शिक्षकों के अध्यापन संबंधी डीयू ने नई गाइडलाइंस जारी की , फोरम ने विरोध जताया । - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 17 नवंबर 2022

शिक्षकों के अध्यापन संबंधी डीयू ने नई गाइडलाइंस जारी की , फोरम ने विरोध जताया ।

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दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने सभी डीन , विभागों के अध्यक्षों व कॉलेजों के प्राचार्यो को  एक अधिसूचना जारी की है जिसमें स्नातक पाठ्यक्रमों व स्नातकोत्तर शिक्षण के लिए  नई गाइडलाइंस लागू करने को कहा है । नई गाइडलाइंस में व्याख्यान, ट्यूटोरियल और लैब प्रेक्टिकल के लिए ग्रुप ( समूह ) के  आकार को परिभाषित किया गया है । फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने  विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा शिक्षकों के अध्यापन संबंधी जारी अधिसूचना को हास्यास्पद  और इसे शिक्षक विरोधी बताया है । उन्होंने बताया है कि नई गाइडलाइंस भविष्य में 50 फीसदी शिक्षकों का वर्कलोड कम कर देगी । क्योंकि यह एलओसीएफ कोर्सवर्क के हिस्से के रूप में अकादमिक परिषद द्वारा अपनाए गए मानदंडों का पूरी तरह से उल्लंघन करती है । डॉ. सुमन ने बताया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा भेजी गई अधिसूचना के अनुसार कक्षा में छात्रों की संख्या व उसका साइज  स्नातक स्तर पर -- 60 छात्रों पर लेक्चर , ट्यूटोरियल ---30 छात्रों की संख्या  , प्रेक्टिकल --25  छात्रों की  संख्या , इसी तरह स्नातकोत्तर स्तर पर --50 छात्र पर लेक्चर  , ट्यूटोरियल --25 छात्रों की संख्या , प्रेक्टिकल --15 --20  छात्रों की संख्या हो । उन्होंने बताया है कि यह अधिसूचना जो शिक्षक -शिक्षण वातावरण को फिर से परिभाषित करेगी । इसे वैधानिक निकायों में बिना किसी विचार-विमर्श के जारी किया गया है। उन्होंने कुलपति से मांग की है कि  22 नवंबर 2022 को अकादमिक परिषद की हो रही बैठक  में इस अधिसूचना पर एकेडमिक काउंसिल में चर्चा कराएं और सदस्यों से पास होने के बाद ही इसे लागू करें । 


डॉ. सुमन का कहना है कि 2019 में विश्वविद्यालय द्वारा अपनाए गए एलओसीएफ (LoCF )  पाठ्यक्रम में स्पष्ट रूप से 8-10 छात्रों को ट्यूटोरियल समूहों के आदर्श आकार के रूप में रखा गया है ताकि विभिन्न प्रकार के छात्रों की अलग-अलग ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। इसी तरह, LoCF बहुत स्पष्ट रूप से बताता है कि लैब (व्यावहारिक) छात्रों के समूह का आकार 12 छात्रों का होना चाहिए। डीयू प्रशासन इन सुविचारित मानदंडों को कम क्यों करना चाहता है जो कई दशकों के अकादमिक कामकाज के माध्यम से सिद्ध हुए हैं ? उनका कहना है कि नई नीति पूरी तरह से शिक्षक विरोधी है जो वर्तमान में लगे एडहॉक शिक्षकों की छटनी करना चाहती है । उन्होंने 30 छात्रों का एक ट्यूटोरियल आकार एक उपहास बताया है। यह शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के शैक्षणिक और कार्यभार दोनों आयामों के संदर्भ में एक ट्यूटोरियल प्रणाली होने के आधार को पूरी तरह से कमजोर करता है । डॉ.सुमन का यह भी कहना है कि यह अधिसूचना इस वर्ष लागू किए गए चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम के चौथे वर्ष के लिए शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखाने की तरह है । यह पूरी तरह से विश्वविद्यालय द्वारा एक हताश कार्य की तरह दिखता है । यह सब इसलिए किया जा रहा है क्योंकि सरकार अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) संरचना को लागू करना चाहती है लेकिन वह विश्वविद्यालय व कॉलेजों को  अतिरिक्त अनुदान और शिक्षण पदों पर चुप है जो कई और विकल्प और अध्ययन के चौथे वर्ष की पेशकश करता है। उनका कहना है कि पिछले एक दशक से कॉलेजों में स्थायी नियुक्तियों की प्रक्रिया न होने से 60 से 70 फीसदी शिक्षक एडहॉक लगे हुए है और अब नई अधिसूचना जारी होने के बाद तो अपने आप ही शिक्षकों की छटनी हो जाएगी ।जो शिक्षक लंबे समय से पढ़ा रहे हैं वे इस नए सिस्टम के आने से बाहर हो जाएंगे । डॉ.सुमन का यह भी कहना है कि यह अधिसूचना शिक्षकों की बढ़ती आवश्यकता और सीखने की गहराई की उपेक्षा करती है क्योंकि यूजीसीएफ का उद्देश्य स्नातक स्तर पर रिसर्च को बढ़ावा देने के उद्देश्य से  अनुसंधान को बड़े पैमाने पर शुरू करना है । यदि शिक्षण अधिगम के वर्तमान समूह के आकार को व्याख्यान, ट्यूटोरियल और प्रेक्टिकल  के लिए अस्वीकार कर दिया जाता है तो यह यूजीसीजी के पत्र और उसकी भावना के साथ असंगत होगा। आखिरकार यूजीसीएफ  (UGCF) संरचना को वास्तव में चार वर्षों में प्रत्येक चरण में एक विस्तारित पैमाने पर शिक्षकों द्वारा परामर्श की आवश्यकता होती है। उनका यह भी कहना है यदि  इन कार्यभार मानदंडों को लागू किया जाता है तो यह शिक्षण-अधिगम की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। इसका परिणाम कई शिक्षकों को सरप्लस बनाने में भी हो सकता है ।  ये गैर-शैक्षणिक मानदंड शिक्षकों और छात्रों के लिए अस्वीकार्य हैं। उन्होंने कुलपति से इस अधिसूचना को   तत्काल वापस लिए जाने की मांग की है । विश्वविद्यालय प्रशासन को  शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की अखंडता की रक्षा करना शिक्षकों की सामूहिक जिम्मेदारी बताया है । 

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