कविता : चाह नहीं है अब मुझको - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 13 सितंबर 2022

कविता : चाह नहीं है अब मुझको

चाह नहीं है अब मुझको, कहलाऊँ मैं सीता जैसी।


अब तो बस उड़ना चाहती हूं, बिल्कुल कल्पना जैसी।।


फिर क्यों बनूं मैं द्रौपदी जैसी।


कहां बचा है कोई अब कृष्ण जैसा।।


अब तो बस लड़ना चाहूं, लड़ाई मैरी कॉम जैसी।।


चाह नहीं हैं अब मुझको, उपमा मिले गाय जैसी।


अब तो मैं बन के दिखाऊं, शान से किरण बेदी जैसी।।


फिर क्यों बनूं सावित्री जैसी, कौन बचा है सत्यवान अब।


अब तो बस लिखना चाहूँ, विचार सरोजिनी नायडू जैसी।।


चाह नही है अब मुझको, जेवर से मैं लद जाऊं।


अब तो बस जीना चाहूँ, आत्मनिर्भर स्वावलंबी जिंदगी ऐसी।।





पायल रावल
पायल रावल

चोरसौ, गरुड़

बागेश्वर, उत्तराखंड

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: