- यह तो होना ही है.चुनाव के समय में मताधिकार करने नहीं जाते
पटना. आजकल अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के लोग राजनीतिक में जा रहे हैं.राजनीतिक में ही भविष्य देख रहे हैं.ऐसे लोग आरंभ में राजनीतिक पार्टी में जाकर पैर जमाते हैं.विभिन्न पदों पर रहकर जन कल्याण व विकास का कार्य करते है.सभी तबकों के लोगों से संबंध प्रगाढ़ करते हैं ताकि मौका आने पर काम आ सके. इससे हटकर कुछ लोग राजनीति की क,ख,ग जाने और आधार बनाएं बिना ही चुनाव मैदान में कूद पड़ते हैं.ऐसे लोग जिंदगी भर बहुसंख्यकों व समाज से कन्नी कटाकर रहते हैं.ऐसे लोग चुनावी मैदान में उतरने के बाद ही केवल बहुसंख्यकों व समाज से उम्मीद करने लगते हैं. बहुसंख्यकों व समाज फेवर करें और मत देकर विजयी बनाएं.यह कदापि नहीं हो सकता है यानी असंभव. यह सर्वविदित है और सभी लोग जानने भी हैं.राजनीति आदर्शवान और चरित्रवान लोगों के लिए नहीं रहा.इस समय राजनीति में जिनके पास है तीन ' M' मसल पावर,मैन पावर और मनी पावर.वह ही मैदान मार पाएगा. पटना नगर निगम के चुनाव में 2017 में अल्पसंख्यक ईसाई किस्मत अजमाने चुनाव मैदान में उतरे थे.सभी पराजित हुए.इस बार 2021 में पश्चिम चंपारण के चनपटिया प्रखंड के पंचायत समिति का चुनाव में अल्पसंख्यक ईसाई हार गयी है.उनका आरोप है बहुसंख्यक व सहधर्मी सहयोग नहीं दिये.
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