कविता : गर्भ में भी मुझ पर लटक रही थी एक तलवार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 31 जुलाई 2022

कविता : गर्भ में भी मुझ पर लटक रही थी एक तलवार

गर्भ में भी मुझ पर लटक रही, थी एक तलवार।।


जन्म लिया धरती पर फिर भी, थी मैं हमेशा लाचार।।


मेरे आने की खबर सुनकर, बहुत दुखी था मेरा परिवार।।


मां पर उठ रहे थे कई सवाल, घर में हो गया था एक बवाल।।


बचपन जाने कहां खो गई, नहीं मिला कभी परिवार का प्यार।।


बरस रही थी मेरी आंखें, होता देख ये अत्याचार।।


देख कर ये भेदभाव, टूट रही थी मैं बार-बार।।


बेटा-बेटी है एक समान, हाय! कब समझेगा ये संसार।।



नीतू रावल


नीतू रावल

गनी गांव, गरुड़

बागेश्वर, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

कोई टिप्पणी नहीं: