संपादकीय : दम तोड़ती मानवीय संवेदनाएं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 27 सितंबर 2022

संपादकीय : दम तोड़ती मानवीय संवेदनाएं

Dying-humanity
विजय सिंह ,लाइव आर्यावर्त ,27 सितम्बर। विगत दिनों जमशेदपुर शहर में विगत तीन दशकों से परिचालित अमेरिकन कंपनी टिमकेन इंडिया लिमिटेड में ठेका कैंटीन कर्मी असित की कार्यावधि में हृदयगति रुक जाने से मृत्यु हो गई। जीवन और मरण सामान्य प्रक्रिया है लेकिन यदि अकस्मात् मौत हो तो वह अपने पीछे कई सवाल और दायित्व अनुत्तरित  छोड़ जाती है जिसकी पूर्ति के लिए परिजनों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है विशेषकर असंगठित प्रकृति के कार्य करने वालों के परिवार को। असित की अचानक मौत के बाद धरना ,प्रदर्शन ,गेट जाम ,धक्का मुक्की ,प्रबंधन -प्रतिनिधिमंडल , मुआवजा की मांग और फिर समझौता वार्ता जैसी सारी औपचारिकताएं पूरी हुईं। नेता ,सामाजिक ठेकेदार ,यूनियन ,प्रतिनिधिमंडल ,भीड़ ,प्रबंधन सभी जुटे बस मानवता और संवेदना अनुपस्थित रहे। जानकारी मिली कि टिमकेन में ठेका कैंटीन के संचालक ने अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने मृत कर्मचारी को उसके हिस्से का प्रोविडेंट फंड , कर्मचारी राज्य बीमा सुविधा आदि के मद में जो भी लाभ बनता था ,भुगतान किया लेकिन मूल कंपनी टिमकेन इंडिया लिमिटेड की तरफ से किसी प्रकार का लाभ मृत कर्मचारी के परिजनों को नहीं दिया गया। बताया जाता है कि इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर रहे दिवंगत कर्मचारी के पुत्र को नौकरी दिए जाने की  मांग के जवाब में प्रबंधन द्वारा कैंटीन में काम करने का ऑफर दिया गया अथवा डिप्लोमा की पढ़ाई पूरी करने के बाद भविष्य में रिक्ति उपलब्ध होने पर प्राथमिकता देने का लोकलुभावन आश्वासन जरूर मिला। 25 -26  वर्षों से जिस कर्मचारी ने ,भले ही वो ठेका मजदूर था परन्तु सेवा तो उसने मूल कंपनी के प्रबंधकों की ही की होगी न। कुक या हेड कुक की हैसियत से उसने जायकेदार चाय और न जाने कितने स्वादिष्ट भोज्य सामग्री उन्हें कार्यावधि में परोसा होगा तब फिर एक सेवक रुपी कर्मचारी मौत के तुरंत बाद अपनों में ही बेगाना कैसे बन जाता है  ? यह किसी एक असित की बात नहीं है ,न जाने कितने असितों से ऐसे ही व्यवहार हर रोज कहीं न कहीं होता होगा।  विगत दो वित्तीय वर्षों में टिमकेन इंडिया का कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व बजट क्रमशः 4.47 करोड़ और 4.83 करोड़ रूपए रहा है तो क्या कंपनी एक साधारण सी नौकरी दिवंगत कर्मचारी के  बेटे को देकर सामाजिक दायित्व नहीं निभा सकती थी ? नौकरी न सही कुछ आर्थिक लाभ भी यदि कंपनी की तरफ से दिया जाता तो परिवार का जीवन कुछ सुगम हो सकता था लेकिन ज्यादातर मामलों में भीड़ के बीच चिल्लम चिल्ली नारेबाजी करने वाले नेता और सामाजिक ठेकेदार "निगोसिएशन टेबल" पर सफ़ेद झक चमकदार कपड़ों की आड़ में अपनी बौद्धिक ,तकनीकि और प्रबंधकीय खोखलेपन को छुपाने का प्रयास करते हुए मिले सुर मेरा तुम्हारा की राग पर प्रबंधन की हाँ में हाँ को ही शिरोधार्य कर लेते हैं। ट्रेड और कर्मचारी यूनियन का हाल किसी से भी छिपा नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि एक अति साधारण ठेका मजदूर के लिए इतनी बातें क्यों ? इसलिए कि हमारी मानवीय संवेदनाएं अभी भी जीवित हैं ,अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करने का जज्बा जागृत  है ,संबंधितों को उनके कर्तव्य याद दिलाने के लिए कलम की स्याही अब भी गीली है। जी हाँ ,क्योंकि असित कर्मचारी से पहले एक इंसान था। कहते हैं कि एक इंसान के जान की कीमत कोई नहीं तय कर सकता लेकिन यदि सीने में धड़कता हुआ दिल हो तो आधी उम्र सेवा करने वाले किसी इंसान की अचानक मौत के बाद उसके परिवार को संभलने के लिए कुछ सहायता पहुंचा कर हौसला तो दिया ही जा सकता है। 




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