बिहार : ‘‘यूनिवर्सल सोलिडेरिटी मूवमेंट’’ के संस्थापक फादर वर्गीस आलेंगाडन पंचतत्व में विलीन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 29 मार्च 2023

बिहार : ‘‘यूनिवर्सल सोलिडेरिटी मूवमेंट’’ के संस्थापक फादर वर्गीस आलेंगाडन पंचतत्व में विलीन

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पटना. विश्व बंधुत्व और अनेकता में एकता की आध्यात्मिक विचारधारा पर काम करने वाली संस्था ‘‘यूनिवर्सल सोलिडेरिटी मूवमेंट’’ के संस्थापक फादर वर्गीस आलेंगाडन (71) का शहर के रामबाग मुक्तिधाम के विद्युत शवदाहगृह में शाम 5 बजे अंतिम संस्कार किया गया. यूनिवर्सल सॉलिडेटरी मूवमेंट के फाउंडर फादर वर्गीस आलेंगाडन का आज इंदौर में अंतिम संस्कार कर दिया गया. ईसाई फादर वर्गीस आलेंगाडन का आज हिंदू रिवाज से अंतिम संस्कार किया गया.फादर वर्गीस ने आखिरी संदेश में कहा था कि "धरती बचाने के लिए कब्र नहीं, विद्युत् शवदाह की जरूरत" है.इस तरह वे ऐसे पहले और एकमात्र फादर हुए जिनका ईसाई तरीके से दफनाया नहीं गया बल्कि हिन्दू रीति-रिवाज से विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार किया गया. ऐसा करने का निर्णय खुद फादर वर्गीस  ने ही लिया था, उन्होंने जीते जी ही अपने साथ रहने वाले लोगों से कहा था कि  सभी को धरती माँ का आदर करना चाहिए. इसलिए मरने के बाद भी उन्हें 6 फ़ीट जमीन पर कब्जा नहीं करना. वह नहीं चाहते कि उनके अंतिम संस्कार में लकड़ियां भी खर्च हों. बल्कि विद्युत शवदाह गृह में अंत्येष्टि की जाए. लिहाजा उनकी इच्छनुसार ही विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया गया, हालांकि उनके इस निर्णय को सभी ने बिना किसी धार्मिक बंधन के स्वीकार भी कर लिया.  जानकारी के अनुसार पटना महाधर्मप्रांत के पहले आर्चबिशप बेनेडिक्ट जौन ओस्ता ने जीते जी प्रयास कर रहे थे कि राजधानी पटना में स्थित कुर्जी कब्रिस्तान में शव दफनाने के लिए जगहाभाव है.तो मृत ईसाइयों दफनाने के बदले को जलाने फादर वर्गीस बीते 30 वर्षो से भी अधिक समय से इंदौर में ही काम कर रहे थे. वह विश्व बंधुत्व आंदोलन के तहत कार्य कर रहे थे, वह कैथोलिक प्रीस्ट थे. उनके पास उनकी अपनी कोई जमीन नहीं थी, उनके निजी बैंक खाते में कोई राशि शेष नहीं थी.


फादर वर्गीस अपने अंगदान करना चाहते थे. लेकिन डॉक्टरों ने कहा था कि उनकी एक आंख खराब हो चुकी है, जबकि बाइपास के बाद उन्हें कई तरह का इन्फेक्शन था. इसलिए मृत्यु के बाद उनका अंग दान संभव नहीं हो सका. फादर वर्गीस अपने जीवन का बहुत मूल्यांकन करते थे. दूसरे धर्म की किताबों का अध्ययन और अलग-अलग क्षेत्रों के महान लोगों को फॉलो करते थे. उनका शिक्षा देने का तरीका भी मूल्य आधारित था. उनका कहना था जहां मेरी मृत्यु हो उसी शहर में मेरा अंतिम संस्कार किया जाए. इसके लिए जरूरी नहीं है कि मेरे पार्थिव शरीर को पैतृक स्थान या कहीं और ले जाया जाए. इंदौर में यूनिवर्सल सॉलीडेटरी मूवमेंट के फाउंडर फादर वर्गीस आलेंगाडन का 71 वर्ष की आयु में रविवार को निधन हो गया। वे करीब एक माह से बीमार थे। मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार रामबाग मुक्तिधाम के विद्युत शव दाह गृह में हुआ। शहर में संभवत: यह पहला मौका है जब ईसाई समाज के फादर का इस तरीके से अंतिम संस्कार हुआ। दरअसल फादर की इच्छा थी कि मेरी मृत्यु के बाद क्यों छह फीट जमीन पर कब्जा करके रखना चाहिए। उनका मानना था कि धरती का आदर करना और उसके संसाधनों की सुरक्षा करना मनुष्य का कर्तव्य है। यही सोच उनकी लकड़ी को लेकर रही। जिसके चलते दाह संस्कार भी न करते हुए मंगलवार शाम 5 बजे विद्युत शव दाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें कई धर्म के लोग शामिल हुए। समाज जन के मुताबिक 4 मार्च को उनकी बाइपास सर्जरी हुई थी। उसके 15 दिन बाद उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी व फेफड़ों में काफी इन्फेक्शन था। रविवार को रॉबर्ट हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। चूंकि वे सर्वधर्म से जुड़े थे, इसलिए उनके अंतिम संस्कार में अन्य शहरों से भी लोग आ रहे हैं। वे 30 साल तक इंदौर के यूनिवर्सल सॉलीडेटरी मूवमेंट में फादर रहे। इसके लिए वे गृहस्थ जीवन त्याग चुके थे। सोमवार रात त्रिशूर (केरल) से उनके बड़े भाई जानी अलेंगाडन का परिवार इंदौर पहुंच गया था।


सर्वधर्म सद्भावना में विश्वास रखते थे

फादर जैकब ने बताया कि वे गांधीवादी विचारों के थे। उनके पास कोई संपत्ति, जमीन, मकान, बैंक अकाउंट नहीं था। वे अपने लिए कोई भी चीज यहां तक कि मृत्यु के बाद छह फीट जमीन भी अपने लिए नहीं रखना चाहते थे। यही कारण है कि वे मृत्यु के बाद खुद को दफनाने के पक्षधर नहीं थे। दूसरे धर्म के लोग उनका आदर भी करते थे। उनका हमेशा यही मानना रहा कि दूसरे धर्म में जो अच्छी बातें या प्रथाएं हैं, वे हमें मानना चाहिए।


मेरी मौत के बाद मुझसे जुड़ी हर चीज खत्म हो जाएं

यूनिवर्सल सॉलीडेटरी ट्रेनर नीतू जोशी ने बताया कि फादर वर्गीस ने तीन साल पहले कहा था कि जब भी मेरी मौत हो तो मुझसे जुड़ी हर चीज खत्म हो जाएं। अगर मुझे दफनाया गया तो उस स्थान से लोगों को लगाव रहेगा जो मैं नहीं चाहता। मुझे दफनाने के लिए भी क्यों जमीन का छह फीट का हिस्सा उपयोग किया जाना चाहिए। वे संग्रह करने वाली हर चीज से दूर रहते थे। उन्होंने हमेशा लोगों को कुछ देने की कोशिश की है। फादर की सोच थी कि अगर मुझे जलाया गया तो कई पेड़ कटेंगे, जो मैं कतई नहीं चाहता। फादर वर्गीस 1972 से सागर प्रांत से जुड़े रहे। वे सागर में 20 साल तक अलग-अलग चर्च में पेरिश प्रीस्ट, बिशप, चैप्लिन आदि रहे। फिर 1992 में इंदौर प्रांत से जुड़े। तब साकेत नगर मे दो कमरे से यूनिवर्सल सॉलीडेटरी मूवमेंट का संचालन होता था। कुछ साल बाद इसका संचालन महालक्ष्मी नगर से शुरू हुआ और अंत तक वे यही फादर के रूप रहे। उनके निधन पर पद्मश्री जनक पलटा, आईपीएस अनुराधा शंकर सहित कई गणमान्य नागरिकों ने गहरा शोक जताया है। खास बात यह कि उनकी अंतिम क्रिया के लिए इंदौर प्रांत के चाको बिशप व डॉ. जेम्स अतिकलम (फादर, सागर प्रांत) ने भी सहमति दी। मंगलवार दोपहर रेड चर्च पर पहले शोक सभा स्वरूप पहले ईसाई प्रार्थना हुईऔर उसके बाद चर्च में ही सर्वधर्म प्रार्थना सभा भी हुई और उन्हें श्रद्धांजलि दी गई.

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