित्व खत्म हुआ है , यह बार-बार दोहराया जा रहा है। सवाल है अगर अकेले मनजीत ग्लोबल ने पूरी कंपनी की दोनों मिल्स खरीदी है, तो कितने करोड़ रुपए में? पहले वेयरइट ग्लोबल ने खरीदी थी, 2.5 करोड रुपए में लेकिन स्वयं व्यवसायिक मूल्यांकन से कीमत उच्च न्यायालय के समक्ष 426 करोड रुपए प्रस्तुत की थी , तब तो सेंचुरी से वेयरइट को हस्तांतर करने का अनुबंध( Business Transfer Agreement )फर्जी साबित हुआ और दोनों कंपनियों ने स्वयं उसे निरस्त किया! अब अनुविभागीय अधिकारीश्रर महोदय से घोषित हुआ है कि 66 करोड रुपए में मनजीत ग्लोबल  ने कंपनी खरीद ली है और 6 करोड़ का शुल्क व स्टांप ड्यूटी मिलकर शासन को भुगतान किया है। अगर यह सच है तो क्या फिर से अनुमानित और कम मूल्यांकन लगाया गया है ? क्या शासन को भुगतान भी अवैध रूप से कम हुआ है ?  कंपनी मैनेजमेंट ने श्रमिक संघ की ओर से दाखिल याचिका में BTA  संबंधी कोई जानकारी नहीं दी है ।नहीं पूरी जमीन और संपत्ति की रजिस्ट्री सार्वजनिक दायरे में घोषित की गई है ,जबकि हर रजिस्ट्री तत्काल वेबसाइट पर आना शासन पर बंधन कारक है। यह एक प्रकार से उच्च न्यायालय के न्यायपीठ को अधूरी जानकारी देने से अवमानना की बात है। श्रमिकों को भी सभी मुद्दों पर अंधेरे में रखा गया है। इसके खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा।


अनिश्चितकालीन अनशन की समाप्ति: सत्याग्रह के नए दौर की ओर!

13 जुलाई से चल रहे अनिश्चितकालीन अनशन की आज मानव अधिकार कार्यकर्ता एम.डी. चौबे एवं शहादा महाराष्ट्र से पधारे सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुंवर, दादा साहेब पिंपडे के हाथ समाप्ति की गई। अनशन छोड़ते हुए मेधा पाटकर जी ने कहा कि कानूनी और मैदानी लड़ाई का एक दौर पूरा हुआ है। उच्च न्यायालय, मध्यप्रदेश (इंदौर न्याय पीठ) के समक्ष पैरवी एडवोकेट संजय पारीख, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय कर चुके हैं और आदेश आरक्षित है। आगे का संघर्ष कानूनी और मैदानी -अहिंसक मार्ग से आगे बढ़ाना बेहद जरूरी है। इसमें हम पूरा सफल सहभाग ले पाये, यह महत्वपूर्ण है। इसीलिए श्रमिक और महिलाओं के तथा समर्थकों के विशेष आग्रह पर यह निर्णय लिया है। सैकड़ों श्रमिक और महिलाएं सत्याग्रह स्थल पर डटे हैं, दिन-रात! पुलिस भी सामने टेंट लगाकर बैठे हैं, अधिकारियों के साथ! लॉकडाउन के पहले भी, 650 दिनों तक चला था वैसे ही 5 श्रमिकों, महिलाओं का क्रमिक अनशन जारी रहेगा और जारी है। 144 के उल्लंघन की घोषणा भी पुलिस प्रशासन से दिनभर सुनाई जा रही है को लेकर है। यह कोविड-19 को लेकर है, किंतु जगह-जगह राजनीतिक कार्यक्रम जारी होते हुए  हमारे न्याय की गुहार के साथ चल रहे सत्याग्रह को ही रोकने के लिए बैरिकेडस, पुलिस बल, वज्र वाहन, आदि की तैयारी क्यों? आज ही इसी इंदौर संभाग में, खरगोन जिले में मध्य प्रदेश के मंत्री कमल पटेल पधारे और वहां भी जन समूह में सैकड़ों लोग पहुंचकर कार्यक्रम संपन्न हुआ। अगर वहाँ 144 का पालन नहीं हुआ, मंडियों में, बाजार में, नहीं हो रहा है तो फिर श्रमिकों के जीने और रोजगार के अधिकार के लिए 44 महीनों से, औद्योगिक न्यायाधिकरण से 24.11.2017 के आदेश से तथा स्थानीय मजिस्ट्रेट के स्तर से जिसे मंजूरी प्राप्त हुई उस सत्याग्रह पर पुलिस प्रशासन का हमला क्यों? इस सवाल को जवाब जरूरी है ।

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