झाझरिया और कथूनिया को रजत, सुंदर सिंह ने जीता कांस्य - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 अगस्त 2021

झाझरिया और कथूनिया को रजत, सुंदर सिंह ने जीता कांस्य

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तोक्यो, 30 अगस्त, स्टार पैरा एथलीट और दो बार के स्वर्ण पदक विजेता देवेंद्र झाझरिया पैरालंपिक खेलों की भाला फेंक स्पर्धा में सोमवार को अपना तीसरा पदक रजत पदक के रूप में जीता जबकि चक्का फेंक के एथलीट योगेश कथूनिया ने भी दूसरा स्थान हासिल किया जिससे भारत ने इन खेलों में सर्वाधिक पदक जीतने के अपने पिछले रिकार्ड को पीछे छोड़ा। सुंदर सिंह गुर्जर ने भी कांस्य पदक जीता। वह पुरुषों के भाला फेंक के एफ46 स्पर्धा में झाझरिया के बाद तीसरे स्थान पर रहे। एफ46 में एथलीटों के हाथों में विकार और मांसपेशियों में कमजोरी होती है। इसमें खिलाड़ी खड़े होकर प्रतिस्पर्धा में भाग लेते हैं। एथेंस (2004) और रियो (2016) में स्वर्ण पदक जीतने वाले 40 वर्षीय झाझरिया ने एफ46 वर्ग में 64.35 मीटर भाला फेंककर अपना पिछला रिकार्ड तोड़ा। श्रीलंका के दिनेश प्रियान हेराथ ने हालांकि 67.79 मीटर भाला फेंककर भारतीय एथलीट का स्वर्ण पदक की हैट्रिक पूरी करने का सपना पूरा नहीं होने दिया। श्रीलंकाई एथलीट ने अपने इस प्रयास से झाझरिया का पिछला विश्व रिकार्ड भी तोड़ा।


झाझरिया जब आठ साल के थे तो पेड़ पर चढ़ते समय दुर्घटनावश बिजली की तार छू जाने से उन्होंने अपना बायां हाथ गंवा दिया था। उनके नाम पर पहले 63.97 मीटर के साथ विश्व रिकार्ड दर्ज था। झाझरिया ने रजत पदक जीतने के बाद पीटीआई से कहा, ‘‘खेल और प्रतियोगिता ऐसा होता है। यहां उतार चढ़ाव लगे रहते हैं। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया तथा स्वयं के पिछले रिकार्ड में सुधार किया। लेकिन ऐसा होता है और आज का दिन उसका (श्रीलंकाई एथलीट) था।’’ गुर्जर ने 64.01 मीटर भाला फेंका जो उनका इस सत्र का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस 25 वर्षीय एथलीट ने 2015 में एक दुर्घटना में अपना बायां हाथ गंवा दिया था। जयपुर के रहने वाले गुर्जर ने 2017 और 2019 विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते थे। उन्होंने जकार्ता पैरा एशियाई खेल 2018 में रजत पदक जीता था। गुर्जर अक्सर स्कूल छोड़कर चले जाते थे क्योंकि उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है। जब वह कक्षा 10 की परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुए तो उनके शिक्षक ने उन्हें खेलों से जुड़ने की सलाह दी। गुर्जर घर छोड़कर जयपुर आ गये और चयन ट्रायल के बाद खेल हॉस्टल में भर्ती हो गये। लेकिन दुर्भाग्य से एक दुर्घटना में उन्होंने अपना बायां हाथ गंवा दिया और वह दिव्यांग हो गये। उन्हें लगा कि वह अब खेलों में भी अपना करियर नहीं बना पाएंगे और यहां तक कि एक समय वह आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगे थे। तब उन्हें पैरा खेलों के बारे में पता चला और उन्होंने कोच एमपी सैनी की देखरेख में अभ्यास शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झाझरिया और गुर्जर से बात करके उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिये बधाई दी। भारत के एक अन्य एथलीट अजीत सिंह 56.15 मीटर भाला फेंककर नौ खिलाड़ियों के बीच आठवें स्थान पर रहे। इससे पहले कथूनिया ने पुरुषों के चक्का फेंक के एफ56 स्पर्धा में रजत पदक जीता था। दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से बी कॉम करने वाले 24 वर्षीय कथूनिया ने अपने छठे और आखिरी प्रयास में 44.38 मीटर चक्का फेंककर रजत पदक जीता।


भारत ने 2016 पैरालंपिक खेलों में चार पदक जीते थे लेकिन तोक्यो पैरालंपिक में वह अभी तक सात पदक जीत चुका है जिसमें एक स्वर्ण पदक भी शामिल है। आठ साल की उम्र में लकवाग्रस्त होने वाले कथूनिया शुरू में पहले स्थान पर चल रहे थे लेकिन ब्राजील के मौजूदा चैंपियन बतिस्ता डोस सांतोस 45.59 मीटर के साथ स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे। क्यूबा के लियानार्डो डियाज अलडाना (43.36 मीटर) ने कांस्य पदक जीता। विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप के रजत पदक विजेता कथूनिया ने तोक्यो में अपनी स्पर्धा की शुरुआत की। उनका पहला, तीसरा और चौथा प्रयास विफल रहा जबकि दूसरे और पांचवें प्रयास में उन्होंने क्रमश: 42.84 और 43.55 मीटर चक्का फेंका था। कथूनिया ने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2019 में 42.51 मीटर चक्का फेंककर पैरालंपिक के लिये क्वालीफाई किया था। जब वह किरोड़ीमल कॉलेज में थे तब कई प्रशिक्षकों ने उनकी प्रतिभा पहचानी। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में सत्यपाल सिंह ने उनके कौशल को निखारा। बाद में उन्हें कोच नवल सिंह ने कोचिंग दी। कथूनिया ने 2018 में बर्लिन में पैरा एथलेटिक्स ग्रां प्री के रूप में पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और विश्व रिकार्ड बनाया था। कथूनिया ने कहा कि इस पदक से उनका हौसला बढ़ा है क्योंकि यह उपलब्धि उन्होंने कोच के बिना हासिल की। उन्होंने इसके बाद कहा, ‘‘यह शानदार है। रजत पदक जीतने से मुझे पेरिस 2024 में स्वर्ण पदक जीतने के लिये अधिक प्रेरणा मिली है।’’ कथूनिया ने कहा, ‘‘जब मैं रोजाना स्टेडियम जाने लगा तो मुझे स्वयं ही अभ्यास करना पड़ा। मेरे पास तब कोच नहीं था और मैं अब भी कोच के बिना अभ्यास कर रहा हूं। यह शानदार है कि मैं कोच के बिना भी रजत पदक जीतने में सफल रहा।’’

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