विशेष : जीवन बदलना: नागरिकों के जीवन को सुगम बनाना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 29 सितंबर 2021

विशेष : जीवन बदलना: नागरिकों के जीवन को सुगम बनाना

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भारत के विकासात्मक प्रयासों में से सबसे अधिक प्रचलित प्रयास नागरिकों के जीवन को सुगम बनाने पर केंद्रित है। एक मानक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जहां देश के विकास का आकलन करने के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं इसमें नागरिकों के कल्याण को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण तत्व समाहित नहीं हैa। आवास, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच में सुधार से नागरिकों का जीवन सुगम बनता है और उत्पादकता तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, जो वर्षों तक कायम रहता है। दुनिया भर के विशेषज्ञों का कहना है लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने से विकास की गारंटी सुनिश्चित होती है। राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास के बावजूद जमीनी स्तर की आबादी के लिए बुनियादी आवश्यकताओं तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित नहीं होना व्यापक चिंता का विषय है। किसी भी ठोस दीर्घकालिक आर्थिक प्रगति से पहले सभी नागरिकों के लिए आश्रय, स्वच्छ पानी और स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराई जाना चाहिए। बेहतर आर्थिक अवसरों को मजबूत करना और गतिशीलता में सुगमता सतत् विकास जैसे अन्य महत्वपूर्ण पहलू के समान ही लोगों के अधिकारों और सुरक्षा का संरक्षण भी उनकी भलाई के लिए महत्वपूर्ण है। वित्तीय समावेशन, बेहतर पर्यावरणीय गुणवत्ता और सतत विकास के मामले में भी सभी के लिए व्यक्तिगत कल्याण को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।


पिछले पांच वर्षों में, भारत ने पानी और स्वच्छता से लेकर ई-गवर्नेंस और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधाओं तक सभी क्षेत्रों में अपने प्रदर्शन में सुधार किया है। प्रति 100 जनसंख्या पर औसत इंटरनेट सब्सक्रिप्शन 2015 (मार्च) में 27.95 से बढ़कर 2020 (मार्च) में 61.57 हो गई है। ग्राम पंचायतों का इंटरनेट कनेक्टिविटी औसत भी 2016 में 11.37 से बढ़कर 2020 में 77.01 हो गया। पेयजल का प्रमुख स्रोत (प्रति 100 वितरण) भी 2012 में 32.4 से बढ़कर 2018 में 40.0 हो गया। इस समग्र विकास की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने देश के नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास किए। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) - दोनों शहरी और ग्रामीण, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (डीएवाई-एनयूएलएम), स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) - दोनों शहरी और ग्रामीण, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम), महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (मनरेगा) जैसी पहलों से भारत का तेजी से विकास हुआ है। संयोग से ये पहलें 169 लक्ष्यों को पूरा कर सतत विकास करने की भारत की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति के अनुरूप हैं। चूंकि किसी देश में जीवन की गुणवत्ता और प्रगति को किसी एक इकाई से नहीं आंका जा सकता है, ऐसे में जीवन स्तर और विकास के बेहतर मूल्यांकन को सुनिश्चित करने का तंत्र विकसित करना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा मूल्यांकन आर्थिक विकास को नकारता नहीं है, बल्कि यह आर्थिक प्रगति के साथ सामाजिक प्रगति को आंकने का प्रयास करता है।


भारत के लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के इस लक्ष्य से नीति आयोग जीवन की सुगमता: राज्य और जिला स्तर का मूल्यांकन का शुभारंभ कर रहा है, जिसे भारत के इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस ने तैयार और विश्लेषण किया है। मूल्यांकन में राज्य और जिला स्तर पर नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता की जांच करते हुए सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद की भावना को आत्मसात करता है। यह किसी देश की जीडीपी वृद्धि के माध्यम से उसकी प्रगति के पारंपरिक आकलन से परे है, क्योंकि जीडीपी से किसी क्षेत्र और उसके निवासियों की भलाई को व्यापक रुप से समझने के बजाय केवल भौतिक कल्याण को आंका जाता है। यह मूल्यांकन का ऐसा मानक है, जिसमें व्यापक दायरा और दृष्टिकोण है। जिन तत्वों का हम मूल्यांकन करने के लिए चयन करते हैं, वे नीतियों को डिजाइन, तैयार करने और लागू करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भारत सरकार ने देश में जीवन सुगम बनाने के कई प्रयास किए हैं। सरकार ने पारंपरिक खाना पकाने के चुल्हों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत करीब 80 मिलियन गैस सिलेंडर वितरित किए। पीएमयूवाई को घरेलू और परिवेशी वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर को कम करने के लिए लागू किया गया था। योजना शुरू होने से पहले विश्व स्तर पर दूसरा सबसे वायु प्रदूषण फैलाने वाला देश भारत था। स्वास्थ्य देखभाल और पर्यावरणीय परिणामों में सुधार के लिए सरकार ने अपनी प्रसिद्ध उजाला योजना के तहत पूरे देश में 350 मिलियन एलईडी बल्ब भी वितरित किए। जनसांख्यिकीय बदलावों के साथ-साथ आर्थिक विकास प्रदान करने पर केंद्रित राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन जीवन स्तर बढ़ाने पर भी ध्यान देती है।   एक अवधारणा के रूप में जीवन की सुगमता को बहुआयामी प्रणाली कहा जा सकता है, जो अपने सभी निवासियों के शारीरिक, सामाजिक और मानसिक कल्याण में योगदान करती है। यह नागरिकों के वर्तमान जीवन स्तर और प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्र दोनों की जांच करती है, जिससे जीवन स्तर को बढ़ाया जा सकता है। एक सभ्य जीवन स्तर उपलब्ध कराने के महत्वपूर्ण मानकों के आधार पर राज्यों और जिलों के प्रदर्शन को आंकना अनिवार्य है। इसलिए, राज्य स्तर पर 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों और जिला स्तर पर 712 जिलों में इसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए।


भारत जैसे विविधतापूर्ण राष्ट्र के लिए आंकड़ों पर आधारित आकलन के मद्देनजर जीवन स्तर की जांच करना और नीतिगत निर्णयों को लागू करना अनिवार्य है। आकार की दृष्टि से राजस्थान जैसा राज्य जर्मनी जितना बड़ा है; जनसंख्या के मामले में, अकेले उत्तर प्रदेश में रहने वाले लोग रूस की पूरी आबादी से अधिक हैं। जीवन की सुगमता को समझने के लिए एक ऐसे विश्लेषण की आवश्यकता है जो क्षेत्रीय और जनसांख्यिकीय असमानताओं के पहलुओं पर विचार करे। क्षेत्रीय असमानता अक्सर राज्यों में और राज्य के अलग-अलग जिलों में भी होती है। असम में मातृ मृत्यु अनुपात अधिक, 237 है, जबकि केरल में काफी कम, 46 है। एक ही क्षेत्र के राज्यों में भी विभिन्न अंतर नजर आते हैं; उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर क्षेत्र में, त्रिपुरा में स्कूलों में निवल नामांकन अनुपात 94 प्रतिशत से अधिक है, जबकि सिक्किम में निवल नामांकन अनुपात 45 प्रतिशत से अधिक है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विकास संबंधी समस्याओं का समाधान करने के लिए नीतिगत निर्णय हमेशा सर्व-समावेशी दृष्टिकोण से केंद्रीय रूप से नहीं लिए जा सकते हैं। मांगों और आवश्यकताओं के संदर्भ में क्षेत्र-विशिष्ट चिंताओं को दूर करने के लिए राष्ट्रीय या राज्य-स्तरीय निर्णय पर्याप्त नहीं हो सकते हैं। इसलिए, किसी  जिला-स्तरीय अध्ययन से जमीनी स्तर पर प्रगति को बढ़ाया जा सकता है और सबसे कुशल तरीके से संसाधनों को जुटाना और उनका उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है। इससे स्थानीय सरकारें अपनी ताकत और कमजोरियों की पहचान करने और विशिष्ट क्षेत्रों में चुनौतियों से निपटने के लिए फोकस क्षेत्रों की पहचान कर सकेंगी। जैसे-जैसे राष्ट्र अपने विकास पथ पर आगे बढ़ता है, जीवन में सुगमता जैसे मूल्यांकन साधन आंकड़ों पर आधारित नीतिगत निर्णयों के माध्यम से परिवर्तन लाने में मददगार होंगे। यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में बेहतर विकास परिणामों को बढ़ावा देने में क्या महत्वपूर्ण है, इस पर आम सहमति बनाएगा। इस तरह के सराहनीय प्रयासों से यह सुनिश्चित होगा कि भारत की आर्थिक प्रगति राष्ट्रीय स्तर से लेकर जमीनी स्तर तक भारत के नागरिकों के जीवन को सुगम बनाने में हुई प्रगति के अनुरूप हो।





(अमिताभ कांत मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ), नीति आयोग हैं। अमित कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस, भारत के अध्यक्ष और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में विजिटिंग स्कॉलर हैं,)

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