
संसद में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी के बयान को लेकर खूब हंगामा हुआ। उन्होंने राष्ट्रपति शब्द का स्त्रीलिंग कर दिया। पत्रकारों से वार्ता क्रम में कह दिया कि हिंदुस्तान की राष्ट्रपत्नी सबके लिए है तो हमारे लिए क्यों नहीं? इसे लेकर देश भर में राजनीतिक विवाद हो रहा है।इसे एक आदिवासी महिला के अपमान से जोड़कर देखा जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगी जा रही है।भाजपा सांसदों और सोनिया गांधी के बीच इसे लेकर तल्ख बहस भी हुई है। कांग्रेसियों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम विरला से इसकी शिकायत भी की है और कहा है कि इस मामले को संसद के विशेषाधिकार समिति के समक्ष भेज जाना चाहिए। होना तो यह चाहिए था कि कांग्रेसी सांसद अधीर रंजन चौधरी के आपत्तिजनक बयान की आलोचना करते लेकिन उन्होंने तो आलोचकों की जबान ही बंद करने की पहल शुरू कर दी है। सोनिया गांधी को ऐतराज है कि जब अधीर रंजन ने माफी मांग ली है तो मेरा नाम क्यों लिया जा रहा है।यह बात उस कांग्रेस की अध्यक्ष कह रही हैं जो आए दिन छोटी-छोटी बात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जवाब मांगती रही है। उन पर माफी मांगने का दबाव बनाती रही है।जिनके पुत्र उन्हें राजा-राजा कहकर चिढ़ा रहे हैं।यह जानते हुए भी की लोकतंत्र में राजा नहीं,जनता का प्रतिनिधि होता हैं।लेकिन कांग्रेस ने तो लोकतंत्र में भी राजतंत्र के ही दीदार किए हैं। किसी दल का मुखिया वैसे भी अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता,यह बात सोनिया गांधी को समझनी ही चाहिए। जब उपलब्धियों का श्रेय और प्रेय उनके खाते का विषय बनता है तो पार्टी की अनुपलब्धियो और गड़बड़ियों का ठीकरा उनके सिर क्यों न फूटे। वैसे भी अधीर रंजन चौधरी के माफी मांगने का अंदाज भी निराला है।इसे प्रक्षिप्त नमस्कार जितना ही अपमानजनक माना जा सकता है। उन्होंने कहा है कि बंगाली हूं।हिंदी आती नहीं। जुबान फिसल गई। मुझे फांसी पर चढ़ा दीजिए।सत्ताधारीदल इसे तिल का ताड़ बना रहे हैं।मैं राष्टपति द्रौपदी मुर्मू से मिलकर माफी मांगूंगा।इन पाखंडियों से नहीं। इसका क्या मतलब है और यह किस तरह की माफी है।अपमान सार्वजनिक और क्षमा याचना एकांत में। राष्टपति व्यक्तिगत तो होता नही,वह राष्ट का सम्मान भाव है।उसका अपमान देश का अपमान है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे व्याकरणीय भूल करार दिया है। माना कि यह व्याकरण की गलती है लेकिन अधीर रंजन की जुबान तो कई बार फिसली है और उनकी इन गलतियों के चलते कांग्रेस को भी अनेक बार सांसद में असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है। जिस वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को वह सदन में निर्बला सीतारमण कह चुके है और बाद में बहन कहकर उनसे माफी मांग चुके हैं,उन सीतारमण ने कहा है कि अधीर की जुबान नहीं फिसली,उन्होंने जान- बूझकर राष्ट्रपति और इस देश का अपमान किया है। अधीर रंजन चौधरी वैसे भी पद की गरिमा और महत्व नहीं समझते।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंदी नाली कहने का अपराध वे कई बार कर चुके है। एक बार इंदिरा गांधी को गंगा और मोदी को गंदी नाली कह चुके है।स्वामी विवेकानंद से उनकी तूलना किए जाने पर इसमें उन्हें बंगाली समाज का अपमान नजर आया था और वे संसद में नरेंद्र मोदी को नाली बता चुके थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वे घुसपैठिया तक कह चुके है।विशेषाधिकार हनन की नोटिस झेल चुके हैं।माफी मांग चुके हैं। अशालीनता की हद तक जाने का उनका पुराना इतिहास रहा है।अधीर के वचनों के तीर से भाजपा ही घायल होती रही हो,ऐसा नहीं है।कांग्रेस को भी ये तीर पलट कर घायल करते रहे हैं। नेशनल हेराल्ड धनशोधन मामले में उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय के महानिदेशक को मोदी द्वारा इडियट बना दिए जाने जैसी टिप्पणी की थी और इस पर सुब्रह्मयम स्वामी से सुपर इडियट होने का खिताब हासिल कर चुके हैं।सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उन्हें बताया था कि प्रवर्तन निदेशालय के महानिदेशक का चयन सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश,प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष मिलकर करते हैं। नेता प्रतिपक्ष के पद पर रहकर ऐसी बात तो कोई सुपर इडियट ही कर सकता है। जो व्यक्ति प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिए खरीदे गए विमान में स्वीमिंग पूल की कल्पना कर सकता है,उससे यह देश क्या उम्मीद रख सकता है नफरत और द्वेष से मन भरा हो तो अच्छी बात निकलती ही कब है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौत का सौदागर कह चुकी हूं तो पार्टी के अन्य नेताओं से अच्छा बोलने की तो कल्पना ही व्यर्थ है।
सच तो यह है कि इसदेश में लोकतंत्र का चीरहरण आम बात हो गई है।आजाद भारत में व्यंग्य की विसात पर फिर एक द्रौपदी खड़ी है। महाभारत काल की द्रौपदी सम्राट युधिष्ठिर की पत्नी थी। उसे भरी राजसभा में लांछित किया गया था। बलात नग्न करने का प्रयास किया गया था।इससे पूर्व उसे पांच पतियों को छोड़कर दुर्योधन की पत्नी बनने का प्रस्ताव दिया गया था। द्रौपदी को अपने पातिव्रत्य धर्म का स्वाभिमान प्रकट करना पड़ा था। उसने दुर्योधन को ललकारते हुए कहा था-पति प्रेम रूप जल में अपने को मीन समझती है कृष्णा।पति के आगे सुरपति को भी अति दीन समझती है कृष्णा।पतिव्रत पर तीनों लोकों की संपत्ति वारती है कृष्णा। तेरे इस नश्वर तुच्छ विभव पर लात मारती है कृष्णा। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से उसकी लाज तो बच गई थी लेकिन उन फिकरों का क्या जो उस पर कसे गए थे। शरीर के घाव तो फिर भी भर जाते हैं लेकिन मन पर लगे घाव तो उम्र भर सालते रहते हैं। मधुर वचन है औषधि कटुक वचन है तीर।श्रवण द्वार ह्वै संचरै साले सकल शरीर। सम्राट की पत्नी राज्य की प्रथम नागरिक होती है।प्रथम नागरिक का अपना सर्वोच्च सम्मान होता है। महाभारत युद्ध जन्य महाविनाश की पटकथा तो द्रौपदी के अपमान के पन्नों पर ही लिखी गई थी।गीता जैसा दुर्लभ ज्ञा
न भी इसी आलोक में प्रकट हुआ था। मौजूदा द्रौपदी भी कुछ कम नहीं हैं।वे इस देश की राष्ट्रपति हैं। प्रथम नागरिक हैं।उनका सम्मान हर भारतवासी का परम कर्तव्य है। राजनीतिक मतभेद अपनी जगह है पर मनभेद तो नहीं होना चाहिए। संसद अपने शालीन व्यवहार और वार्तालाप के लिए जानी जाती है।बड़ी और कड़ी बात भी कुछ इस तरह कही जानी चाहिए कि उसका लोक पर असर पड़े लेकिन हाल के दिनों में संसद में जिस तरह की बातें हो रही हैं,उसे श्लाघनीय तो नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रपति की गरिमा का ध्यान तो रखा ही जाना चाहिए। राष्ट्रपिता शब्द पर कभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते कल्याण सिंह ने सवाल उठाया था। उन्होंने गांधी जी को राष्ट्रपिता मानने से इनकार कर दिया था।इस पर कांग्रेस ने तब देश भर में प्रतिवाद किया था। अब राष्टपति और राष्ट्रपत्नी शब्द पर बवाल हो रहा है। संभव है,इस तरह की संकीर्ण सोच आगे भी सामने आए,इसलिए इस पदनाम में बदलाव की दिशा में भी सोचा जाना चाहिए। कोई व्यक्ति राष्ट्र का पति ,कोई महिला राष्ट्र की पत्नी क्यों कही जाए।यह उसके लिए भी और राष्ट्र की महिलाओं के लिए भी एक तरह से निरादर की बात है।इसलिए उचित होगा कि इस तरह के द्विअर्थी शब्दों को बदल देने में ही भलाई है। फोड़ा पके,इसके पहले उसे फोड़ देने और सुखा देने में ही भलाई है।इस तरह की अनर्गल बातों से राष्ट्रीय ही नहीं,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि खराब होती है।जो देश अपने संविधानिक पदों पर बैठे लोगों का सम्मान नहीं कर सकता,जिस देश का कोई अधीर रंजन भारत आए यूरोपियन यूनियन के सांसदों को किराए का टट्टू करार दे,उसका वैश्विक स्तर पर उपहास नहीं तो और क्या होगा।छवि बनाने में वर्षों लगते हैं और छवि बिगड़ने में एक पल की गलती ही काफी होती है। काश,यह देश इस दिशा में सकारात्मक सोच पाता।
--सियाराम पांडेय'शांत'--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें