बिहार : विश्व खाद्य दिवस पर सोचनीय मुद्दा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 16 अक्तूबर 2022

बिहार : विश्व खाद्य दिवस पर सोचनीय मुद्दा

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पटना. पाकिस्तान और कांग्रेस अलापने वाले पीछे दर पीछे ही चले जा रहे है.कांग्रेस के शासन काल में वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2010 में 67 वां स्थान था. 2011 में 67, 2012 में 66 और 2013 में 63 था.सत्ता परिवर्तन होने के बाद विकास बाबू के हाथ में 2014 में वैश्विक भुखमरी सूचकांक 55 वां स्थान दिया गया.उसके बाद कुकुरमुत्ता की तरह बढ़ता ही जा रहा रूकने का नाम नहीं ले रहा है.अब तो यह हाल हो गया है कि अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से पीछे है. साउथ एशिया के देशों में अफगानिस्तान के बाद सबसे ज्यादा हालात भारत के ही खराब हैं. बता दे कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2015 में 80 वां, 2016 में 97 वां स्थान प्राप्त हुआ था.भारत को 2017 में 100वाँ स्थान प्राप्त हुआ. भारत को 2018 में 103वाँ स्थान प्राप्त हुआ.भारत को 2019 में 102वाँ स्थान प्राप्त हुआ है.वर्ष 2020 में भारत 94वें स्थान पर था.2021 में भारत को 116 देशों में से 101वाँ स्थान प्राप्त हुआ है.


वैश्विक भुखमरी सूचकांक यानी हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग और भी ज्यादा खराब हो गई है. भारत भुखमरी से जुड़ी इस रैंकिंग में 6 स्थान और नीचे गिर गया है. ताजा रैंकिंग के अनुसार, भारत 107वें स्थान पर आ गया है और यह रैंकिंग 121 देशों की है. यानी 121 देशों में भारत 107वें स्थान पर है. इससे पहले भारत 116 देशों की रैंकिंग में 101वें स्थान पर था. हैरानी की बात ये है कि अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से पीछे है. साउथ एशिया के देशों में अफगानिस्तान के बाद सबसे ज्यादा हालात भारत के ही खराब हैं.महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कहा है कि भारत की छवि को लगातार एक दागदार देश के रूप में दिखाया जा रहा है, जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा है. वैश्विक भूख सूचकांक 2022 (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भारत की स्थिति और खराब हुई है. वह 121 देशों में 107वें नंबर पर है जबकि बच्चों में ‘चाइल्ड वेस्टिंग रेट’ (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन) 19.3 प्रतिशत है जो दुनिया के किसी भी देश से सबसे अधिक है. पड़ोसी देश पाकिस्तान (99), बांग्लादेश (84), नेपाल (81) और श्रीलंका (64) भारत के मुकाबले कहीं अच्छी स्थिति में हैं. एशिया में केवल अफगानिस्तान ही भारत से पीछे है और वह 109वें स्थान पर है. वैश्विक भूख सूचकांक  के  जरिए वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर भूख पर नजर रखी जाती है और उसकी गणना की जाती है. 29.1 अंकों के साथ भारत में भूख का स्तर.

  

भारत 2021 में 116 देशों में 101वें नंबर पर था जबकि 2020 में वह 94वें पायदान पर था. रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे अधिक भूख के स्तर वाले क्षेत्र, दक्षिण एशिया में बच्चों में नाटापन की दर (चाइल्ड स्टंटिंग रेट) सबसे अधिक है. इसमें कहा गया है, श् भारत में ‘चाइल्ड वेस्टिंग रेट’ 19.3 प्रतिशत है जो दुनिया के किसी भी देश में सबसे अधिक है और भारत की बड़ी आबादी के कारण यह इस क्षेत्र के औसत को बढ़ाता है. भारत में करीब 20 लोग ऐसे हैं, जो हर रोज अच्छे से खाना नहीं खा पाते हैं और रात को उन्हें भूखे ही सोना पड़ता है. साल 2020 में साउथ एशिया में 1331.5 मिलियन लोग ऐसे थे, जैसे हेल्दी डाइट नहीं मिल पाई और उसमें से 973.3 मिलियन तो भारत के लोग थे. अगर भूख से मरने वाले लोगों का आंकड़ा देखें तो भारत में हर साल 7 हजार से 19 हजार लोग हर भूख से मर जा रहे हैं. यानी पांच से 13 मिनट में एक आदमी बिना खाने के मर जाता है. वहीं, इंडिया फूड बैंकिंग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 189.2 मिलियन लोग कुपोषित हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में 14ः जनसंख्या कुपोषित है. भारत ने वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट 2022 को खारिज कर दिया है. इसमें भारत को एक सौ इक्कीस देशों में एक सौ सातवां स्थान दिया गया है.महिला और बाल विकास मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति में कहा है कि भारत की छवि को लगातार एक दागदार देश के रूप में दिखाया जा रहा है, जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा है.मंत्रालय ने कहा है कि यह सूचकांक भूख के गलत मानकों पर आधारित है और इसमें गंभीर प्रणालीगत खामियां हैं. मंत्रालय ने कहा है कि यह रिपोर्ट जमीनी वास्तविकताओं को नहीं दिखाती है और इसमें सरकार के कोविड महामारी के दौरान खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के सरकार के प्रयासों को नहीं दर्शाया गया है. कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 8 साल में 2014 के बाद से हमारा स्कोर खराब हुआ है. उन्होंने ट्विटर पर पूछा, ' माननीय प्रधान मंत्री कब बच्चों के बीच कुपोषण, भूख और लाचारगी जैसे वास्तविक मुद्दों का समाधान करेंगे?'

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