- 23 तरह के आहार त्यागेंगे प्रतिक्रमण के साथ करेंगे गुरुदेव वंदन
![Jain-news](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihWxUI0r9x4WcCOgPGHIvT7-pc4deF5J2vCmtUtIbUdaiNmi7u_drcMsMFH_rDhAjMRS_Ct5vvRDj9rTmCWmcbjFFmKsMy3z0NwyPVd1AaXvdUHMX6P62-C0F1wC05cTe1S5kVPFvGui_RePDAWGNLuUYTcX292G1B1GSwtEIpU16mddKRssYOqFMu_w/w320-h213/Aachary%20Dr%20Shiv%20Muni.JPG)
उदयपुर - 13 मार्च। जैन परंपरानुसार अष्टमी के मौके पर वर्षीतप के संकल्प लिए जाते है। संकल्प लेने से अगले साल अक्षय तृतीया तक तपस्या का दौर चलेगा। वर्षीतप संकल्प लेने को लेकर समाजजनों में उत्साह का माहौल रहेगा। वर्षीतप को जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान की तपस्या मानकर ही जैन समाजजनों द्वारा संकल्प लिया जाता है। बुधवार 15 मार्च 2023 को जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) का जन्म व दीक्षा कल्याणक है। श्रद्धालुजन वर्षीतप प्रारंभ दीक्षा कल्याणक वाले दिन से ही करते हैं। यह संकल्प लेने वाले व्यक्ति के परिवार को भाग्यशाली माना जाता है। श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र ने बताया कि तप की शुरूआत चौत्र वद अष्टमी से होती है, जबकि पारणा एक वर्ष पश्चात अक्षय तृतीया पर होता है। वर्षभर के उपवास करना संभव नहीं होने को लेकर एक दिन छोड़ कर एक दिन के उपवास 13 महीने में किए जाते हैं जिसमें लगभग 200 उपवास करने होते है जो कि एक दिन छोड़ कर एक दिन उपवास किया जाता है। तप का संकल्प लेने के बाद बासी भोजन, जमीकंद (आलू - प्याज - लहसुन - गाजर - मूली आदि) बहुबीज सहित 23 तरह के आहार त्यागे जाते हैं, जबकि रात्रि के समय पानी पीना भी निषेध होता है। प्रतिदिन सुबह शाम प्रतिक्रमण और दोनों समय गुरुदेव - देववंदन किया जाता है। उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर आचार्य डॉ शिवमुनि विगत 39 वर्षों से वर्षीतप की साधना करने वाले जैन समाज के एकमात्र आचार्य है। पूरे देश में हजारों की संख्या में सकल जैन समाज के साधु साध्वी सहित श्रावक - श्राविकाएँ भी यह तप संपन्न करते है। इसी क्रम में डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि व श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र का सातवाँ वर्षीतप वर्षीतप गतिमान है।
वर्षीतप है भगवान आदिनाथ के प्रति श्रद्धा -
आदिनाथ भगवान ने गन्ने के रसपान से ही उपवास खोलने का नियम पाला था, लेकिन किसी भी व्यक्ति द्वारा उन्हें गन्ने का रस नहीं धराया गया। ऐसे में तेरह महीने तक उनका पारणा नहीं हो पाया और वे उपवास करते रहे। आदिनाथ भगवान ने तपस्या के बाद पहला पारणा हस्तिनापुर में किया था दूसरा पारणा पालीतना (गुजरात) में किया था। इसी को लेकर जैन समाजजन भी वर्षीतप के पहले वर्ष का पारणा हस्तिनापुर दूसरा पालीतना करते हैं।
वर्षीतप का लाभ -
वर्षी तप करने से, स्वाद, रस, आहार, शरीर, आयुष्य आदि के प्रति रस रति राग घटता है। स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा आत्मा आदि में विघ्न घटते हैं। तन्मयता दीर्घकाल तक बढ़ती है। वर्ष के सभी मास, पक्ष, तिथियाँ सफल बन जाते हैं। यह भव शांति समाधिमय बीतता है। पर भव सभी सुखों से पूर्ण मिलता है। पर्यवसान मोक्ष निकट बनता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें