नई दिल्ली, आज अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली स्थित नेपाल राजदूतावास में राजदूत डा० शंकर प्रसाद शर्मा के नाम से एक ज्ञापन सौंपा. प्रतिनिधिमंडल में अंतर्राष्ट्रीय संयोजक प्रो० अमरेन्द्र कुमार झा, राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं मीडिया प्रभारी ईंजीनीयर शिशिर कुमार झा, दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष हीरालाल प्रधान, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डा० अरविंद दास, सजन झा, अवध पांडे थे. ज्ञापन में नेपाल राजनीति में नागरिकता बिल केन्द्रित है. मिथिला के लोगों का भारत और नेपाल में दोनों तरफ सुगौली संधि 2016 के मुताबिक पूर्ण अधिकार है, क्योंकि 200 वर्ष के इस संधि की समय सीमा समाप्ति हो चुकी है. हम स्वतंत्र राष्ट्र हैं. फिर भी 31 जुलाई 1950 को दोनों देशों के बीच शांति और दोस्ती पर समझौता हुआ. बता दें कि भारत और नेपाल की दोस्ती बहुत हीं खास है. इसका मुख्य कारण है कि दोनों तरफ ,एक क्षेत्र सनातनी मिथिला,मैथिलों की एक भाषा मैथिली, समान सभ्यता एवं संस्कृति, आपसी स्नेह एवं सहयोग और खुले सीमा में बेटी- रोटी का महत्वपूर्ण सम्बन्ध है. अभी चल रही नागरिकता कानून के विवाद में जिस तरह मैथिलों को सभी अधिकार से वंचित किया जा रहा है, इससे मैथिलों में आक्रोश है. अभी नेपाली नेताओं द्वारा मिथिला विरोधी बयान से लग रहा है कि डा० लक्ष्मण झा द्वारा 1951-53 में " पाया तोङो आंदोलन " सही था और उस आंदोलन को फिर से जीवंत करने की जरूरत है. संघर्ष समिति ने ज्ञापन की प्रतिलिपि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और विदेश मंत्री, भारत सरकार को देने का फैसला लिया है. कल संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा० बैद्यनाथ चौधरी बैजू के अध्यक्षता में श्यामा माई मंदिर, दरभंगा में " भारत खुला सीमा विवाद " संगठन के अध्यक्ष श्री राजीव झा के उपस्थिति में एक बैठक हुई. जिसमें कवि चन्द्र मोहन झा " परबा", डा० गोपाल जी बाबू, प्रो० चन्द्रशेखर झा, डा० अरूण कुमार सिंह, हेमन्त राय, पुजारी बौआजी उपस्थित थे. इन्होंने नेपाल सरकार द्वारा नागरिकता कानून से मैथिलों पर अत्याचार बंद करने को कहा है, नहीं तो दोनों देशों में मैथिलों के द्वारा इसके विरोध में वृहत् आंदोलन किया जायेगा.
मंगलवार, 20 सितंबर 2022
मिथिला राज्य संघर्ष समिति ने राजदूत डा० शंकर प्रसाद शर्मा को ज्ञापन सौंपा
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