कविता : मेरे बचपन की जिंदगी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 30 अप्रैल 2023

कविता : मेरे बचपन की जिंदगी

मेरी जिंदगी कुछ ऐसी थी,

न ही दिन का खाना था,

न रात का ठिकाना था,

बचपन का जमाना था,

जब लड़की और लड़के में भेदभाव होता था,

मगर हमें कहां पता होता था।।

राह में चलते लोग मुझे,

गुड़िया कह कर पुकारते थे,

मगर पता नहीं था कि,

बड़े होकर लोग मुझे,

पराये घर की कहकर पुकारेंगे।।

मैं संसार की हर ताकत में थी,

मैं संसार की हर झंकार में थी,

बस एक ही उस नाम पर थी,

जिस पर लड़का नहीं, 

मैं एक लड़की थी।।





Nandini

नंदिनी

कक्षा - 12वीं

कपकोट, बागेश्वर

उत्तराखंड

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: