बिहार : जदयू के राष्ट्रीय परिषद की बैठक वाली बैनर से राष्ट्रीय अध्यक्ष ही गायब - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 अगस्त 2021

बिहार : जदयू के राष्ट्रीय परिषद की बैठक वाली बैनर से राष्ट्रीय अध्यक्ष ही गायब

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पटना : कुशवाहा का जदयू में विलय, आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बनने तथा ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ही जदयू के अंदर वर्चस्व की लड़ाई जारी है। काफी दिनों तक एक गुट दूसरे गुट को कमजोर दिखाने के लिए गुट के सर्वेसर्वा की तस्वीर ही गायब कर दिया जाता था। वहीं, अब गुटबाजी को खत्म दिखाने के लिए जदयू के तमाम महत्वपूर्ण जगहों पट लगे पोस्टरों से नीतीश कुमार के अलावा सभी को हटा दिया गया है। यहां तक की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को लेकर जो होर्डिंग व पोस्टर लगे हैं, उसमें से राष्ट्रीय अध्यक्ष को भी हटा दिया गया है। इसको लेकर राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने जदयू के ऊपर निशाना साधते हुए कहा कि जनता दल (यू) का अन्तर्कलह आज उस मुकाम पर पहुँच गया है जहाँ सामान्य शिष्टाचार और प्रोटोकॉल की भी धज्जियाँ उड़ाई जा रही है। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लगाये गए बैनर में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फोटो ही गायब है। राजद प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी में सर्वोच्च पद राष्ट्रीय अध्यक्ष का हीं होता है न की किसी राज्य के मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री का। पर दल के अन्तर्कलह की वजह से सामान्य शिष्टाचार और प्रोटोकॉल का भी ख्याल नहीं रखा गया। वैसे सामान्य शिष्टाचार के तहत राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लगाई जाने वाली बैनर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा का फोटो होना चाहिए था। इसके पहले भी पार्टी के आधिकारिक बैनर में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा के फोटो की जगह नीतीश कुमार के साथ केवल केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिन्हा का फोटो दिया गया था। इसका स्पष्ट संदेश है कि जदयू एक जाति के अलावा दूसरे किसी जाति का अस्तित्व आज भी स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है। ललन सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा को जदयू में केवल मुखौटा के रूप में रखा गया है। साथ ही जदयू का लोकतांत्रिक स्वरूप भी केवल दिखावटी है। वास्तविक रूप में वह केवल एक व्यक्ति विशेष का पौकेट संगठन है, जिसका दायरा एक जाति विशेष के दायरे तक हीं सिमटा हुआ है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी, राष्ट्रीय परिषद और पार्लियामेंट्री बोर्ड ये सब केवल कोरम पूरा करने के लिए है। व्यवहारिक रूप से उनका कोई स्वायत्त और स्वतंत्र अस्तित्व है हीं नहीं। अन्यथा मान्य प्रोटोकॉल की इस प्रकार धज्जियां नहीं उड़ाई जाती।

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