आलेख : जहां वैवाहिक दाम्पत्य को मिलता है सफलता का आर्शीवाद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

आलेख : जहां वैवाहिक दाम्पत्य को मिलता है सफलता का आर्शीवाद

काशी से 15 किमी दूर चोलापुर के मुहाएं-बाबतपुर मार्ग पर स्थित भैठौली एक ऐसा गांव है जहां मां दुर्गा का भव्य मंदिर न सिर्फ लोगों के आस्था का केन्द्र है, बल्कि वैवाहिक दाम्पत्य को मिलता है सफलता का आर्शीवाद। मंदिर का प्रमुखता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्राचीन दुर्गा मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर में वैवाहिक लग्न के शुभ मुहूर्त में हर रोज दर्जनों शादियां होती है। खास यह है कि इस मंदिर में वर-कन्या के सात फेरे लेने के बाद मंदिर के पुजारी उन्हें दाम्पत्य सूत्र में बंधने का सर्टिफिकेट भी प्रदान करते है। मंदिर में दर्शन के लिए आसपास के ग्रामीणों सहित पड़ोसी जनपदों से भी हजारों लोग दर्शन-पूजन के लिए आते है। नवरात्र के दिनों में तो यहां लाखों श्रद्धालु मां के दरबार में मत्था टेकते है और साथ ले जाते है मन्नतों की झोली 

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वैसे भी सनातन धर्म में शक्ति की देवी मां दुर्गा ही है और जहां कहीं भी मां का मंदिर है, वहां दर्शन-पूजन के लिए भक्तों का उमड़ना स्वाभाविक है। लेकिन चमत्कार की ढेरों कहानियां अपने अंदर समेटे प्राचीन दुर्गा माता मंदिर अपने आप में अनूठा है। मंदिर के पुजारी मनोज मिश्रा कहते है यहां मां को किसी ने स्थापित नहीं किया है, बल्कि स्वयं प्रकट हुई है। उनके मुताबिक गांव के ही स्वर्गीय राजनाथ सिंह को मां ने साक्षात दर्शन दिया है और उन्हीं की प्रेरणा से आज भव्य मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का क्रेन्द बन गया है। कहते है मां के इस मंदिर में जिस किसी ने भी विधि-विधान से दर्शन पूजन कर ली, उसकी पूरी हो जाती है सभी मुरादें। ग्रामीण मां को अपनी कुलदेवी के तौर पर भी पूजते हैं। अब मंदिर की महत्ता इतनी बढ़ गयी है कि लोग शादी-ब्याह के सीजन में मां के दरबार में ही सात फेरे भी लेते है। मंदिर परिसर में ही विवाह संपंन कराने के लिए मंडप सहित सारे साधन मौजूद है। खास यह है कि विवाह संपंन होने के बाद मंदिर के पुजारी दाम्पत्य को वैवाहिक सर्टिफिकेट भी देते है। इसके लिए मात्र आधार कार्ड या अन्य कोई प्रमाणिक कार्ड उन्हें मुदिर के पुजारी को देना होता है। पुजारी की माने तो सीजन में हर रोज दरबार में दर्जनों शादियां होती है। मां के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर रोज तो हजारों श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचते ही है, नवरात्र के दिनों में यह संख्या लाखों तक पहुंच जाती है। कहते है मंदिर में जिस किसी ने भी विधि-विधान से दर्शन पूजन कर ली, उसकी पूरी हो जाती है सभी मुरादें। इस मंदिर में भक्त दूर दूर से मां के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। 


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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता दुर्गा देवी की उत्पत्ति राक्षसों का वध करने के लिए हुई थी, लेकिन अब मां लाखों-करोड़ों भक्तों का भी कल्याण करती है। पुजरी कहते है कि एक रोज गांव के राजनाथ सिंह किसी काम से यहां पहुंचते थे। उनकी परेशानी को देखते हुए मां ने वृद्धा के रुप में उन्हें दर्शन दिया। लेकिन वृद्धा की अजीबोगरीब बनावट को देखते हुए वे भयभीत हो गए और वहां से भाग खड़े हुए। घर पहुंचते ह ीवे अपनी आप बीती बताते उसके पहले उनका पूरा शरीर लाल पड़ गया और जगह-जगह चकत्ते निकल आएं। इस दृश्य व आप बीती जाने के बाद परिवारीजनों ने मान लिया कि वो वृद्धा नहीं मां ही थी। जब परिवारीजन उस स्थल पर पहुंचे तो वृद्धा गायब थी। परिवारीजनों ने वहां पहले से मौजूद नीम के पेड़ के समक्ष संकल्प लिया कि मां राजनाथ सिंह को ठीक कर दें उनके लिए यहां भव्य मंदिर निर्माण करायेंगे। संकल्प लेते ही राजनाथ सिंह कुछ ही घंटे में पूरी तरह स्वस्थ हो गए। इसके बाद देखते ही देखते 12 साल के अंतराल में यहां भव्य मंदिर तैयार हो गया। 2015 से भव्य मंदिर निर्माण के बाद यहां श्रद्धालुओं का जमघट होने लगा।  इस मंदिर में नीम का पेड़ अहम हिस्सा है। नवरात्र में यह मंदिर देखने योग्य होता है। इस मंदिर की साज-सज्जा आंखों को चकाचौंध कर देने वाली होती है। यहां भक्त दुर्गा देवी का आशीर्वाद और देवी के दरबार में हाज़िरी लगाने आते हैं। मान्यता है कि यहां देवी खुद कामनाएं सुनती हैं। जो अपनी परामर्श शक्ति और लोकप्रियता के कारण प्रसिद्ध है। वर्तमान में यह तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल भी माना जाता है। इस मंदिर की अपनी अनेक विशेषतायें हैं जो अपने आश्चर्यों से भक्तों को आश्चर्य कर देती हैं। इस प्राचीन दुर्गा माता मंदिर में नवरात्रि के पावन अवसर पर श्रद्धालु सुबह से ही दर्शन के लिए पहुंचने लगते है। कतारबद्ध भक्त शाम तक मां दरबार में जयकार लगाते हुए मत्था टेकते जाते है। भक्त प्रसाद के साथ मां को फल-फूल, पूडी और हलुआ चढ़ाते हैै। दर्शनार्थी सत्यनारायण व मंगरु बताते है कि मैं प्रत्येक नवरात्रि में माता के दर्शन के लिए जरूर आता हूं। दर्शन से बहुत शांति मिलती है। कोरोना में मंदिर बंद होने से दर्शनार्थी नहीं आ रहे थे, लेकिन इस बार नवरात्रि में लाखों श्रद्धालुओं ने दर्शन-पूजन किया। या यूं कहे दो वर्ष से जहां यहां सन्नाटा छाया था, अब रौनक फिर लौट आयी है। मंदिर में वाराणसी के साथ ही मिर्जापुर, गाजीपुर, जौनपुर और भदोही से भी भक्त यहां माता का दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर में ही भगवान विष्णु व माता दुर्गा की मूर्ति स्थापित है। नवरात्र में पूरे दिन भक्तों द्वारा भजन कीर्तन होता रहता है और भक्तों में प्रसाद का भी वितरण किया जाता है। 


बगैर एड्रेस प्रूफ के नहीं मिलता सर्टिफिकेट 

प्यार हुआ, परवान चढ़ा, मंदिर में जाकर माला बदल लिए और हो गए एक दूजे के लिए। भगवान को साक्षी मानकर सिंदूर दान किया और बन गए पति पत्नी। अब ऐसा नहीं है। सामाजिक रूप से पति पत्नी का दर्जा पाने के लिए अब मंदिरों में भी शादी करने पर कई तरह के सर्टिफिकेट दिखाने पड़ेंगे। इसमें जन्म प्रमाण पत्र, पता और पहचान पत्र जरूरी है। लड़का हो या लड़की, हरेक के लिए यह अनिवार्य हो गया है। साथ ही लड़की की ओर से अभिभावक की उपस्थिति भी आवश्यक कर दिया गया है। अब नियमों की कड़ाई से लागू होने के बाद मंदिरों में शादी करने वालों की संख्या तो घट गई है, लेकिन मंदिर प्रबंधक इसे समाज हित के अत्यावश्यक कदम मानते हैं।


क्यों जरूरी है प्रमाण पत्र

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विभिन्न मंदिर कमेटियों का कहना है कि पिछले दिनों कई ऐसे केस आए जिसमें मंदिरों में शादी करने वाली लड़कियों के अभिभावकों ने लड़के के विरुद्ध जबरन शादी करने का आरोप लगाया। साथ ही लड़की के बालिग नहीं होने से शादी को अवैध करार दिया गया। प्रेमियों को रोकने के लिए तो भगवान के पास कोई कानून नहीं है, लेकिन समाज के नियम से बंधे मंदिर प्रबंधन कमेटी को कानून का पालन तो करना ही पड़ता है। ऐसे में मंदिर प्रबंधन पर जैसे तैसे शादी कराने का आरोप भी लगा। इससे बचने के लिए अब मंदिरों द्वारा सभी कानूनी प्रक्रिया का ख्याल रखा जाने लगा है।


क्या कहते हैं मंदिर प्रबंधक

मंदिर विकास समिति के संजयपुरी ने बताया कि पहले कोई भी मंदिर में आकर पुजारी से शादी करा देने का आग्रह करते थे। लेकिन पिछले कुछ महीनों से इसमें कड़ाई कर दी गई है। लड़का और लड़की से फॉर्म भराया जाता है। फोटो और बर्थ सर्टिफिकेट, एड्रेस प्रूफ, आईडी प्रूफ देखा जाता है। उसके बाद ही शादी का रस्म निभाया जाता है। शादी में लड़की की ओर से एक और लड़का की ओर से एक अभिभावक की उपस्थिति अनिवार्य होता है। यहां शादी के 10 दिन पहले सूचना देना पड़ता है। प्रमाण पत्र भी साथ ही देना होता है। शादी के समय लड़का और लड़की के पिता का उपस्थित रहना अनिवार्य होता है। पिता के नहीं रहने पर माता या चाचा, भाई या निकटतम परिजन को उपस्थित रहना होता है। साथ ही दो अन्य गवाह भी चाहिए।


कौन कौन सी सर्टिफिकेट है जरूरी

एज प्रूफ (जन्म प्रमाण पत्र)

शादी करने वाले लड़का, लकड़ी और गवाहों का दो दो पासपोर्ट साइज फोटो

सरकारी फोटो पहचान पत्र

एड्रेस प्रूफ।




-सुरेश गांधी-

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