प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार इस सृष्टि से पहले सत व असत नहीं थे। केवल भगवान शिव थे। शिव का अर्थ है-कल्याण। अतः शिव रूप बनने के लिये सभी के कल्याण के भाव, सभी के मंगल की कामना को हृदय में बसाना एवं आत्मसात करना होगा। इस तरह अपनी आत्मा में ऐसे शिवत्व को प्रकट करने की साधना को ही सार्थक शिव पूजा या शिव दर्शन कह सकते हैं। इसके लिये सबसे पहले आत्मा के वाहक अर्थात् शरीर शिव भाव से ओत-प्रोत बने। इसके लिये शिव की आराधना करने वाले तप एवं ब्रह्मचर्य की साधना करें। शिवरात्रि का पर्व अत्यन्त विशिष्ट एवं आध्यात्मिक पर्व है। इसलिये इसे महाशिवरात्रि कहा गया है। शिव को महाकाल भी कहा गया है। परमेश्वर के तीन रूपों में से एक रूप की उपासना महाशिवरात्रि को की जाती है।
महाशिवरात्रि के बारे में कहा गया है कि जिस शिवरात्रि में त्रयोदशी, चर्तुदशी तथा अमावस्या तीनों ही तिथियों का स्पर्श होता है, उस शिवरात्रि को अति उत्तम माना जाता है। महाशिवरात्रि पर्व क्यों मनाया जाता है? इसके लिये अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं, उनमें से एक मान्यता के अनुसार भगवान शिवजी ने इस दिन ब्रह्मा के रूप में भद्र अवतार लिया था। इस दिन प्रलय के समय प्रदोष के दिन भगवान शिव तांडव करते हुए समस्त ब्रह्माण्ड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इस कारण इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। शिव का सच्चा उपासक वही है जो अपने मन की स्वार्थ भावना को त्यागकर परोपकार की मनोवृत्ति को अपनाता है। ‘‘विविध शक्तियाँ, विष्णु तथा ब्रह्मा जिनके कारण देवी व देवता के रूप में विराजमान हैं, जिनके कारण जगत का अस्तित्व है, जो यंत्र-मंत्र है, ऐसे तंत्र के रूप में विराजमान शिव को बारम्बार प्रणाम।’’
डॉ. अलका अग्रवाल
निदेशिका, मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस
ग़ाज़ियाबाद
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