विचार : खतरनाक है यादवों का तेजस्‍वी यादव में ‘विलीन’ हो जाना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 2 अप्रैल 2022

विचार : खतरनाक है यादवों का तेजस्‍वी यादव में ‘विलीन’ हो जाना

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बिहार की राजनीति में यादव एक अपरिहार्य फैक्‍टर है। बिहार की राजनीति की धुरी है यादव। इसके समर्थन या विरोध के बिना राजनीति संभव नहीं है। इस जाति के सर्वमान्‍य राजनीतिक नेता हैं तेजस्‍वी यादव। विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। यह राजनीतिक फैक्‍ट है। तेजस्‍वी यादव पूर्व मुख्‍यमंत्री लालू यादव के पुत्र हैं, यही उनकी सबसे बड़ी योग्‍यता है। इसके अलावा भी उनमें कई योग्‍यताएं हैं। अच्‍छे वक्‍ता हैं। उन्‍होंने अपने आप को अच्‍छा नेतृत्‍वकर्ता भी साबित किया है। उनेक साथ काम करने वालों की एक अच्‍छी टीम भी है। ये सब चीजें तेजस्‍वी यादव को ताकतवर बनाती हैं। लेकिन यादवों का दुर्भाग्‍य है कि वे अपनी राजनीति सत्‍ता का पर्याय तेजस्‍वी यादव को मानते हैं। यादवों को लगता है कि तेजस्‍वी यादव मुख्‍यमंत्री बनेंगे, तभी यादवों की राजनीतिक सत्‍ता आयेगी। यादवों का एक बड़ा हिस्‍सा खुद को तेजस्‍वी यादव में ‘विलीन’ कर लिया है। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है, आत्‍मघाती कदम है।


आज बिहार में यादवों के पास सबसे ज्‍यादा राजनीतिक सत्‍ता और ताकत है। इस राजनीतिक सत्‍ता या ताकत में तेजस्‍वी यादव को कोई योगदान नहीं है। हर व्‍यक्ति ने अपने-अपने संघर्षों और सौदों के कारण यह सत्‍ता हासिल की है। राजनीतिक सत्‍ता में पैसा की भी बड़ी भूमिका रही है। इन पैसों का इंतजाम भी रानजीतिक पदों के लिए निर्वाचित सदस्‍यों ने खुद किया है। इसमें तेजस्‍वी यादव का कोई योगदान नहीं रहा है। राजनीतिक पदों की चर्चा करें तो बिहार के 38 जिला परिषद अध्‍यक्षों में 14 रिजर्व हैं। शेष अनारक्षित 24 सीटों में 11 अध्‍यक्ष पद पर यादव निर्वाचित हुए हैं। दरभंगा जिला परिषद अध्‍यक्ष (सुरक्षित) ने यादव से शादी की है। उसे जोड़कर 12 जिला परिषद अध्‍यक्ष यादव हैं। मतबल 50 फीसदी जिला परिषद अध्‍यक्ष पद पर यादव निर्वाचित हुए हैं। इसमें तेजस्‍वी यादव का कोई योगदान नहीं हैं। प्रदेश में 1160 जिला परिषद सदस्‍य निर्वाचित हुए हैं। इसमें 737 पद अनारक्षित हैं। इन 737 अनारक्षित पदों में 235 यादव हैं। अनारक्षित 31 प्रतिशत सीटों पर यादव निर्वाचित हुए हैं। इसमें तेजस्‍वी यादव का कोई योगदान नहीं है। ग्रामीण सत्ता का सबसे महत्‍वपूर्ण पद मुखिया का है। इसका कोई जातीय डाटा उपलब्‍ध नहीं है, लेकिन जिला परिषद सदस्‍यों के आधार पर आकलन करें तो अनारक्षित सीटों पर 25 से 30 फीसदी पदों पर यादव मुखिया निर्वाचित हुए हैं।


विधान सभा में कार्यों के निष्पादन के लिए समितियों का गठन किया जाता है। 22 समितियों में 5 समितियों के सभापति यादव हैं। इसके चयन में पार्टी की भूमिका महत्‍वपूर्ण होती है। लेकिन विधायक के रूप में उनकी व्‍यक्तिगत उपलब्धियों की भी भूमिका होती है। विधान सभा में 40 सीट आरक्षित है। 203 अनारक्षित सीटों में 52 विधायक यादव हैं। मतलब लगभग 25 फीसदी अनारक्षित सीटों पर यादव निर्वाचित हुए हैं। इस निर्वाचन में पार्टी की बड़ी भूमिका होती है। बड़ी संख्‍या में जीत का श्रेय अकेले तेजस्‍वी यादव को नहीं जाता है। इन तथ्‍यों और आंकड़ों के माध्‍यम से यह बताना चाहते हैं कि आज यादवों को जो राजनीतिक सत्‍ता और सामाजिक सम्‍मान हासिल है, उसमें तेजस्‍वी यादव की कोई भूमिका नहीं हैं। यह यादवों के अपने संघर्ष और संसाधनों के कारण है। वे अपने स्‍थानीय समीकरण और विवेक के आधार पर निर्णय लेकर अपनी सत्‍ता हासिल करने में सफल हुए हैं। यादवों के बड़े हिस्‍से को लगता है कि बिहार में तेजस्‍वी यादव की सरकार बनाने में उनकी बड़ी भूमिका है। इसके लिए सभी जायज-नाजायज समझौते को स्‍वीकार करने में भी परहेज नहीं करते हैं। क्‍योंकि ये लोग खुद को तेजस्‍वी यादव में अपनी छवि देखते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे लालू यादव में अपनी छवि तलाशते थे।


लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। तेजस्‍वी यादव में लालू यादव की छवि तलाशना अपने आप में हास्‍यास्‍पद है। लालू यादव जनता के नेता थे, जनता से उनको ताकत मिलती थी। तेजस्‍वी यादव मैनेजमेंट के नेता हैं और उनको मैनेजरों से ताकत मिलती है। तेजस्‍वी यादव के पास कोई विधायक भी अपनी समस्‍या को लेकर जाते हैं तो तेजस्‍वी उन्‍हें मैनेजरों के पास ‘फारवर्ड’ कर देते हैं। तेजस्‍वी यादव और विधायकों के बीच सिर्फ ‘प्रणाम’ भर का रिश्‍ता है। वैसी स्थिति में कोई यादव तेजस्‍वी यादव को अपनी सत्‍ता का माध्‍यम बनाना चाहता है तो यह खतरनाक सोच है। हम अपनी बात छोटे से प्रसंग के साथ समाप्‍त करना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव में जहानाबाद सीट एक यादव निर्दलीय उम्‍मीदवार के कारण राजद हार गया था। चुनाव के बाद लालू यादव और निर्दलीय उम्‍मीदवार के पिता की मुलाकात हुई। लालू यादव ने उनसे शिकायत के लहजे में कहा कि आप अपने बेटे को चुनाव लड़ने से रोक नहीं पाये। इस पर थोड़ी देर चुप रहने के लिए पराजित निर्दलीय उम्‍मीदवार के पिता ने कहा- आप ही अपने पुत्र को रोक लेते तो यह नौबत ही नहीं आती। 






--- वीरेंद्र यादव ---

वरिष्‍ठ संसदीय पत्रकार, पटना 

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