अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मज़दूर सभा का 7वां राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 17 नवंबर 2022

अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मज़दूर सभा का 7वां राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न

  • 16 लाख सदस्यता के आधार पर 15 राज्यों के 800 से ज्यादा प्रतिनिधियों का सम्मेलन 15 नवंबर को सम्पन्न हुआ

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पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद संरक्षक, उत्तरप्रदेश के श्रीराम चौधरी सम्मानित अध्यक्ष, बिहार के भाकपा माले विधायक सत्यदेव राम अध्यक्ष चुने गए, वहीं भाकपा माले पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा फिर से राष्ट्रीय महासचिव चुने गए। सम्मेलन की शुरुआत 14 मार्च के असरदार मार्च से हुआ जिसमें भाकपा माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने शिरकत की और समापन आज़ादी आंदोलन के नायक बिरसा मुंडा को याद करते हुए मार्च निकला और प्रस्तावित वन संशोधन विधेयक 2022 की प्रतियां जलाई गयीं। सम्मेलन से मांग की गई कि गरीबों की योजना और अधिकार को रेबड़ियां बांटना कहकर प्रधानमंत्री ने गरीबों का मज़ाक उड़ाया है,इसके लिए प्रधानमंत्री देश से माफी मांगें।देश में चल रहे मज़दूरी घोटाला की जांच हो और हर क्षेत्र में 700 रुपये दैनिक न्यूनतम मजदूरी और सार्वभौमिक पेंशन की व्यवस्था हो।1 दिसंबर को देश के हर गांव-पंचायत में प्रधानमंत्री का पुतला जलाया जाएगा और राष्ट्रपति को दलित,आदिवासी और गरीबों-मज़दूरों से सम्बंधित 10 सूत्री मांगपत्र की प्रतियां भेजी जाएंगी।सम्मेलन से 9 सूत्री प्रस्ताव पारित किया गया जो निम्नलिखित है। अखिल भारतीय खेत ऐवम ग्रामीण मज़दूर सभा का 7वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन 15 नवम्बर 2022 को कनाई लाल दत्त - रास बिहारी बोस - नज़रूल इस्लाम नगर चंदन नगर हुगली, पश्चिम बंगाल में निम्न प्रस्तावों को पारित करता है।


1. यह सम्मेलन डा. भीमराव अंबेदकर के इस विश्लेषण को स्वीकार करता है कि जाति सिर्फ़ श्रम का विभाजन ही नहीं बल्कि श्रमिकों का भी विभाजन है और मोदी सरकार के समाज में जातिवाद को बढ़ावा देने वाले रवैये का विरोध करता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा उच्च जातियों के लिए 10% इडब्लूएस आरक्षण को स्वीकृति दी गई जिसका मोदी सरकार द्वारा खुले दिल से अनुमोदन किया गया। न्यायालय द्वारा आर्थिक आधार पर दिया गया आरक्षण संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ है जो मूल रूप से समाज के सबसे दबे कुचले एससी, एसटी और ओबीसी को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए था। यह फ़ैसला सामाजिक रूप से पिछड़े एवं दलितों को 10% आर्थिक कोटे से बाहर करता है। आरक्षण कोई ग़रीबी उन्मूलन प्रोग्राम नहीं है बल्कि इसके लिए सरकार को रोज़गार की व्यवस्था करनी होगी जिसमें मोदी सरकार पूरी तरह से असफल रही है।

2. आइरला अपने सदस्यों और आम जन को बढ़ती हुई भूखमरी, महँगाई और ग्रामीण ऋणग्रस्तता के ख़िलाफ़ पुरज़ोर तरीक़े से लड़ने का आह्वान करता है। भारी ऋणग्रस्तता से हुई मौत सरकार की महँगाई और कोरपोरेट पक्षीय नीतियाँ तथा माइक्रो फिनांस कंपनियों द्वारा ग्रामीण ग़रीबी को रोक पाने में असफलता को दर्शाता है। ग्लोबल हंगर सूचकांक में भारत की स्थिति सबसे दयनीय देशों की सूची में शामिल है तथा सूचकांक में भारत की लगातार गिरती हुई स्थिति यह दर्शाती है कि सरकार हमारे ग्रामीण ग़रीबों के बच्चों की जिंदगियों से खिलवाड़ कर रही है तथा उनको कुपोषण के मुँह में ढकेल रही है। बच्चों की बढ़ती हुई मृत्यु दर सरकार के ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये का परिणाम है। इस सम्मेलन में शामिल तमाम प्रतिनिधि सरकार के रवैये के प्रति अपना रोष प्रकट करता है तथा यह संकल्प लेता है कि आम जनों, ग्रामीण ग़रीबों के लगातार गिरते हुए स्वास्थ्य, कुपोषण और मौत के ख़िलाफ़ पुरज़ोर आवाज़ बुलंद करेगा।

3. बेतहाशा महँगाई और बढ़ती बेरोज़गारी ग्रामीण जनता को बुनियादी उपभोग की वस्तुओं में कमी लाने के लिए मजबूर कर रहा है। सरकार बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी पर क़ाबू पाने के बजाए कोरपोरेट और उनके सहयोगियों के पक्ष में नीति बनाकर गैरबराबरी के खाई को और गहरी कर रही है। यह सम्मेलन सरकार की कोरपोरेट परस्त नीतियों का पुरज़ोर विरोध करता है।

4. टीएमसी सरकार में मंत्री पॉर्था चटर्जी ने अपने शिक्षा मंत्री रहते हुए पश्चिम बंगाल में एसएससी और शिक्षक भर्ती में भारी घोटाले किए। हालाँकि पार्थ चटर्जी गंभीर घोटाले के आरोप में जेल के सलाखों के पीछे हैं लेकिन मूल बात शिक्षकों के भर्ती से संबंधित है जोकि अभी भी ठंडे बस्ते में पड़ा है। यह सम्मेलन ग्रामीण शिक्षा और शिक्षकों में कटौती किए बग़ैर पारदर्शी तरीक़े से योग्य स्टाफ़ एवं शिक्षकों की नियुक्ति तुरंत दिलाने की लड़ाई के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करता है।

5. आइरला मोदी सरकार तथा अन्य राज्य सरकारों द्वारा मनरेगा तो तोड़ मरोड़ कर कमज़ोर करने के रवैए जिसमें बजट में कटौती सहित मज़दूरी में कटौती तथा मज़दूरी करने की इच्छा रखने वाले मज़दूरों को इस महँगाई और बेरोज़गार के दौर में रोज़गार न देने की साज़िश का विरोध करता है। मनरेगा को ग्रामीण जनता और ग़रीबों के जीवन और जीविका के अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने के लिए तथा समयबद्ध हर दिन की मज़दूरी  भुगतान उसी दिन करने, 200 दिनों की मज़दूरी तथा 600 प्रतिदिन की मज़दूरी को बाँधने के लिए लड़ाई के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। यह मोदी सरकार अपने कारपोरेट सहयोगियों की भक्ति तथा ग्रामीण ग़रीबों के जीविका के अधिकारों से वंचित रखने के रवैये का ख़िलाफ़त करता है।

6. यह सम्मेलन यह आह्वान करता है कि हम सरकार की ग़रीब विरोधी मनुवादी नीतियों के ख़िलाफ़ ग्रामीण जनता के जीवन, जीविका, वास, आवास, शिक्षा, रोज़गार एवं सम्मान के लिए दलितों एवं आदिवासियों की लड़ाई को मज़बूत करेंगे।

7. यह सम्मेलन एक करोड़ से अधिक महिलायें जो कि सरकारी योजनाओं को लागू करने के काम में लगी हैं को सरकारी कर्मचारी के तौर पर पहचान दिलाने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करता है जिनको न्यूनतम मज़दूरी से भी वंचित किया जाता है। ये महिलायें अधिकतर ग्रामीण परिवेश से आती हैं और हम उनको एकतबद्ध करते हुए उनके आर्थिक अधिकारों को पारित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

8. आइरला के तमाम प्रतिनिधि संयुक्त किसान मोर्चा  के कॉल का समर्थन करते हुए उनके एमएसपी की गारंटी के लिए राजभवन पर धरने के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है। हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि सरकार की नीतियाँ कोरपोरेट फ़ार्मिंग को लाकर ग्रामीण मज़दूरों तथा किसानों के अधिकारों और उनके बारगेनिंग शक्ति को कमज़ोर कर रही है।

9. सम्मेलन कश्मीर में निर्दोष प्रवासी मज़दूर की मौत से आहत है। ये मौत मोदी और शाह की नीतियों का परिणाम है जिसने कश्मीर में अनुच्छेद 370 को ख़त्म करके उसे संघ राज्य का दर्जा दिया। मोदी - शाह की इस नीति ने कश्मीर के जनता के बीच आपसी अविश्वास और उग्र वातावरण पैदा करने का काम किया है। यह सम्मेलन प्रवासी मज़दूरों की जिंदगियों को केंद्र सरकार का राजनीतिक चारा न बने इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। हम माँग करते हैं कि प्रवासी मज़दूरों के सम्मान, सुरक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा की गारंटी एक केंद्रीय क़ानून बनाकर की जाए। 205 सदस्यीय राष्ट्रीय परिषद और 79 सदस्यीय कार्यकारिणी गठित की गई

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