इन्हीं में एक है लमचूला गांव. उत्तराखंड के बागेश्वर जिला से करीब 20 किमी दूर गरूड़ ब्लॉक में स्थित इस गांव की आबादी लगभग सात सौ है. यहां की अधिकतर आबादी अनुसूचित जाति से संबंध रखती है. पहाड़ों की गोद में बसे इस गांव को दो हिस्सों तल्ला लमचूला और मल्ला लमचूला के रूप में जाना जाता है. तल्ला लमचूला जहां पहाड़ की तराई में बसा है वहीं मल्ला लमचूला पहाड़ों पर है. अत्यधिक ठंड और बर्फ़बारी के दिनों में तल्ला लमचूला की अधिकतर आबादी अपने मवेशियों के साथ पहाड़ों की तरफ मल्ला लमचूला कूच कर जाती है. जहां मवेशियों के लिए आसानी से चारा उपलब्ध हो जाता है. मौसम के सामान्य होते ही आबादी वापस तल्ला लमचूला आ जाती है.
जागरूकता की कमी के कारण इस गांव में परिवारों की आबादी काफी बड़ी होती है. एक एक परिवार में पांच से अधिक बच्चे होते हैं और बेटे की आस में यह संख्या और भी बढ़ जाती है. अशिक्षा के कारण गांव में आज भी बेटी की तुलना में बेटे को अधिक महत्व दिया जाता है. आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण गांव वालों की आय का साधन भी काफी सीमित है. जिससे न केवल उनके रहन सहन का स्तर निम्न है बल्कि वह अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देने से वंचित रह जाते हैं. कागज़ों में यह गांव भले ही खुले में शौच से मुक्त हो चुका है, लेकिन वास्तव में अब भी कई घरों में शौचालय का नहीं होना इसके पिछड़ेपन को दर्शाता है.
लमचूला की अधिकतर लड़कियों की शादी 12वीं के बाद कर दी जाती है. इस गांव में मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाली लड़कियों का प्रतिशत लगभग नगण्य है. कम उम्र में शादी और फिर जल्द गर्भवती होना का नकारात्मक प्रभाव लड़कियों की सेहत पर देखने को मिलता है. अधिकतर विवाहिताओं में पोषण की कमी पाई गई है. पौष्टिकता की कमी और एक के बाद एक बच्चों को जन्म देने के कारण कई महिलाओं की कम उम्र में ही मौत हो जाती है, जो इस गांव की न केवल सबसे बड़ी विडंबना है बल्कि लड़कियों के जीवन के साथ भी बहुत बड़ा अन्याय है. जिसे केवल जागरूकता के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है. इतना ही नहीं यह सरकार के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना के उचित क्रियान्वयन के नहीं होने को भी दर्शाता है. जिस पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है.
लमचूला में विकास की रफ़्तार का आलम यह है कि यहां दो वर्ष पूर्व बिजली आई है. जो कई बार चले जाने पर हफ़्तों भी नहीं आती है. कोरोना काल में यह मुश्किल और भी बढ़ गई, जब बच्चों की पढ़ाई मोबाइल के माध्यम से कराई जा रही थी. आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण घर में एक ही मोबाइल उपलब्ध होता था, वह भी कई बार बिजली नहीं होने के कारण चार्ज नहीं हो पाती थी. यही कारण है कि Covid-19 के दौर में लमचूला गांव के अधिकतर बच्चे पढ़ाई में पिछड़ गए हैं. सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध तो करा दी, परंतु गरीब होने के कारण अधिकतर परिवार के पास एंड्रॉइड फोन उपलब्ध नहीं थे, जिसके कारण कई घरों के बच्चे इस दौरान पूरी तरह से शिक्षा से दूर हो गए.
पिछले वर्ष मार्च में सरकार ने लमचूला सहित बागेश्वर जिला के 16 गांवों को प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत उन्हें संवारने और उनका कायाकल्प करने की योजना की घोषणा की थी. ऐसे गांव जो अनुसूचित जाति बहुल हो और जिनकी आबादी पांच सौ से अधिक हो. योजना के अंतर्गत गांव में बिजली, पेयजल, स्वच्छता, स्वास्थ्य-पोषण, सामाजिक सुरक्षा, उन्नत सड़कें, आवास, स्वस्थ्य ईंधन, कृषि, वित्तीय समावेशन, डिजिटलीकरण और कौशल विकास को विकसित करना प्रमुख है. सरकार की यह योजना लमचूला जैसे आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े गांव के लिए बहुत ज़रूरी है ताकि यह गांव भी देश के विकास में कदम से कदम मिला कर चल सके.
कुमारी मनीषा
लमचूला, बागेश्वर
उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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