विशेष : अजीब दास्तां है ये, कहां शुरु खत्म.....लता दी ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

विशेष : अजीब दास्तां है ये, कहां शुरु खत्म.....लता दी ?

tribute-lata-mangeshkar
अजीब दास्तां है ये कहां शुरु खत्म, ये मंजिले हैं प्यार की न हम समझ सके न तुम....इस गाने के बोल मानों दिल को छू जाती है। एक वाक्य़ा शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब की मुझे याद है अक्सर वो भारत रत्न लता मंगेशकर साहिबा को कहते थे, कि बहन आपकी गायकी ऐसी की कभी बेसुरी होती ही नहीं। इस पर लता दीदी खिलखिलाकर हंस पड़तीं और कहतीं ये सब आपकी शहनाई के सुरों की दिखायी राह है जो मेरी कला को निखारती हैं। उस्ताद के ऊपर किताब लिखने के दौरान मैं अक्सर उनके सानिध्य में रहा। इस दौरान लता मंगेशकर की चर्चाओं का होना आम था। बात 25 जनवरी, 2001 की है, जब शाम के समय बिस्मिल्लाह खाँ के बड़े बेटे महताब हुसैन ने बी.बी.सी., लंदन से फोन पर खबर पाई थी। उस वक्त खाँ साहब दिल्ली में ही थे। थोड़ी ही देर बाद टेलीफोन फिर ट्रिंग-ट्रिंग कर उठा, जिसे आफताब ने उठाया और चिल्लाया, अब्बा! लताजी (स्वर-कोकिला लता मंगेशकर) लंदन से बोल रही हैं। खाँ साहब ने जल्दी से फोन ले लिया।  मैं लता बोल रही हूँ। सबसे पहले आपको बधाई हो! खाँ साहब, मुझे खुशी है कि हम दोनों को ;राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार एक साथ मिला तथा अब भारत का सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारत-रत्न भी साथ-साथ ही भारत सरकार ने देने की घोषणा की है। आगे कहा, खाँ साहब, भारत-रत्न सम्मान आपको बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। इस पर बड़े सहज भाव से खाँ साहब ने कहा,  लताजी जितनी सुरीली हैं, उस लिहाज से उन्हें यह सम्मान सबसे पहले मिलना चाहिए था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा. आखिरकार आपको यह अवार्ड मिल ही गया। गायन-वादन की ये दो हस्तियां, जिन्होंने हिंदुस्तानी संगीत के सबसे नए और पुराने प्रचलित शास्त्रीय संगीत तथा साधारण गीतों के जादू को बिखेरा। धीमा या तेज स्वर या गति की नियमित निरंतरता को ही तो लय कहते हैं। लयहीन कला प्राणहीन है। इन तथ्यों को दोनों माने वाली हस्तियां विधि के विधान के अनुसार शनैःशनैः अपने आखिरी सफर पर निकल गए। छोड़ गए तो पूरा खालीपन। संगीत की ये महान हस्तियां शून्यता की हस्ताक्षर के रुप में स्थापित हो गईं। लता मंगेशकर और उनकी स्वर लहरियों को सुनने वाली जाने कई पीढ़ियां इस जहां से गुजर गईं। लता दीदी भले ही इस जहां से हमेशा के लिए कूच कर गई हों, मगर आगे आने वाली पीढ़ियों की भी पसंद बनी रहेंगी लता मंगेशकर। इन्होंने अपने जीवन में कभी विवाद को पनपने नहीं दिया। जाति-धर्म से अलग मंदिर में पूजा करने वालों से लेकर मस्जिद में सजदा करने वाले संगीत प्रेमी लता की स्वर लहरियों की मुरीद बने रहेंगे। मैंने बिस्मिल्लाह खां साहब के साथ बिताए पल और उन पर किए गए कार्यों के दौरान मैने संगीत की बहुत करीब से समझा और लता जैसी स्वर कोकिला को भी करीब से देखने और सुनने का मौका मिला। आज उनके निधन की खबर सुनकर एकबार फिर से दिल अतीत की गहराईयों में खो गया....और दे गया तो आंखों आंसूओं का नजराना।





- मुरली मनोहर श्रीवास्तव -

(लेखक शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पर पुस्तक लिख चुके हैं)

कोई टिप्पणी नहीं: