नयी दिल्ली, 13 सितंबर, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किशोरों को वयस्क कैदियों के साथ जेलों में बंद करना उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना है। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने उत्तर प्रदेश के विनोद कटारा की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक बार जब कोई बच्चा वयस्क आपराधिक न्याय प्रणाली के जाल में फंस जाता है तो उसके लिए इससे बाहर निकलना मुश्किल होता है। पीठ ने बच्चों के अधिकारों और संबंधित कर्तव्यों के बारे में जागरूकता की कमी का उल्लेख करते हुए कहा कि कड़वी सच्चाई यह है कि कानूनी सहायता कार्यक्रम भी प्रणालीगत बाधाओं में फंस गए हैं। याचिका में कहा गया है कि विनोद कटारा ने 10 सितंबर 1982 को हत्या की तारीख को किशोर होने का दावा किया था, जिसके लिए वह उम्रकैद की सजा काट रहा था। उनकी दोषसिद्धि और सजा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा था। किशोरावस्था की दलील किसी भी स्तर पर उठाई जा सकती है, इस वजह से उसने वर्ष 2021 में एक मेडिकल बोर्ड की जांच पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि 1982 में घटना के समय उनकी उम्र लगभग 15 वर्ष थी। उन्होंने परिवार रजिस्टर का भी हवाला दिया, जिसके तहत उसकी उम्र प्रमाण संबंधी दस्तावेज जारी किया गया था। उत्तर प्रदेश पंचायत राज (परिवार रजिस्टरों का रखरखाव) नियम, 1970 जिसमें उनके जन्म का वर्ष 1968 दिखाया गया था, जो दर्शाता है कि 1982 में उनकी उम्र लगभग 14 वर्ष थी। अब पीठ ने आजीवन कारावास की सजा पाने वाले उस दोषी की नाबालिग होने की याचिका पर एक रेडियोलॉजिस्ट सहित तीन डॉक्टरों की एक टीम द्वारा सिविल अस्पताल में उसका अस्थि-पंजर परीक्षण करने का आदेश दिया। अदालत ने सत्र अदालत आगरा से उसके दावे की एक महीने के भीतर जांच करने को भी कहा है।
मंगलवार, 13 सितंबर 2022
किशोरों को वयस्कों के साथ जेल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उलंघन
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