सौ करोड़ टीकाकरण के इस कीर्तिमान को स्थापित करने में सरकार की जरूरतों के अनुसार पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, सार्वजनिक और निजी भागीदारी के साथ काम करने की क्षमता को भी प्रदर्शित किया है. जिसके परिणामस्वरूप अनिश्चितताओं के इस समय में भी जीत मिली है. चाहे वह कोविन प्लेटफार्म को स्थापित करना हो या फिर व्यवहारिकता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न श्रेणी समूहों के लोगों के टीकाकरण को प्राथमिकता देना हो. बड़े और व्यापक टीकाकरण अभियान में छोटे निर्णयों को भी ध्यान में रखा गया. जिसके परिणाम स्वरूप सौ करोड़ टीकाकरण का मुकाम हासिल किया गया. इन सबसे बढ़कर देश ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी एक स्पष्ट प्रतिबद्धता दिखाई और इसके बेहतर परिणाम मिले. इस तरह से वैक्सीन को बनाने और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के साथ काम करने से एक दूसरे के प्रति विश्वास और क्षमताओं पर भरोसा पहले से अधिक बढ़ा है. इस पूरे चरण में दो तरीके से काम किया गया. पहला आईसीएमआर का भारत बायोटेक पर भरोसा बढ़ा. दूसरा भारत बायोटेक का आईसीएमआर पर भरोसा बढ़ा. वैक्सीन विकास पर काम करने की शुरूआत के समय से ही आईसीएमआर-भारत बायोटेक ने यह स्पष्ट कर लिया था कि किसी भी तरह के वैज्ञानिक परीक्षण या विकास को एक वैज्ञानिक आधार के साथ किया जाएगा और किए गए काम के दस्तावेजों को साइंटिफिक जर्नल वैज्ञानिक शोध पत्रिका में प्रकाशित कराया जाएगा. अब जैसा कि हमें पता है कि कोवैक्सिन के वैज्ञानिक प्रमाणों पर प्रकाशित 15 से अधिक शोध पत्रों की अंतराष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं ने प्रशंसा की है. यह सभी शोधपत्र वैज्ञानिक साहित्य जगत में वैश्विक स्तर पर वैक्सीन शोध विकास और प्रमाणिकता के लिए जाने जाते हैं फिर चाहे वह वैक्सीन का परीक्षण पूर्व विकास हो, छोटे जानवरों पर वैक्सीन का शोध हो, हैम्सटर अध्ययन हो, बड़े जानवरों पर वैक्सीन ट्रायल आदि हो.
इन शोध पत्रिकाओं में वैक्सीन विकास के पहले, दूसरे और तीसरे चरण के परिणाम लंबे समय से प्रकाशित होते रहे हैं. वैक्सीन परीक्षणों के इन अध्ययनों में अल्फाए बीटाए गामा और डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ वैक्सीन की प्रमाणिकता को भी प्रभावी तरीके से शामिल किया गया. सबसे पहले तो वैक्सीन विकास के अनुभव से हमें इस बात का आत्मविश्वास बढ़ा है कि भारत अब फार्मेसी ऑफ वर्ल्ड से कहीं अधिक वैक्सीन सुपरपॉवर में भी आगे है. महामारी के बुरे दौर के बीच वैक्सीन विकास के अनुभव से प्राप्त आत्मविश्वास से हम आगे भी अन्य बीमारियों के लिए नये वैक्सीन का निर्माण कर सकेंगे. यह केवल भारतीय आबादी के लिए ही नहीं बल्कि विश्व की आबादी के लिए भी किया जाना चाहिए क्योंकि हमारे सभी प्रयासों का अंर्तनिर्हित सिद्धांत वसुधैव कुटुंबकम या दुनिया एक परिवार है का है. दूसरा एक दशक से भी अधिक समय से हम जेनेरिक दवाओं को बनाने के लिए पॉवर हाउस के रूप में जाने जाते रहे हैं. कोविड-19 का यह अनुभव मूल्य श्रंखला को आगे बढ़ाने और विशिष्ट होने के लिए दवा की खोज या वैक्सीन खोज में नया प्रतिमान स्थापित करने के लिए प्रेरित करेगा. इस अनुभव का अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए हमें शिक्षा और उद्योगों के साथ मिलकर बड़े स्तर पर काम करना होगा. इंजीनियरिंग के क्षेत्र में यह पहले से ही किया जा रहा है, जहां आईआईटी में प्रोफेसर परामर्श करते हैं और नये प्रयोग किए जाते हैं. इस तरह का प्रयोग अभी बायो मेडिकल और चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में नहीं किया गया है. इन जगहों में हमारे शिक्षाविदों को प्रोत्साहन देना होगा और उनके द्वारा बनाई गई बौद्धिक संपदा से लाभ उठाने की आवश्यकता होगी ताकि वे नये प्रयोगों के बारे में प्रेरित हो सकें. ऐसे सभी रास्ते हमें अभी स्थापित करने हैं.
डॉ. बलराम भार्गव
भारतीय राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थाान (ICMR) के महानिदेशक
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