पटना, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक (का), डॉ० आशुतोष उपाध्याय ने श्री सिद्धिविनायक ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के विभिन्न छात्र, छात्राओं, प्राध्यापकों एवं विभागाध्यक्षों को श्रीमद्भगवत गीता में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व अर्जुन को बताये गये नेतृत्व एवं प्रबंधन के सूत्रों से एक व्याख्यान द्वारा अवगत कराया। उन्होंने बताया कि नेता वहीं होता है जो निस्वार्थ होकर मन में सेवा भाव रखें, अपना आत्मविश्लेषण करता रहे, लोगों का विश्वास पात्र बन सके और लोग उसके कृतित्व एवं व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसके अनुयाई बन सकें और नेता सकारात्मक सोच रखकर, सुख- दु:ख, हानि-लाभ, जय-पराजय, यश-अपयश में समभाव रहकर, निष्काम कर्म करता रहे। नेता में यह क्षमता होनी चाहिए कि वह लोगों का उचित मार्गदर्शन कर सके, उनमें नई स्फूर्ति, नई चेतना, जोश और उत्साह भर सके। कुरुक्षेत्र में जब अर्जुन ने अपने सगे संबंधियों और आदरणीय गुरुजनों को अपने सामने युद्ध के लिए प्रशस्त देखा, तो उनका गाण्डीव खिसकने लगा, शरीर कांपने लगा और वह निढाल होकर बैठ गया, तब भगवान श्रीकृष्ण का उसको मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और जब वे उसको विश्वास दिला पाए कि एकाग्रचित्त होकर, भूतकाल एवं भविष्य काल की चिंता किये बगैर लक्ष्य साधने से सफलता अवश्य मिलती है, तब अर्जुन व अन्य पांडव भगवान श्रीकृष्ण के अनुयाई बने और युद्ध में विजय प्राप्त की। नेता और प्रबंधक दोनों में अंतर होता है। नेता औपचारिक या अनौपचारिक किसी भी समूह का नेतृत्व कर सकता है, जबकि प्रबंधक केवल औपचारिक समूह को एकत्रित करके, उनकी क्षमता का दोहन करता है और उनसे अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहता है। श्रीमद्भगवत गीता हमको निष्काम कर्म करने का पाठ पढ़ाती है। 'फल की चिंता किये बिना, बस कर्म पर अधिकार हो। न कर्म फल हेतु बनो, न कर्म त्याग विचार हो।' जो व्यक्ति बिना आसक्त हुए निष्काम भाव से दूसरों के प्रति प्रेम, दया और करुणा रखकर कर्म करेगा, उसको कभी न कभी अवश्य सकारात्मक परिणाम मिलेगा। अपनी इन्द्रियों और चंचल मन पर नियंत्रण पाना मुश्किल है पर निरंतर अभ्यास करने से इन पर नियंत्रण पाया जा सकता है। डॉ० उपाध्याय ने विभिन्न कविताओं और कहानियों के माध्यम से इस कठिन विषय को रोचक और सहज बनाये रखा और अपने समृद्ध विचार व प्रभावशाली वाकशैली से समां बांध दिया।
शनिवार, 3 दिसंबर 2022
बिहार : निस्वार्थ होकर मन में सेवा भाव रखें, अपना आत्मविश्लेषण करते रहें
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