आलेख : क्या अनेकों ईश्वर हैं ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 8 सितंबर 2022

आलेख : क्या अनेकों ईश्वर हैं ?

विषय है कि हमारे अनेकों देवी देवता हैं, उनके अनेकों नाम व स्वरूप हैं, हम उनके कौन से स्वरुप व नाम को माने और पूजन करें ? इस विषय पर दूसरे अन्य रिलीजन व मज़हब के नासमझ लोग कटाक्ष भी करते हैं। विषय को आध्यात्म के आयने में समझने का प्रयास करते हैं। क्योंकि आध्यात्मिक चिंतक परमात्मा की महाशक्ति में विलीन होना चाहता है। वह एक ही महाशक्ति है, जो विभिन्न स्वरूपों में स्वयं को ही देख रही है। अतः विषय को समझना है और उसमें उतारना है। परमात्मा का अनेकों नाम से पूजन होता है। श्रीराम, श्रीकृष्ण, परशुरामजी आदि अनेकों ने मानव शरीर में अवतार लिए। कुछ ऐसी महान आत्माओं ने शरीर धारण किया जो अपने विशेष उद्देश्य के साथ कर्म करते हुए संदेश देकर चले गए। आदिशंकराचार्य, मत्स्येंद्रनाथ जी, गोरखनाथ जी, तैलंग स्वामी, योग योगेश्वर प्रभु श्री रामलाल जी महाराज, योगिराज श्री चन्द्रमोहन जी महाराज, देवराहा बाबा, विवेकानंद जी आदि। अब प्रश्न यह उठता है कि ईश्वर के जो स्वरुप मानव शरीर के विभिन्न नाम व स्वरूपों में अवतरित हुए, जिनकी हम पूजा करते हैं, क्या उनमें महाशक्ति परमात्मा पृथक पृथक था ?  ध्यान करना होगा और इस बात में कोई संशय नहीं होना चाहिए कि उनमें ऊर्जा का एकमात्र केन्द्र महाशक्ति परमात्मा का ही सभी में अस्तित्व था। उन्होंने उसका आभास किया, पहचाना कि वे ईश्वर अंश हैं और जितने अधिक डिग्री में उन्होंने ईश्वर अंश का आभास किया, वे ईश्वर-स्वरुप होते चले गए। उन्होंने जान लिया था कि ऊर्जा वहीं से मिल रही है। शरीर-धारण, नाम व स्वरुप के कारण ही उन्हें पृथक पृथक बांट रखा है। जिसकी जहां आस्था श्रद्धा हो, उसे पूज लो। हमारे सनातन धर्म में पूजन व भक्ति को लेकर किसी भी प्रकार की प्रतिबद्धता नहीं है। पूर्ण स्वतंत्रता है। हमारे स्वभाव व मन के मुताबिक ईश्वर का जो स्वरूप पसंद है, पूजन कर लिया। बात इससे और आगे की कहना चाहता हूँ कि ऊपर, जिसे परलोक कहो स्वर्ग कहो या जन्नत कहो, वहां भी वह ऊर्जा की महाशक्ति जिसे परमात्मा कहो या खुदा कहो, क्या वहां भी अलग अलग खेमों में विभाजित हैं ? क्या उनमे भी आपस में ईर्ष्या वैमनस्यता है ? पहली बात तो यह है कि जो ऐसा सोचते हैं, वे अब्बल दर्जे के मूर्ख हैं। और उनका नाम ले कर जो यहां परमात्मा ईश्वर और खुदा के नाम पर बाँट रहे हैं, वे अब्बल दर्जे के महामूर्ख हैं। पूजा पद्धति ईश्वर आराधना, ये निजी आस्था के विषय हैं, जिसको उसके पास जिस रास्ते से पहुँचना है, पहुंचे। और ये बात भी डंके की चोट पर कहता हूँ कि ऐसा चिंतन हिन्दू संस्कृति में ही है और मैं हिन्दू हूँ, इसी कारण यह कह पा रह हूँ।  


चलिए, एक उदाहरण से अपनी बात स्पष्ट करता हूं। मेरे हजारों सेंकड़ों जन्म हो चुके हैं। अब ऐसी किसी पद्धति से यदि मैं अपने पिछले 100 जन्मों की जानकारी प्राप्त कर सकूं, तो मेरे विभिन्न 100 नाम, 100 प्रकार के स्वरूप, सेंकड़ों रिश्तेदार मिलेंगे। वे भी मुझे मेरे उन स्वरुपों व नामों से याद कर रहे होंगे।  ध्यान दीजिए, आत्मा तो मेरी यही है जो मेरे विभिन्न स्वरूपों व नामों को बदलती रही है। जन्म-जन्म से यात्रा करती रही है। अभी इस शरीर स्वरुप के साथ नाम (राजेन्द्र तिवारी) को धारण किए है। सब कुछ अस्थाई है। यह भी संभव है कि मैं पिछले किन्ही जन्म में मुसलमान रहा होंऊ। यह भी संभव है कि इस जन्म में जो मुसलमान दिख रहा है वह पूर्व जन्म में हिन्दू रहा हो। पुनर्जन्म होता है और इस हेतु हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जातियां आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। पुनर्जन्म के विषय पर यदि विश्वास नहीं है तो मेरी स्वलिखित प्रकाशित पुस्तक पढ़ लीजिये जिसमे अनेकों उदाहरण सत्य घटनांओं पर उल्लेख किये हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि मेरे कौन से स्वरुप की आप पहचान करेंगे ? मेरे पिछले किन्हीं जन्मों में यदि किसी ने मुझे ईश्वर मान लिया हो, तो वे मेरे उसी स्वरुप की पूजा कर रहे होंगे। (मैंने सिर्फ उदाहरण के लिए ऐसा उल्लेख किया है, मैं ईश्वर नहीं हूं, ईश्वर अंश हूं।) पुनर्जन्म एक अटल सत्य है, भले ही अन्य रिलीजन व मज़हब के लोग पुनर्जन्म के सिद्धांत को नहीं मानते हों, लेकिन सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता। मुसलमान भी इस सत्यता को झुठला नहीं सकते। (ऐसे अनेकों उद्धरण मैंने अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तक "मृत्यु कैसे होती है ? फिर क्या होता है ?" में उल्लेख किए हैं, जो पुनर्जन्म की सत्य घटनाओं पर आधारित हैं।)


मैं ईश्वर अंश हूं, और आप भी स्वयं के साथ यदि ऐसा ही दृष्टिकोण लागू करें तो आप ईश्वर अंश हैं, आप में वही परमशक्ति परमात्मा स्वरुप आत्मा का अंश है। तब प्रश्न उठता है कि यदि मैं आपके पूर्वजन्मों की जानकारी कर लूं तब आपके पिछले 100 जन्मों के कौन से नाम व स्वरूप की पूजा करुं ? समझिए कि परमात्मा की चुम्बकत्व रुपी परम शक्ति ने हमें इस पृथ्वी पर भेजा है, अब यह हम पर निर्भर करता है कि उस चुम्बकीय परम शक्ति से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए हम स्वयं कितने अंश में लोहा बन पाए ? चुम्बक तो लोहे की तरफ आकर्षित होगा। लकड़ी काष्ठ की ओर तो आकर्षित होगा नहीं। बस उक्त प्रश्न और बात का निष्कर्ष यही है। हमने ईश्वर के विभिन्न नाम, स्वरुप, अवतारों पर तो ध्यान दिया है, लेकिन हम अपने विभिन्न जन्मों नाम, स्वरुप व अवतरण पर सोचते भी नहीं हैं। हमने स्वयं को सत्य, शास्वत स्थाई, अपरिवर्तनीय मान लिया है, और परमात्मा को परिवर्तनशील, अस्थाई विभिन्न स्वरुपों का मान लिया है। हम स्वयं के आयने में परमात्मा को देखते हैं। जबकि परमात्मा के आयने में ही परमात्मा का आभास होगा। अब मनमस्तिष्क में एक प्रश्न उठेगा कि जब परमात्मा एक है तो वह एक बार में अनेकों स्वरूप धारण कैसे करेगा ? हम त्रुटि यह कर जाते हैं कि परमात्मा को मनुष्य समझ लेते हैं। परमात्मा ऐसी महाशक्ति है कि वह हजारों लाखों करोड़ों अरबों असंख्य स्वरूप धारण कर सकता है। परमात्मा सर्वाधार है, सर्वज्ञ है, सर्वेश्वर है, सर्वव्यापी है, सारस्वरूप है। क्या हमने कभी सोचा है कि हम स्वप्न में स्वयं को देखते हैं। जिस समय स्वप्न में हम स्वयं को देख रहे हैं, उस समय हम उसे पूर्ण सत्य समझते हैं। हमें यह आभास भी नहीं होता है कि यह तो स्वप्न है। लेकिन उस समय हम दो हैं, एक हमारा सोता हुआ शरीर और दूसरा दिखने वाला स्वप्न में "मैं"। लेकिन तत्समय तो दोनों ही सत्य हैं। यह भी संभव है कि मुझे हजारों लोग स्वप्न में देख रहे हों। तो क्या मैं कई हजार हो गया ? नहीं। आत्मा तो एक ही है। इसलिए कहना चाहूंगा कि परमात्मा की महाशक्ति ऊर्जा का केंद्र एक ही है। हमारे जीवन में अध्यात्म का बड़ा ही महत्व है। ईश्वर पूजन और भक्ति से भी ऊपर उठना होगा, आध्यात्मिक चिंतन करना होगा।

 




राजेन्द्र तिवारी
लेखक - राजेन्द्र तिवारी, 

फोन-07522-238333, 9425116738, 6267533320 

email- rajendra.rt.tiwari@gmail.com

नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक  आध्यात्मिक विषयों के चिन्तक व समालोचक हैं। तिवारी जी की दो पुस्तकें, ’’मृत्यु कैसे होते है ? फिर क्या होता है ?’’ तथा ’’आनंद की राह’’ प्रभात प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हो चुकीं हैं। प्रश्न यह है कि क्या हमारे सेंकड़ों हजारों देवी-देवता हैं ? इस आलेख को कृपया सभी ओर से डिस्कनेक्ट हो कर पढ़ें। 

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