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रविवार, 6 फ़रवरी 2022

विशेष : कल भी सूरज निकलेगा, सब तुझको दिखाई देंगे, पर हम न नज़र आएंगे

कल भी सूरज निकलेगा, कल भी पंछी गाएंगे, सब तुझको दिखाई देंगे, पर हम न नज़र आएंगे... लता मंगेशकर आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनका ये गाना अमर हो गया। उन्हें क्या पता कि उनका गाया ये गाना उन्हीं के लिए है। बेशक, लता मंगेशकर का म्यूजिक इंडस्ट्री में योगदान अतुलनीय था, जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। 78 साल के करियर में लता मंगेशकर ने 30 हजार से ज्यादा गाने गाए। लता को कई सारे पुरस्कारों से नवाजा गया। वे तीन बार नेशनल अवॉर्ड विनर रही। दादा साहेबवॉर्ड और भारत रत्न से भी उन्हें नवाजा गया। संगीत में सुरों की लता एक अतुलनीय आवाज का खामोश हो जाना, एक पाक साफ आवाज का गुम हो जाना, देश हीं दुनिया को भी स्तब्ध कर जाना, किसी के गले के नीचे नहीं उतर रहा। त्याग, समर्पण, संघर्ष से बनी लता। देश की सरगम में सुरों की लता। जब- जब देश भक्ति का आवाज उठेगी तब-तब उनका यह गाना ‘ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी’ लोगों के कानों में गूंजता रहेगा 

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रातोंरात कोई गायक या गायिका नहीं हो जाता। बरसों लगते हैं। रियाज की कसौटी कसती जाती है। लेकिन कभी फिर कोई आवाज ऐसी आती है, जिसे सुन कर लगता है कि उसके कंठ में वाग्देवी का वास है। लता मंगेशकर वही थीं। ईश्वरप्रदत्त प्रतिभा के साथ. कोकिल कंठी. स्वर साम्राज्ञी। लता से पहले और उनके दौर में भी अनेक मीठी-सुरीली-मखमली आवाजें हुईं मगर लता जैसी दूसरी आवाज नहीं थी। क्या भविष्य में होगी? फिल्म संगीत की वर्तमान मुर्दा स्थिति को देख करते हुए कहा जा सकता है कि शायद सदियां लग जाएं, फिर भी दूसरी लता नहीं हो पाएगी। लता की आवाज देश-दुनिया के करोड़ों लोगों की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है। कोई पल शायद ही होता होगा, जब दुनिया के किसी न किसी कोने में लता मंगेशकर का कोई न कोई गीत बज न रहा हो। सुबह के भजनों से लेकर रात को सोते हुए तकिये के पास रखे मोबाइल में बजते ओल्ड इज गोल्ड गाने। लता मंगेशकर गुजरने के बाद भी अपनी आवाज के साथ हमारे बीच बनी रहेंगी। लता सरहदों से परे थीं। उन्हें सिर्फ भारत के करोड़ों संगीत-प्रेमियों ने नहीं खोया है। पूरी दुनिया में जहां-जहां हिंदी का गीत-संगीत है, वहां-वहां लता थीं और अपनी आवाज के साथ रहेंगी। 


सुर साम्राज्ञी, परम श्रद्धेय ’स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर ने 5 साल की उम्र में काम करना शुरू कर दिया। जिस उम्र में बच्चे खेलते-पढ़ते हैं तब लता मंगेशकर ने घर की जिम्मेदारी संभाली। अपने भाई-बहनों के बेहतर भविष्य के लिए कभी शादी नहीं की। लता मंगेशकर चाहे ये दुनिया छोड़कर चली गई हैं, लेकिन अपने सदाबहार गानों की विरासत फैंस के लिए छोड़ गई हैं। लता दीदी के इन गानों ने उन्हें इस दुनिया में अमर कर दिया है। देश ही नहीं, समूचे विश्व ने एक ऐसी स्वर साधिका को खो दिया, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज से जीवन में आनंद घोलने वाले असंख्य गीत दिए। लता दीदी का तपस्वी जीवन स्वर साधना का अप्रतिम अध्याय है। सुरों की कोकिला लता मंगेशकर म्यूजिक की दुनिया का एक पूजनीय नाम हैं। लता मंगेशकर ने जब भी कोई गाना गाया अपनी आवाज से जादू चलाया। उनकी आवाज में न जाने कैसी कशिश थी, जो सुनने वाला सुनता रह जाता। पिछले कई सालों से वो म्यूजिक इंडस्ट्री पर राज कर रही थीं। लता मंगेशकर के लाखों-करोड़ों चाहने वाले हैं। लता का असली नाम कुमारी लता दीनानाथ मंगेशकर था। लता मंगेशकर के पिता का नाम पंडित दीनानाथ मंगेशकर था। उनके पिता मराठी थियेटर के मशहूर एक्टर और नाट्य संगीत म्युजिशियन थे। इसलिये संगीत की कला उन्हें विरासत में मिली थी। 


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लता जी के पिता को अपने पिता से ज्यादा माता से लगाव था। दीनानाथ की मां येसूबाई देवदासी थीं। वो गोवा के ’मंगेशी’ गांव में रहती थीं। वो भी मंदिरों में भजन-कीर्तन कर जिंदगी का गुजारा करती थीं। बस यहीं से दीनानाथ को ’मंगेशकर’ नाम का टाइटल मिला। जन्म के समय लता जी का नाम हेमा रखा गया था पर एक बार उनके पिता दीनानाथ ने ’भावबंधन’ नाटक में काम किया। जिसमें एक फीमेल कैरेक्टर का नाम ’लतिका’ था। लता जी के पिता को ये नाम इतना पसंद आया कि उन्होंने जल्दी से अपनी बेटी ’हेमा’ का नाम बदलकर ’लता’ रख दिया। ये वही छोटी ’हेमा’ है, जिसे पूरी दुनिया आज ’लता मंगेशकर’ के नाम से जानती है। संगीत की दुनिया में लता जी एक बड़ा नाम हैं और यहां आने वाला हर शख्स उन्हें देवी मानता है। अपनी गायिकी के दम पर उन्हें बड़े अवॉर्ड्स से नवाजा गया था। लता मंगेशकर को दादासाहब फाल्के और भारत रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था। अपने सिंगिंग करियर में उन्होंने कई सदाबहार गाने गाये थे, जो हमेशा ही म्यूजिक प्रेमियों के फेवरेट बने रहेंगे। 


लता मंगेशकर ने अनेक भाषाओं में हजारों गीत गाए, लेकिन एक गाना ऐसा भी है, जो अगर वह नहीं गातीं तो शायद उसका वह असर नहीं पैदा होता, जो समय की नदी के निरंतर बहते हुए आज तक बरकरार है. कवि प्रदीप ने निश्चित ही जो लिखा कि ऐ मेरे वतन के लोगों... वह बेहतरीन है. इस गीत का कोई जोड़ नहीं. कवि प्रदीप की लेखनी की कोई तुलना नहीं. मगर लता ने अपनी आवाज में जिन भावनाओं में डूब कर इस गीत को गाया, उसे सुन कर ही महसूस किया जा सकता है. सैकड़ों बार सुन चुकने के बाद भी आप जब फिर इस गाने को सुनें और इससे जुड़ जाएं तो आंखें अपने आप नम हो जाती हैं. तय है कि कुछ है इस आवाज में, आंखें यूं ही नम नहीं होतीं. लता मंगेशकर अपनी गायकी के साथ तो हमारे बीच सदा रहेंगी ही, लेकिन लोगों के साथ अपने व्यवहार के लिए भी वह सदा याद रखी जाएंगी. 70 से अधिक वर्ष सार्वजनिक जीवन में बिताने, करोड़ों-करोड़ फैन्स के साथ मिलने-जुलने और लाखों स्टेज शो करने के बावजूद उनका व्यवहार सदा शालीन रहा. उनके चेहरे पर सदा मुस्कान और विनम्रता रही. उनका सार्वजनिक जीवन एक आदर्श है. आज के दौर में अगर किसी कलाकार लोगों का इतना प्यार मिले तो आप जानते हैं कि वह रात-दिन विज्ञापन फिल्में करके पैसे कमाने की मशीन बन जाएगा. घमंड में चूर होकर, उसके पैर जमीन पर नहीं रह जाएंगे. मगर लता आदर्श थीं. अपनी कला हो या फिर जीवन में आया ऐश्वर्य, उसका भौंडा प्रदर्शन उन्होंने कभी नहीं किया. किसी से कभी ऊंची आवाज में बात नहीं की. अपने आलोचकों से भी नहीं. अपनी मिमिक्री कर चुटकुले बनाने वालों से भी नहीं.


51 साल में मिले 75 से ज्यादा अवॉर्ड 

लता दीदी को 51 साल में 75 से ज्यादा अवॉर्ड मिले। उन्हें महज 30 साल की उम्र में पहला अवॉर्ड मिला था। साल 2001 में उन्हें केंद्र सरकार ने भारत रत्न से नवाजा था। आखिरी बार उन्हें 2 साल पहले टीआरए की मोस्ट डिजायर्ड अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 


’ऐ मेरे वतन के लोगो’ सुन रो चुके हैं नेहरू-मोदी 

लता मंगेशकर इस दुनिया में नहीं रहीं। उनके निधन की खबर सुनकर आज हर आंख नम है। देश की बुलबुल अब और नहीं गा सकेगी लेकिन उनकी आवाज और गाने अमर हैं। वह हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगी। लता मंगेशकर के गाने कानों से दिल की गहराइयों में उतरते हैं। उनके कुछ गीत तो ऐसे हैं जिन्हें सुनकर बड़ी से बड़ी हस्तियां अपने आंसू नहीं रोक पाईं। ऐसा ही एक गाना है ऐ मेरे वतन के लोगों...जरा आंख में भर लो पानी। इस गाने को सुनकर उस वक्त देश के प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू भी रो पड़े थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रो चुके हैं। 


शहीदों के लिए लिखा गया था गाना

सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का गाया एक-एक गाना लोगों की रूह छूने वाला है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में उनके गाने पसंद किए जाते हैं। लता ने हजारों गाने गाए हैं, इनमें से ऐ मेरे वतन के लोगो बेहद खास है। लता ने 27 जनवरी 1963 में यह गाना दिल्ली के रामलीला मैदान में गाया था। उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। यह गाना उन सैनिकों की याद में लिखा गया था जो कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हो गए थे। लता मंगेशकर से पहले यहा गाना गाने से मना कर दिया था। गाने के लिरिसिस्ट कवि प्रदीप ने लता को मनाया था। लता लाइव परफॉर्मेंस के पहले सिर्फ एक बार रिहर्सल कर पाई थीं। लता ने खुद ये सब खुलासे, 2014 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में किए थे। 


रहें ना रहें हम, महका करेंगे 

लता जी देश की धरोहर हैं, उनकी कमी हमेशा खलेगी। ऐसी हस्ती सदियों-सदियों तक अमर रहती हैं। उनके गीत सदाबहार हैं। उनके इस दुनिया से चले जाने से पूरे देश में शोक की लहर है। लता मंगेशकर के निधन से हर कोई दुखी है। 92 साल की उम्र में लता मंगेशकर के चले जाने से बॉलीवुड शोक में डूब गया है। लता मंगेशकर ने अपने करियर में 30 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं। उन्होंने कई भाषाओं में गाने गाए हैं। इतना ही नहीं लता दीदी ने हर दशक की टॉप एक्ट्रेस के लिए अपनी आवाज दी है। उन्हें में से एक श्रीदेवी भी हैं। लता मंगेशकर श्रीदेवी की एकिं्टग की दीवानी थीं। उन्होंने श्रीदेवी के लिए कई गाने भी गाए हैं। लता मंगेशकर के गानों की वजह से श्रीदेवी इंडस्ट्री में छा गई थीं। दोनों ही एक-दूसरे की बहुत बड़ी फैन थीं। जहां एक तरफ लता दीदी श्रीदेवी की एकिं्टग की तारीफ करती थीं तो वहीं श्रीदेवी ने एक बार कहा था कि जब लता जी मेरे लिए गाना गाती हैं मुझे लगता है मेरा आधा काम हो जाता है। वह सिर्फ गाना नहीं गाती थीं बल्कि इमोशन्स भी एक्सप्रेस करती थीं। हम अभिनेत्रियों को बस उनकी आवाज फॉलो करनी होती थी। 


मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां हैं

लता मंगेशकर ने 1980 में प्लेबैक सिंगिंग छोड़कर क्लासिकल म्यूजिक पर फोकस करने का फैसला लिया था। मगर यश चोपड़ा ने लता मंगेशकर से कहा था कि वह चाहते हैं कि वह उनकी फिल्म चांदनी के लिए गाएं। लता जी श्रीदेवी की वजह से गाने के लिए तैयार हुईं थीं और उन्होंने ये गाना गाया था। इस गाने से श्रीदेवी हर जगह छा गई थीं। श्रीदेवी और अनिल कपूर की फिल्म लम्हे का मोरनी बागा मा गाना लता मंगेशकर ने गाया था। इस गाने पर श्रीदेवी ने बेहद खूबसूरत डांस किया था। लता मंगेशकर ने श्रीदेवी की फिल्म चांदनी में दो गाने गाए थे। इसमें दूसरा गाना तेरे मेरे होठों पर गाना था। इस गाने को श्रीदेवी और ऋषि कपूर पर फिल्माया गया था। श्रीदेवी की नगिना फिल्म हिट साबित हुई थी। लता जी ये गाना नहीं गाना चाहती थीं मगर फिर कंपोजर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने उन्हें ये गाना गाने के लिए मनाया था। ये गाना सुपरहिट साबित हुआ था। 


आंख यूं ही नम नहीं होती...

लता मंगेशकर के करिअर की तरह उनका जीवन भी कई मायनों में बेहद उल्लेखनीय है। पिता दीनानाथ मंगेशकर (1900-1942) की नाटक मंडली थी और रंगमंच पेशा था। पिता ने लता को अभिनय के साथ-साथ गीत-संगीत में भी तैयार किया। लेकिन पिता का साया बहुत कम में उनके सिर से उठ गया। मां समेत चार भाई-बहनों की जिम्मेदारी सबसे बड़ी, मात्र 13 साल की लता पर आ गई। यहां से आप उनके जीवन में जिम्मेदारी, समझ, स्नेह, करुणा, ममता और निस्वार्थ सेवा को देखते हैं। उन्होंने जीविका के लिए, परिवार के पालन-पोषण के लिए संघर्ष किया। पिता से जो विरासत मिली थी, उसे ही लेकर वह आगे बढ़ीं और सिनेमा में मौके तलाशे। कुछ अभिनय. कुछ गीत. आसान कुछ नहीं था. उस पर परिवार को संभालना और भाई-बहनों का जीवन संवारना. लता निरंतर लगी रहीं. यह उनके जीवन की तपस्या थी. आज पूरा मंगेशकर परिवार समृद्ध है और लगभग सभी एक ही जगह पर रहते हैं. लता उनके लिए वट-वृक्ष बन गईं. एक समय वह भी था जब फिल्म महल (1949) के गाने, आएगा आने वाला... की रिकॉर्डिंग के लिए लता स्लीपर पहन कर स्टूडियो गई थीं और एक समय यह भी है कि अपने पीछे वह तीन सौ करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति छोड़ गई हैं. लता अपने भाई-बहनों से लेकर पूरी फिल्म इंडस्ट्री और जाने-पहचाने-अनजाने लोगों के लिए दीदी बन गईं. उनकी मातृभाषा मराठी में, लता ताई. उन्होंने अपने हर मिलने-जुलने वाले को किसी बड़ी बहन के जैसा स्नेह और आशीर्वाद दिया. लता का जीवन देखें तो सचमुच वह बड़ी बहन होने का कर्तव्य निभाती रहीं. अगर रामायण में आपको बड़े भाई का आदर्श, त्याग और छोटों के प्रति स्नेह भगवान राम में दिखता है तो बड़ी बहन के रूप में वही आदर्श, त्याग और छोटों के प्रति स्नेह कैसा हो सकता है, वह आप लता दीदी के जीवन में देख सकते हैं. छोटे भाई-बहनों को बनाने-संवारने के झंझावातों के बीच उन्हें शायद पता ही नहीं चला कि उनके जीवन में कभी बसंत आया या नहीं. हालांकि बसंत की आहट मिली भी होगी तो निश्चित ही उन्होंने अपने भाई-बहनों तथा उनके परिवार के लिए उसे अनदेखा कर दिया होगा.


उनकी आवाज अब स्वर्ग में गूंजेगी

सब कुछ होकर भी अंत में वह सबकी दीदी थीं. उनके व्यवहार में बड़प्पन झलकता था. उनकी विनम्रता और शालीनता सदा याद रहेगी. उन्हें भारत रत्न दिया गया तो वह सचमुच वैसी थीं. अपनी सादगी से उन्होंने फिल्म, खेल और राजनीति की दुनिया में दोस्त बनाए और निभाए. वह जब भी विदेश जाती थीं तो अपने दोस्तों-परिचितों के लिए तोहफे खरीद कर लाती थीं. ऐसा करना उन्हें अच्छा लगता था. मिलने-जुलने वाले उनके घर से खाली हाथ नहीं लौटते थे. लता मंगेशकर के गुजर जाने से सुरों की दुनिया में एक सन्नाटा पैदा हो गया है. लेकिन महानायक अमिताभ बच्चन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपने ब्लॉग में सही लिखा है कि उनकी आवाज अब स्वर्ग में गूंजेगी.


’मुझे ताउम्र अफसोस रहेगा’

दिवंगत स्वर कोकिला लता मंगेशकर की जिंदगी से जुड़े इतने किस्से कहानियां हैं जिन्हें जानने बैठो तो शायद कई दिन निकल जाएं। ऐसा ही एक किस्सा है लता मंगेशकर की शादी का. ये बात तो हर कोई जानता है कि लता मंगेशकर ने कभी शादी नहीं की, ताउम्र वो कुंवारी ही रहीं और गायकी की उनकी पहली मुहब्बत रही. लेकिन बॉलीवुड के एक ऐसे जाने माने सिंगर और अभिनेता थे जिन्हें लता दीदी बहुत पसंद करती थी, इतना ही नहीं वो उनसे शादी भी करना चाहती थीं, लेकिन सिंगर की जीते जी ये मुमकिन ना हो सका. दरअसल, ये बात उन दिनों की है जब लता मंगेकर बहुत छोटी थीं और अपने पिता के साथ के.एल. सहगल के गाने सुनती थीं. लता ताई, के.एल सहगल के गाने सुनते-सुनते ही अपने पिता के साथ रियाज़ करती थीं. सिंगर की आवाज़ लता मंगेशकर की इतनी पसंद थी कि बड़े होकर उनसे शादी करना चाहती थीं. एक इंटरव्यू में लता ताई ने ख़ुद इस बात का जिक्र भी किया था. सिंगर ने कहा था,  ’जहां तक मुझे याद है, मैं हमेशा के.एल सहगल से मिलना चाहती थी. मैं कहा करती थी कि जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तो इनसे शादी करूंगी. तब पापा मुझे समझाते थे कि जब तुम शादी करने उम्र में आ जाओगी तब तक सहगल साहब बूढ़े हो चुके होंगे.’ दुख की बात ये रही कि लता मंगेशकर कभी के.एल. सहगल से मिल तक नहीं पाईं.  सिंगर ने कहा था  ’मुझे हमेशा हमेशा इस बात का दुख रहेगा कि मैं उनसे कभी मिल नहीं पाई. लेकिन बाद में उनके भाई की मदद से मै उनके पत्नी आशाजी और बच्चों से मिली थी जिन्होंने मुझे के.एल सहगल साहब की अंगूठी तोहफे में दी थी’. कहा जाता है उस दौर में लता मंगेशकर अपने लिए एक रेडियो खरीदकर लाई थीं. जब उन्होंने रेडियो चलाया तो उन्हें के.एल. सहगल के निधन की खबर सुनाई थी. अपने पसंदीदा गायक के निधन की खबर सुन लता दीदी को झटका लगा था जिसके बाद वो रेडियो दुकान पर वापस कर आई थीं.





--सुरेश गांधी--

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