मधुबनी : प्रगतिशील लेखक संघ ने सैय्यद सज्जाद और बाबा नागार्जुन को याद किया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 6 नवंबर 2022

मधुबनी : प्रगतिशील लेखक संघ ने सैय्यद सज्जाद और बाबा नागार्जुन को याद किया

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मधुबनी, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक महासचिव डॉ सैयद सज्जाद ज़हीर का 118 वाँ जन्मदिवस तथा जनकवि बाबा नागार्जुन का 24 वाँ पुण्यदिवस 05 नवंबर के सायंकाल में केंद्रीय पुस्तकालय मधुबनी के सभागार में डॉ विजय शंकर पासवान के सभापतित्व में मनाया गया। इस क्रम में आयोजित परिचर्चा एवं कविगोष्ठी का आरंभ आगत साहित्यकारों के द्वारा उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण/पुष्पार्पण के साथ हुआ।  परिचर्चा का प्रारंभ मधुबनी ज़िला प्रलेस के प्रधान सचिव तथा कार्यक्रम के संचालक अरविन्द प्रसाद द्वारा विषयप्रवेश भाषण के साथ हुआ।अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि सन 1934 में दुनिया के पैमाने पर विश्व शांति,प्रगति और स्वतंत्रता के पक्ष में  जनमानस को तैयार करने हेतु   संगठन बनाने का कार्यक्रम बनाया गया। इस क्रम में भारत में डॉ सज्जाद ज़हीर, मुल्कराज आनंद,मौलाना हसरत मोहानी,प्रो हीरेन मुखर्जी ,मुंशी प्रेमचन्द, जैनेन्द्र कुमार आदि की पहल पर 9--12 अप्रैल 19356 को लखनऊ में "अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ" गठित हुआ। मुंशी प्रेमचंद एवं डॉ सज्जाद ज़हीर इसके संस्थापक अध्यक्ष एवं महासचिव  निर्वाचित हुए। डॉ सज्जाद ज़हीर ने  तीन विभिन्न सत्रों में 25 वर्षो  तक इसके महासचिव पद को सुशोभित किया । श्रीलंका से भारत लौटने पर  नागार्जुन ने इससे जुड़कर प्रगतिशील साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका निभायी।उन्हें लोगों ने कबीर की शैली वाला कवि कहा और "बाबा" की उपाधि से नवाजा। प्रलेस द्वारा भारत की आजादी के पक्ष में क्रान्तिकारी भावनाओं का संचार साहित्य के माध्यम से जनता के बीच किया गया और साथ ही साहित्य को आम जनता तथा जनतंत्र के पक्ष में खड़ा किया गया जिसका सकारात्मक स्वरूप आजाद भारत को देखने की मिला। चंद्रपतिलाल विजय (अधिवक्ता) , उदयनाथ झा (समाजसेवी)तथा उदय जायसवाल आदि ने परिचर्चा में अपने बहुमूल्य विचार रखे। कविगोष्ठी का आरंभ दयानाथ झा जी की कविता "शब्द का चमत्कार" के चमत्कारिक प्रभाव से हुआ। लेखनाथ मिश्र जी ने नेहरूजी की मृत्यु पर नागार्जुन जी की काव्यात्मक अभिव्यक्ति विषयक कविता--"तुम  रह जाते और दस साल" पढ़ी , तो झौली पासवान जी ने "अपन जिनगी" कविता पाठ से श्रोताओं के दिलों को गुदगुदा दिया। कवि सतीशचंद्र मिश्र"सुमन" जी ने अपनी धारदार शैली की कविता से शासन प्रशासन में  व्याप्त धांधलियों की धज्जियाँ उड़ा दीं। कल्पकवि उमेशनारायाण कर्ण ने "चरैवेति" कविता के माध्यम से बाबा के चलायमान यात्रामय जीवन का चित्र प्रस्तुत किया। उदय जायसवाल जी की कविता -अग्निपथक यात्री- ने बाबा की अदम्य साहसिकता का बोध कराया तो विनय विश्वबंधु  की भारत की आज़ादी के बाद ब्रिटेन की महारानी के भारत आगमन पर बाबा के नेहरूजी पर व्यंग्यमूलक कविता की पंक्तियों--"आओ रानी हम ढोयेंगे पालकी। यही हुई है राय जवाहर लाल की।"--ने श्रोताओं को ठहाके लगाने पर विवश कर दिया। डॉ विजय शंकर पासवान जी की कविता की पंक्तियों-- " कोठा सोफा मे रहनिहार कहियो फूस मे रहि क' देखियौ तs" ने देश की गंभीर आर्थिक विद्रूपता पर करारा प्रहार किया तो "यात्रीजी" की सन 1936 में  रचित और विख्यात कविता--"हे मातृभूमि अंतिम प्रणाम" का प्रतिकार करती अरविन्द प्रसाद की कविता --"अंतरिम भेल अंतिम प्रणाम"--ने  भागे "यात्रीजी" और लौटे "नागार्जुन जी" के फर्क को  स्पष्टता से रेखांकित किया। कविताओं की समीक्षा विश्वबंधुजी ने  की और धन्यवाद ज्ञापन श्री प्रसादजी ने किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में विजयशंकर पासवान जी ने  इन महान साहित्यिक विभूतियों की स्मृति में आयोजित शानदार कार्यक्रम के लिए मधुबनी प्रलेस की भूरि भूरि प्रशंसा की।

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