बिहार : विवान सुंदरम व सुनीत चोपड़ा ने कला को समाज से जोड़कर देखा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 17 अप्रैल 2023

बिहार : विवान सुंदरम व सुनीत चोपड़ा ने कला को समाज से जोड़कर देखा

  • 'अभियान  संस्कृतिक  मंच' ने किया विवान  सुंदरम व सुनीत  चोपड़ा  की स्मृति सभा का आयोजन

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पटना, 17 अप्रैल. प्रख्यात चित्रकार  विवान सुंदरम  तथा चर्चित  कला समीक्षक  सुनीत  चोपड़ा  की स्मृति में सभा  का आयोजन  पटना की संस्था 'अभियान  सांस्कृतिक  मंच' के तत्वाधान  में किया गया. स्मृति सभा में खासी संख्या में पटना के चित्रकार, मूर्तिकार, फोटोग्राफ़र, साहित्यकार, सामाजिक -राजनीतिक  कार्यकर्ता आदि मौजूद थे. प्रारम्भिक वक़्तव्य व संचालन  जयप्रकाश  ने किया. सुप्रसिद्ध कला समीक्षक  सुमन  सिंह ने  स्मृति सभा को संबोधित  करते हुए कहा  '' दिल्ली वाले कला समीक्षकों  को सुविधा  से गाड़ी  देकर बुलाते थे लेकिन कलाकारों के पास उतना संसाधन  नहीं रहा करता है. सुनीत  चोपड़ा  ऐसे लोगों को अधिक  तरजीह दिया करते थे उभरते  लोगों को मदद किया करते थे. अपनी ज़िन्दगी में मैं ऐसे लोगों को कम् देखा है जो किसान -मज़दूर के लिए लिख रहे हैं साथ ही  कला लेखन भी कर रहे हैं. विवान  सुंदरम न्यू मीडिया  को सबसे पहले जला जगत  में शामिल  किया.उसके ध्वजवाहक  थे. उनका जुड़ाव अमृता  शेरगिल  के साथ था.  वे मानवता  के जितने पक्षधर  थे मानवधिकारों  के भी उतने ही बड़े समर्थक थे. विवान सुंदरम  का मानना पेंटिंग में आप एक फ्रेम में बंध  जाता है दर्शक एक सीमा में बंध जाता है उसके बाहर नहीं  देख पाता.उन्होंने पाबलो  नेरुदा का चित्र बनाया."


माकपा  से जुड़े  नेता अरुण मिश्रा ने सुनीत  चोपड़ा  के साथ  अपने संबंधों  को याद  करते हुए कहा " सुनीत  चोपड़ा  पटना तब आया करते थे ज़ब छात्र  हुआ करते थे.  उनका अपनी पत्नी से अलगाव  वैचारिक  मतभेद  के कारण हुआ. वे खाने  के भी बड़े शौक़ीन  थे . जिस दिन मृत्यु हुई वे 5 अप्रैल को होने वाली रैली  में शामिल  होने जा रहे थे .  सुनीत  चोपड़ा  से जो सीखने  की बात है कि आपक भले  ज्ञानी हैं लेकिन यदि  जनता से जुड़ाव  नहीं है तो फिर उस ज्ञान का कोई मतलब नहीं  है . विवान सुंदरम से मेरा रिश्ता तब ना ज़ब हम यूथ  डेलीगशन में हवाना  जा रहे थे. तब के प्रधानमंत्री ने कहा था कि आप हवाना मात्र 50 डॉलर  ले जा सकते थे. हमारा कोई खर्च न थे. एक दिन हम लोगों कहा गया कि विवान को मैकसिको जाना था जिसमें हमलोगों ने मदद किया था. विवान 1968  में फ्रांस में जो क्रांतिकारी  उभार था उससे उनका जुड़ाव था. माच्चू -पिच्चू  के शिखर  प्र कविता लिखी थी. उनके जो विद्वता  थी लिखने पढ़ने  की वह हमलोगों को बड़ी विरासत छोड़  गए हैं. " सामाजिक  कार्यकर्ता गोपाल  कृष्ण  ने अपने संबोधन  में कहा "  सुनीत  चोपड़ा  ने जवाहर  लाल नेहरू विश्वविद्यालय का संविधान ड्राफ्ट किया था.  उन्होंने ऐसे छात्र  संघ  की कल्पना की जिसके बारे  में लिंगड़ोह कमिटी भूल कर गई. यदि भारत  को देखना  हो तो यहाँ की  विविधता  से परिचित  होना है तब जे.एन.यू  को देखना चाहिए.  भारत में छात्र  संघ  के मॉडल  का निर्माण किया सुनीत  चोपड़ा  ने. 2014 में क़ृषि  कानून  को अध्यादेश  के जरिये जमीन अधिग्रहण किया जाए. उस आंदोलन  के निर्माताओं  में थे सुनीत  चोपड़ा. विवान  सुंदरम ने प्रगतिशील  दुनिया बनाने  के जो चिन्ह छोड़े  हैं वे मिटाये नहीं  जा सकते. "


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संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने अपने संबोधन  में कहा " विवान  सुंदरम ने 'वेज ऑफ रेजिस्टेंस' जैसी  प्रदर्शनी क्यूरेट किया. जिसमें गुजरात  दंगों तथा  साम्प्रदायिक  हिंसा  में मारे  गए लोगों को ध्यान में रखकर  यह प्रदर्शनी थी. सुनीत  चोपड़ा  ने अपनी  समीक्षा  में विवान सुंदरम की इस प्रदर्शनी के बारे में कहा  कि हिंसा के विक्टिम जहां  हैं उनके रिसीस्टेंस   को लाया गया ये अच्छी बात है विशेषकर  गुजरात, उत्तरप्रदेश आदि राज्योँ में लेकिन जहां  प्रतिरोध की ताकतों को स्थायित्व है जैसे  पश्चिम  बंगाल, जहाँ  वामपंथ  की सरकार  तीन दशकों  से है, उसे विजुअल मीडियम  में लाना चाहिए था.  विवान सुंदरम   अपने प्रारम्भिक जीवन  में एकटीविस्ट थे. मई 1968 के  फ्रांस में शुरू  हुए आंदोलन  में शामिल  हुए इस कारण  सिकसीएटर्स कहे जाते थे. वियतनाम  युद्ध के खिलाफ हुए  प्रदर्शनी में शामिल  होने के कारण  दो महीने  जेल में रहे. इन अनुभवों ने उन्हें  कला जगत  में हमेशा सामाजिक  सरोकारों  से जोड़ कर रखा. सुनीत  चोपड़ा  एक ओर सबसे असंगठित  मैने जाने वाले खेत  मज़दूरों को संगठित  किया तो दूसरी  ओर कला प्र लिखते रहे. " कला समीक्षक  व प्रशासनिक  पदाधिकारी  विनय कुमार  ने कहा  "  हमें इस बात  का फ़ख्र  है कि बोध  गया के प्रथम संस्करण के कलाकारों  की सूची जारी की थी. उस वक़्त उन्होंने कहा था कि कलाकारों  को बोधगया  के इतिहास  को ठीक  से जानकर अपना काम करें  ज़ब वे नालंदा  गए थे तो मैं भी गया था. उस दौरान उनसे बात करने का मौका मिला. कला की दुनिया में सामाजिक  सरोकार की बात, मुद्दों की बात उठाते  हैं. जो भी आंदोलन  रहे उसका गहरा  सरोकार  रहा. सफदर हाश्मी  की हत्या  के बाद 'सहमत' संस्था को बनाने में बड़ा योगदान  रहा. चित्त प्रसाद, सोमनाथ  होर ने जो परम्परा शुरू  की उसे अपने ढंग  से शुरू  किया.  कोच्ची  बिनालेसे पता चलता है वे कला की विरासत को भी समझने  की कोशिश  करते हैं. उसमें गहरे तौर पर जुड़ते हैं. कई  लोग सरोकारों  की बात तो करते हैं लेकिन गहरे  नहीं  उतरते हैं. अमृता  शेरगिल  परिवार  को रिक्रीएट किया. ज़ब मध्यपूर्व में तेल का संकट होता है उसपर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं.  विवान का जाना कला को भी सिर्फ सौंदर्य नहीं बल्कि मनुष्य बने रहने के माध्यम  केरूप में भी देखते  हैं. सुनीत  चोपड़ा  जैसे कला समीक्षक  बहुत  कम् है जिन्होंने  खुलकर  बातें की. ऐसे समीक्षक  बहुत कम् है. चाक्षुष  कलाओं  की दुनिया बहुत  आडंबर युक्त दुनिया है उसमें  ऐसे लोग बेहद कम् हैं. "


बिहार म्यूजियम के डायरेक्टर अशोक  कुमार  सिन्हा ने  दोनों को याद  करते हुए कहा "  ज़ब सुनीत  चोपड़ा  के बारे में ज़ब बात हो रहे थे तो मुझे लोहिया जी की याद रहे थे ज़ब वे जर्मनी  से पढ़कर  आये तो उनके पास पैसा न था. तब वे इंडियन एक्सप्रेस  जाकर एक आलेख  लिखा और उसी पैसे  से घर गए. ठीक ऐसे ही हाल कर्पूरी ठाकुर के पास बस का भाड़ा  नहीं था. लेकिन इनके पास किताबें  रहती थी. उन्होंने किताबों  को भेजा तब लौटे.  विवान  सुंदरम से मेरी दो मुलाक़ातें  हुई. 2012 में ज़ब मेरी पोस्टिंग उपेंद्र महारथी  में हुई. वहां  एक बार  केदार नाथ सिंह  से पूछा  कि किसको कला समीक्षक के रूप में बुलाएं  तब विनोद भारद्वाज, प्रयाग शुक्ला, प्रभु जोशी  वगैरह  आये. विवान सुंदरम नहीं आ पाए थे. एक बार ज़ब मैं इंदौर  गया तो प्रभु जोशी  के घर पर विवान  सुंदरम से मुलाकाट हुई. लगभग  दो ढाई  घंटे  तक बात होती रही. प्रभु जोशी  और विवान सुंदरम की बातचीत  से समकालीन  कला के बारे में बहुत  कुछ  पता चला. चार -पांच  साल पहले अंजनी कुमार  सिंह के अतिथि  के रूप में आमंत्रित थे.  मैंने  विवान सुंदरम से पूछा  था कि यहां  के लोककला का भविष्य  है या नहीं. तब विवान  सुंदरम ने बताया था कि बिहार  के कलाकार जिन विषम परिस्थितियों में बिहार  के कलाकार काम कर  रहे हैं उसमें यदि कला की दुनिया में कुछ बढ़िया  हुआ तो बिहार  से होकर ही गुजरेगा. " युवा चित्रकार  ने जसम के पूर्व महासचिव  अजय सिंह का विवान  सुंदरम पर लिखे आलेख का पाठ किया. इस मौके  पर बिहार  के चर्चित  कलाकार  वीरश्वर  भट्टाचार्य  की पत्नी श्रद्धा  भट्टचार्य  की स्मृति को श्रद्धांजलि अर्पित किया गया. रंगकर्मी राजू  कुमार  ने  अपनी कविता  का पाठ किया. सभा में मौजूद  प्रमुख लोगों में थे  लेखक अरुण सिंह, अर्चना सिंह, फोटोग्राफ़र शैलेन्द्र,  मूर्तिकार रामू  कुमार, कमल किशोर, राखी, बिट्टू भारद्वाज ,  मुकेश, अभिषेक, पुष्पेंद्र शुक्ला, अक्षय, गगन गौरव,  प्रमोद, रविशंकर  उपाध्याय, गौतम ग़ुलाल, मधु, अंकिता, समप्रीत, प्रेम प्रतिज्ञा आदि.

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