प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा के साथ जो खिलवाड़ पंजाब सरकार के संरक्षण में हुआ है, वह इस बात का सबूत है कि पंजाब में पूरी तरह अराजकता है। वह भी तब जब पंजाब सरकार पीएम की सुरक्षा को चाक-चौबंद बता रहा है। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि जहां दुश्मन देश पाकिस्तान की सीमा हो और आतंकवादी गतिविधियां सक्रिय हो, वहां पीएम की सुरक्षा के साथ इतनी बड़ी चूक कैसे हो सकती है? कहीं यह कांग्रेस की शरारतपूर्ण साजिश तो नहीं? क्या कांग्रेस ने मोदी के लिए बिछाया था मृत्यु जाल? प्रधानमंत्री की सुरक्षा अगर चूक हुई तो क्या एसपीजी और आईबी के लोग भी हैं जिम्मेदार? क्योंकि पीएम के काफिले की स्थिति ऐसी थी कि उन पर कोई जानलेवा हमला हो सकता था। गाड़ी पर पथराव हो सकता था और यहां तक कि कोई आत्मघाती हमला भी हो सकता था। मतलब साफ है यहां प्रधानमंत्री की जान भी जा सकती थी? हालांकि पंजाब में पीएम मोदी के कार्यक्रम में सुरक्षा चूक को लेकर पहली बड़ी कार्रवाई हुई है. फिरोजपुर के एसएसपी हरमन हंस को निलंबित कर दिया गया है। जबकि सीएम चन्नी ने कहा कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक की कोई बात नहीं है। ऐसे में दुसरा सवाल है कि जब चूक नहीं थी तो एसएसपी को निलम्बित क्यों की। यह अलग बात है कि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि इस मामले में जवाबदेही तय होगी।
देश ने ऐसे ही खोए दो प्रधानमंत्री
खास बात ये है कि ये जगह पाकिस्तान से सिर्फ 10 किमी दूर है और जब प्रधानमंत्री का काफिला 20 मिनट तक एक फ्लाईओवर पर फंसा रहा तो आसपास मौजूद सैकड़ों लोगों ने अपने मोबाइल फोन से उनका वीडियो शूट किया। बड़ी बात ये है कि इतनी पास से कोई उन्हें असलियत में भी शूट कर सकता था। भारत ने अपने दो प्रधानमंत्रियों को ऐसे ही खोया है और ये दोनों ही प्रधानमंत्री कांग्रेस के थे। इंदिरा गांधी की हत्या पंजाब की खालिस्तानी ताकतों ने की थी और राजीव गांधी की हत्या एक और आतंकवादी संगठन लिट्टे ने की थी. इसके बावजूद कांग्रेस इस इतिहास को भूल गई और आज कांग्रेस के ही कुछ नेता इस पूरे घटनाक्रम पर तालियां बजा रहे हैं.
कटघरे में पंजाब सरकार
इस घटना ने पंजाब की सरकार और उसकी मंशा पर बहुत खतरनाक सवाल खड़े किए हैं। हाल ही में भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के दौरान सुरक्षा एजेंसियों को नक्सलियों की एक ऐसी चिट्ठी मिली थी, जिसमें लिखा था कि प्रधानमंत्री मोदी की हत्या ऐसे ही सड़क पर घेर कर की जाएगी और किसान आंदोलन में लाल किले की वाकये से कहा जा सकता है कि इसमें नक्सलियों के हाथ हैं। प्रधानमंत्री मोदी का ये पंजाब दौरा ऐसे समय में था, जब पिछले महीने ही किसान आंदोलन समाप्त हुआ है. इस आन्दोलन के दौरान उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई थी.
पांच लेयर में होती है पीएम की सुरक्षा
केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि पंजाब की सरकार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कार्यक्रम के बारे में पहले ही पूरी जानकारी दे दी गई थी। इसके बाद भी प्रदेश की सरकार की ओर से सुरक्षा की कोई तैयारी नहीं की गई। इसी सुरक्षा चूक के बाद प्रधानमंत्री ने वापस बठिंडा हवाई अड्डे जाने का फैसला किया। यहां जिक्र करना जरुरी है कि प्रधानमंत्री के काफिले में सबसे पहले सिक्योरिटी स्टाफ की गाड़ी सायरन बजाती हुई चलती है। इसके बाद एसपीजी की गाड़ी और फिर दो गाड़ियां चलती हैं। इसके बाद दाईं और बाईं तरफ से दो गाड़ियां रहती हैं जो बीच में चलने वाली प्रधानमंत्री की गाड़ी को सुरक्षा प्रदान करती है। पीएम मोदी की सुरक्षा में विशेष सुरक्षा दल (एसपीजी) के जवान तैनात रहते हैं। उनकी सुरक्षा में विभिन्न घेरों के तहत एक हजार से ज्यादा कमांडो तैनात रहते हैं।
पीएम के चारों तरफ रहते हैं एसपीजी कमांडो
सार्वजनिक कार्यक्रम में एसपीजी कमांडो पीएम के चारों तरफ रहते हैं और उनके साथ-साथ चलते हैं। किसी भी कमांडो को पीएम की सुरक्षा में तैनात करने से पहले उसके बारे में गहन छानबीन की जाती है। प्रधानमंत्री के निजी सुरक्षा गार्ड सुरक्षा घेरे की दूसरी पंक्ति में तैनात रहते हैं। यह भी एसपीजी के बराबर प्रशिक्षित और दक्ष होते हैं जो किसी भी अनहोनी को रोकने में सक्षम होते हैं। तीसरे सुरक्षा चक्र में नेशनल सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) होते हैं। चौथे चक्र में अर्द्धसुरक्षा बल के जवान और विभिन्न राज्यों के पुलिस अधिकारी होते हैं। जब पीएम किसी राज्य में जाते हैं तो यह प्रदेश पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि वह बाहरी सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही किसी भी अनहोनी को रोके। सुरक्षा के पांचवे चक्र में कमांडो और पुलिस कवर के साथ कुछ अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाओं से लैस वाहन और एयरक्राफ्ट रहते हैं। यह सभी वाहन उच्च क्षमता के सैन्य आयुधों (आर्म्स एम्युनिशन) से लैस होते हैं।पीएम के काफिले में चलती हैं दो डमी कारें
यदि पीएम के काफिले पर जमीनी या हवाई हमला होता है तो इनके जरिए उससे आसानी से निपटा जा सकता है। यह किसी भी तरह के रासायनिक या जैविक हमले का जवाब देने में सक्षम होते हैं। मोदी अति सुरक्षा वाली बुलेटप्रुफ बीएमडब्ल्यू 7 कार से सफर करते हैं। उनके काफिले में साथ-साथ ऐसी ही दो डमी कारें चलती हैं जिससे कि हमलावर को भ्रमित किया जा सके। पीएम के काफिले में एक जैमर से लैस गाड़ी तैनात रहती है। जिसमें दो एंटिना लगे रहते हैं। यह सड़क के दोनों तरफ 100 मीटर की दूरी पर रखे विस्फोटक को निष्क्रिय करने में सक्षम होते है। पीएम के साथ हमेशा एक एंबुलेंस साथ चलती है। जो किसी भी आपात स्थिति में उन्हें मेडिकल सुविधा मुहैया करवाने के मकसद से साथ चलती है। जब कभी पीएम पैदल चलते है तो उनके आगे-पीछे सादे कपड़ों में एनएसजी के कमांडो साथ चलते रहते हैं।
सुरक्षा में चूक के चलते रद्द की गई रैली
इससे पहले गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि पीएम की सुरक्षा में चूक के कारण फिरोजपुर की रैली रद्द करनी पड़ी है. नए कृषि कानूनों के रद्द होने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी पहली बार पंजाब दौरे पर जाने वाले थे. पीएम मोदी फिरोजपुर के लिए रवाना हो चुके थे, लेकिन सुरक्षा में चूक के चलते रैली रद्द कर दी गई।
कैसे तय होती है सुरक्षा
पीएम के काफिले को सबसे अधिक सुरक्षित माना जाता है. पीएम की सुरक्षा का प्रोटोकॉल होता है। भारत के प्रधानमंत्री को 24 घंटे सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप की होती है। प्रधानमंत्री जहां भी जाते हैं, एसपीजी के सटीक निशानेबाजों को हर कदम पर तैनात किया जाता है. ये शूटर एक सेकेंड के अंदर आतंकियों को मार गिराने में सक्षम होते हैं. इन जवानों को अमेरिका की सीक्रेट सर्विस की गाइडलाइंस के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाती है. जवानों के पास असॉल्ट राइफल, ऑटोमेटिक गन और 17 एम रिवॉल्वर जैसे आधुनिक हथियार होते हैं. प्रधानमंत्री के काफिले में 2 बख्तरबंद कारें, 7 सीरीज सेडान, 6 एक मर्सिडीज बेंज एंबुलेंस के साथ एक दर्जन से अधिक वाहन मौजूद होते हैं. इनके अलावा, एक टाटा सफारी जैमर भी काफिले के साथ चलता है. प्रधानमंत्री के काफिले के ठीक आगे और पीछे पुलिस के सुरक्षाकर्मियों की गाड़ियां होती हैं. बाईं और दाईं ओर 2 और वाहन होते हैं और बीच में प्रधानमंत्री का बुलेटप्रूफ वाहन होता है.हमलावरों को गुमराह करने के लिए काफिले में प्रधानमंत्री के वाहन के समान दो डमी कारें शामिल होती हैं. जैमर वाहन के ऊपर कई एंटेना होते हैं. ये एंटेना सड़क के दोनों ओर रखे गए बमों को 100 मीटर की दूरी पर डिफ्यूज करने में सक्षम हैं. इन सभी कारों पर एसपीजी के सटीक निशानेबाजों का कब्जा होता है. इसका तात्पर्य यह है कि सुरक्षा के उद्देश्य से प्रधानमंत्री के साथ लगभग 100 लोगों का एक दल होता है.
पैदल भी साथ होती है यह सुरक्षा
यह तो हुई गाड़ियों के काफिले की बात लेकिन इसके अलावा जब प्रधानमंत्री पैदल भी चलते हैं, तब भी वे वर्दी के साथ-साथ सिविल ड्रेस में एनएसजी के कमांडो से घिरे होते हैं. एसपीजी के अलावा पुलिस भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाती है. प्रधानमंत्री के स्थानीय कार्यक्रमों में एसपीजी के मुखिया खुद मौजूद रहते हैं. यदि किसी कारण से मुखिया अनुपस्थित रहता है, तो सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंधन उच्च पद के किसी अधिकारी द्वारा किया जाता है. जब प्रधानमंत्री अपने आवास से किसी सभा में शामिल होने के लिए बाहर निकलते हैं तो पूरे मार्ग का एक तरफ का यातायात 10 मिनट के लिए बंद कर दिया जाता है. इस बीच, राज्य की पुलिस के दो वाहन सायरन बजाकर मार्ग पर गश्त करते हैं. गश्त यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि जिस मार्ग से प्रधानमंत्री गुजरेंगे वह पूरी तरह से क्लियर हो.
काफिले के आगे चलती है संबंधित राज्य की पुलिस
पीएम के काफिले के आगे दिल्ली या संबंधित राज्य की पुलिस की गाड़ियां चलती हैं. जो रूट क्लीयर करती हैं. स्थानीय पुलिस ही ैच्ळ को रास्ते पर आगे बढ़ने की सूचना देती है. इसके बाद काफिला आगे चलता है.
प्रोटोकॉल
रुट के लिए हमेशा कम से कम दो रूट तय किए जाते हैं
किसी को रूट की पहले से जानकारी नहीं होती है
अंतिम समय में एसपीजी रूट तय करती है
किसी भी समय एसपीजी रूट बदल सकती है
एसपीजी और स्टेट पुलिस में कॉर्डिनेशन रहता है
स्टेट पुलिस से रूट क्लियरेंस मांगी जाती है
पूरा रूट पहले से क्लियर किया जाता है
क्या एसपीजी और आईबी के लोग भी हैं जिम्मेदार?
कांग्रेस इसे प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एसपीजी, इंटेलिजेंस ब्यूरो, मिलिट्री इंटेलिजेंस का फैसला बताकर गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल रही है। प्रधानमंत्री का प्रत्येक कार्यक्रम, रूट, रैली या बैठक तय होने से पहले एसपीजी और आईबी के अफसर पूरे मामले को देखते हैं। सारे कार्यक्रम स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के आला अफसरों और आईबी के अफसरों द्वारा तय किए जाते हैं। ऐसे में गृह मंत्रालय को फौरन प्रथम दृष्टया प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार लोगों इस मामले में सवाल जवाब करना होगा। क्योंकि प्रधानमंत्री की सुरक्षा खासकर दूसरे प्रदेश या दूसरे देश में यात्रा के दौरान कई पहलुओं पर विचार किया जाता है। इसमें सबसे बड़ा पहलू मौसम का होता है। अत्याधुनिक तकनीक की मदद से अब आम आदमी भी 1 हफ्ते 2 हफ्ते आगे तक के मौसम की जानकारी पा लेता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री के फिरोजपुर दौरे पर जाने से पहले ही एसपीजी और सुरक्षा में लगी एजेंसियों को मौसम की जानकारी थी तो क्या 4 दिन पहले दिल्ली से मेरठ का रास्ता जो सड़क मार्ग द्वारा तय किया गया वह फिरोजपुर में भी लागू किए जाने के रिहर्सल था? क्योंकि अगर पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की माने तो वैकल्पिक रूट की व्यवस्था की गई थी, तीन हेलीपैड भी बनाए गए थे उसके बावजूद आखिर किसने यह फैसला लिया कि 2 घंटे की दूरी सड़क मार्ग द्वारा की जाए क्योंकि यह अब तक के इतिहास में खासकर एसपीजी के गठन के बाद किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा सड़क मार्ग से इतनी लंबी दूरी तय करने का अनोखा मामला बनता है। दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चलने वाला फ्लैग और व्हिसल वाहन 6 से 7 किमी आगे चलता है और वह रूट के हर एक पहलू की जानकारी एसपीजी के अफसरों को देता है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक प्रधानमंत्री का काफिला प्रदर्शनकारियों के जमावड़े से 8 किमी पहले ही रोक दिया गया था। इसका मतलब साफ है एसपीजी को जानकारी हो चुकी थी कि आगे प्रदर्शनकारी बैठे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री को फ्लाईओवर तक क्यों आने दिया गया? दूसरा यह है बॉर्डर स्टेट में 50 किमी की दूरी तक सुरक्षा केंद्र सरकार द्वारा बीएसएफ के हवाले की गई है। पीएम जहां फंसे वहां से 10 से 15 किमी दूर पाकिस्तान से लगा बॉर्डर शुरू होता है ऐसे में सवाल यह उठता है कि बीएसएफ का अपना इंटेलिजेंस और उनके अफसर क्या कर रहे थे? क्या उन्हें प्रधानमंत्री के दौरे की जानकारी नहीं हुई थी?
--सुरेश गांधी--
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