- 'कोर्ट मार्शल' और 'मैंने मांडू नहीं देखा' जैसी रचनाओं के लिए मशहूर स्वदेश दीपक 7 जून 2006 को टहलने के लिए घर से निकले और कभी लौट कर नहीं आये।
- 16 नवंबर को अपनी पहली प्रस्तुति, महमूद फ़ारूक़ी की 'दास्ताँ-ए-कर्ण अज़ महाभारत' के लिए फाउंडेशन तैयार
फाउंडेशन की सलाहकार समिति में पद्म भूषण पुरस्कार विजेता मल्लिका साराभाई (शास्त्रीय नर्तक और अभिनेत्री), पद्म श्री पुरस्कार विजेता नीलम मानसिंह चौधरी (रंगमंच निर्देशक), साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक और कवि जेरी पिंटो, पूजा सूद (निर्देशक, खोज), रवि सिंह (प्रकाशक, स्पीकिंग टाइगर), दीवान मन्ना (फोटोग्राफर), निरुपमा दत्त (कवि और आलोचक) और चंदर त्रिखा (निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी और हरियाणा उर्दू अकादमी) शामिल हैं। फाउंडेशन के बारे में बात करते हुए लेखक और कोच्ची बीएनेल फाउंडेशन के ट्रस्टी एन एस मादवन ने कहा -" मुझे एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन से बड़ी उम्मीदें हैं -ये एक ऐसा मंच है जो विभिन्न कलाओं और उनके संगम का स्वागत करता है। दुनिया भर में अलग-अलग प्रकार की कलाएं एक साथ जुड़ रही हैं और एकल कलाओं का जड़ स्वरुप अब बाक़ी नहीं रहा। हमें अब इस बाइनरी से बाहर आना होगा। यह बेहद ज़रूरी है एक क्षेत्र के दर्शकों को अन्य क्षेत्रों के विभिन्न कला रूपों से अवगत कराया जाए। कला का आदान-प्रदान एक बेहतरीन विचार है।" नीलम मानसिंह चौधरी ने कहा -"महमूद फ़ारूक़ी एक बेहतरीन दास्ताँगो हैं। ये एक बड़ी उपलब्धि है कि एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन ने उन्हें 16 नवंबर को चंडीगढ़ में दास्तानगोई के लिए आमंत्रित किया है। दर्शक एक लाजवाब कलाकार को देखेंगे, अनुभव करेंगे और उम्मीद है की कला पर दिलचस्प बातें की जाएँगी।" साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता कवी अरुंधति सुब्रमण्यम ने एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन के बारे में कहा -"एक ऐसे समय में जब हम सब ये समझने का प्रयास कर रहे हैं की कैसे अपनी जड़ों से जुड़े रह कर वैश्विक नजरिया अपनाया जाये, कैसे बिना अलग-थलग हुए स्थानीयता अपनायी जाये, कैसे बिना खुद को अलग किये अपनी अलग पहचान क़ायम रखी जाये, एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन सही दिशा में एक बेहतरीन क़दम है। मुझे ये जानकार बेहद ख़ुशी हुई की ये पहल एक बेहतरीन लेखक की याद में की गई है और इसका उद्देश्य उन रूढ़िवादी विचारों की दीवारों को तोड़ कर संवाद स्थापित करना है जिसने इस दुनिया को बाँट रखा है।"
राष्ट्रीय अवार्ड विजेता गीतकार, लेखक और फ़िल्म निर्माता वरुण ग्रोवर ने कहा -"यह देखते हुए कि हम भूल गए हैं कि यह देश कैसे जुड़ा हुआ है, इस तरह की एक स्वतंत्र पहल आज के समय में बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। किसी एक भौगोलिक क्षेत्र में सिमट कर नहीं रहने का एल्सवेयर फाउंडेशन का विचार लोगों को एक दूसरे के नज़दीक लाएगा। लोग कलाकारों के माध्यम से कला के उन रूपों से रूबरू होंगे जिन्हे आम तौर पर वे नहीं देख पाते हैं।" फ़िल्म निर्माता और मानव विज्ञानी आशीष अविकुंठक को लगता है -"स्वदेश दीपक की रचनाएँ उस शानदार गुण का प्रतीक हैं जिसके अनुसार एक व्यक्ति बाहरी दुनिया से रूबरू होते हुए भी अपनी अंतरात्मा से गहराई से जुड़ा होता है। उनकी रचनाओं के केंद्र में अंतरात्मा की यात्रा की एक भ्रमणशील कल्पना थी। एल्सवेयर फाउंडेशन इसी वैचारिक सार की अनंत संभावनाओं को लेकर आज के समय को अद्भुत कला-यात्राओं के माध्यम से समझना चाहता है। यह कला, प्रदर्शन, संगीत, फिल्मों और साहित्य के बीच आज की तारीख़ में ज़रूरी हो चुकी बहुआयामी बातचीत को बढ़ावा देने का प्रयास करता है ताकि हमारी दुनिया में नए और सफ़ल प्रयोग किये जा सकें।”
संस्थापकों का परिचय
नगीना बैंस- उन्हें मीडिया, कला प्रबंधन और मेहमान-नवाज़ी के क्षेत्र में शीर्ष कंपनियों के साथ काम करने का लम्बा और व्यापक अनुभव है। भारत के कुछ प्रमुख समाचार पत्रों के साथ उनके लेखन के अनुभव ने राजनीति, जीवन शैली, शिक्षा, भोजन, समाज और जीवन के बारे में उनकी समझ को समृद्ध किया है।
सुकान्त दीपक- वो कला और साहित्य पर पिछले दो दशक से लिख रहे हैं। सुकांत का निबंध, 'पापा, एल्सवेयर' स्पीकिंग टाइगर द्वारा प्रकाशित संग्रह 'ए बुक ऑफ लाइट' का हिस्सा था। आजकल वो स्वदेश दीपक की कहानियों के संग्रह का अनुवाद कर रहे हैं जिसका 2023 में प्रकाशन होना है।
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