हाल ही में, कर्नाटक राज्य के बीजापुर शहर के पिछड़े इलाके अफजलपुर टिक्का की उबड़-खाबड़ और पथरीली सड़क पर, मेरी नज़र एक कमजोर महिला की ओर खिंची, जो लगभग सत्तर साल की एक बुजुर्ग थी. वह फटी पुरानी चप्पल पहन कर अपने पैरों को नुकीले और उभरे हुए पत्थरों से बचाने की कोशिश करते हुए चली जा रही थी. एक छड़ी के सहारे वह अपनी झुकी हुई कमर पर हरी घास लेकर कुछ कदम आगे जाती और फिर चिलचिलाती धूप में थके हुए पेड़ की छाया में बैठ जा रही थी. यह प्रक्रिया वह लगातार कर रही थी. छड़ी के सहारे वह थोड़ी दूर चलती और फिर थक कर बैठ जाती.
यह पूरा दृश्य देखकर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया, मैंने अपने साथियों से कुछ समय लिया और उस बुज़ुर्ग महिला के पास पहुंच कर उनसे बात करने का प्रयास करने लगा. लेकिन हम दोनों के बीच भाषा आड़े आ गई. वह मुझे देखती रही और फिर अपनी मातृभाषा कन्नड़ में बोलने लगीं. जो मेरी समझ से बिल्कुल बाहर की बात थी. झिझक के बीच हम दोनों एक दूसरे को सांकेतिक भाषा से समझने और समझाने का प्रयास करने लगे. पास में खड़े मेरे स्थानीय सहयोगी मेरी इस असमंजस वाली स्थिति का पूरा लुत्फ उठा रहे थे. वह मुस्कुराते हुए हमारे करीब आया और बोला सर! क्या मैं अनुवादक के रूप में आपकी मदद कर सकता हूं? उसकी बात से मेरे दिल की इच्छा पूरी हो गई, मैंने उसे कृतज्ञ मुस्कान के साथ अनुमति दे दी. अपने उस स्थानीय अनुवादक के माध्यम से हमने धीरे धीरे से बात करना शुरू किया. उस महिला बुज़ुर्ग ने बताया कि उनका नाम महादेवी है. उन्होंने कभी भी स्कूल का मुंह नहीं देखा है. वह बचपन से ही खेतों में काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि शादी के कुछ सालों के बाद जब वह अपने पति के साथ खेतों में काम कर रही थी तो किसी बात पर क्रोधित होकर उनके पति ने कुदाल उठाकर उनकी पीठ पर ज़ोर से मार दिया. इस घटना के बाद से उनकी कमर हमेशा के लिए टेढ़ी हो गई और वह झुक कर चलने लगीं. उन्होंने बताया कि उनकी एक बेटी है जो अपने ससुराल में वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है. कुछ वर्ष पूर्व उनके पति का भी देहांत हो गया, तब से वह बिल्कुल अकेले अपने एक छोटे से घर में रहती हैं और कड़ी मेहनत कर अपना भरण-पोषण करती हैं. महादेवी कहती हैं कि 'मुझे दया की भीख मांग कर खाना पसंद नहीं है. मैं प्रतिदिन सुबह जल्दी उठती हूं, अपने लिए नाश्ता बनाती हूं और फिर खेतों में काम करने चली जाती हूं. वापस आकर रात का खाना खाती हूं और वह अपने भगवान का धन्यवाद कर के सो जाती हूं. पति के देहांत के बाद से यही मेरी दिनचर्या बन गई है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उन्हें अभी तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है.
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मो. अनीसुर रहमान खान
बीजापुर, कर्नाटक
(चरखा फीचर)
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