बिहार : अब पुश्तैनी व्यवसाय में लस नहीं रहा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 29 अगस्त 2021

बिहार : अब पुश्तैनी व्यवसाय में लस नहीं रहा

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पटना. अब पुश्तैनी व्यवसाय में लस नहीं रहा.दिनभर ग्राहकों के लिए टकटटी लगाना पड़ता है.बिड़ले से एकाध गो ग्राहक आ जाते हैं.बाप-दादा का व्यवसाय को धोना पड़ रहा है.यह एक सिलवट का पेशा करने करने वालों की बात नहीं है.जो इसे खुट्टा की तरह पकड़ कर बैठ गये हैं.सबकी हालत पतली है. आखिर हो क्यों नहीं? शहर की भागमभाग वाली जिदगी और आधुनिकता के इस दौर में एक ओर जहां रसोई घर में मसाला पीसने के लिए मिक्सर मशीन है तो बाजार में कम कीमत पर बुका हुआ मसाला उपलब्ध है.इन लोगों ने अपना कब्जा घर और बाजार में जमा रखा है. वहीं दूसरी ओर इस दौर में आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पत्थर से निर्मित शिलवट्टा ओखली आदि का क्रेज कम नहीं हुआ है.आज भी ग्रामीण क्षेत्र में उसकी काफी मांग है. ग्रामीण महिलाएं आज भी अपने अपने घरों में शिलवट्टा में ही मसाला पीस कर भोजन पकाने का काम करतीं हैं.शिलवट्टा को ग्रामीण भाषा में लोढ़ी-पाटी कहा जाता है. आज कई लोग लोढ़ी-पाटी को बेचकर इसे रोजगार का साधन बनाए हुए है. कई लोग लोढ़ी-पाटी बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्र में लगनेवाले मेला में लोढ़ी-पाटी की बिक्री जोरों पर देखा जा सकता है.  विक्रेता रिकू साव ने बताया कि पत्थर से निर्मित लोढ़ी-पाटी की मांग गांव में काफी है. शहर में इसकी बिक्री नहीं के बराबर होती है. बताया कि बाजार में लोढ़ी-पाटी को डेढ़ सौ से दो सौ रुपये, ओखली को दो सो रुपये में बेची जाती है.  खीरोधर गोस्वामी ने बताया कि वह लोग सिलवट को खरीद कर लाते हैं और मेला के अलावा गांव में घूम-घूमकर बेचते हैं. प्रतिदिन दो सौ रुपये की आमदनी हो जाती है. इसके अलावा खेती पर आश्रित हैं.खेती और सिलवट की बिक्री कर परिजनों का भरण पोषण किया जाता है. सुनीता देवी का भी रोजगार का साधन खेती व सिलवट की बिक्री करना है. उसने बताया कि किसी भी ग्रामीण मेला में वह परिजनों के साथ लोढ़ी पाटी बिक्री की दुकान सजाती है. वह स्वयं पत्थर को तरास कर ओखली, खूट्टा बनाती और बेचती है. संरचनात्मक बेरोजगारी तब प्रकट होती है जब बाजार में दीर्घकालिक स्थितियों में बदलाव आता है. उदाहरण के लिए: भारत में स्कूटर का उत्पादन बंद हो गया है और कार का उत्पादन बढ़ रहा है. इस नए विकास के कारण स्कूटर के उत्पादन में लगे मिस्त्री बेरोजगार हो गए और कार बनाने वालों की मांग बढ़ गयी है.  इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आर्थिक संरचना में परिवर्तन के कारण पैदा होती है.

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