- पद्मश्री पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अशोक चक्रधर को रंगमंच के प्रति उनके आजीवन समर्पण के लिए "आजीवन रंग सेवा पुरस्कार" से सम्मानित किया गया।
- 7 अक्टूबर शनिवार शाम 6:30 बजे होगा सुल्ताना का मंचन, जो राजस्थान के रंगरेज समुदाय के भीतर साहस और सामाजिक सुधारों की कहानी है।
नई दिल्ली. रतनव द्वारा तीन दिन के नाट्य रंगोत्सव का आगाज श्री राम सेंटर में यम पुत्र नाटक के साथ शुरु हुआ।पहले दिन प्रसिद्ध लेखक विकास कुमार झा द्वारा लिखित नाटक 'यम पुत्र' का मंचन किया गया। साथ ही पद्मश्री पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अशोक चक्रधर को रंगमंच के प्रति उनके आजीवन समर्पण के लिए "आजीवन रंग सेवा पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध लेखक विकास कुमार झा द्वारा लिखित पहला नाटक 'यम पुत्र', जिसका मंचन रतनव नाट्य रंगोत्सव में पहले दिन किया गया, एक हिंदू ब्राह्मण परिवार द्वारा गोद लिए गए महापात्र समुदाय के एक लड़के के इर्द-गिर्द घूमती भेदभाव की मार्मिक कहानी है। यम पुत्र एक सम्मोहक कथा है जो भारत में महापात्र समुदाय द्वारा अनुभव किए गए गहन सामाजिक भेदभाव को उजागर करती है।
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रमा पांडे द्वारा निर्देशित और प्रस्तुत किए गए नाटकों का आनंद श्री राम सेंटर ,मंडी हाउस ले सकते हैं। ये नाटक आधुनिक समाज में महिलाओं की समस्याओं पर सीधे सवाल उठाते हैं। समाज में कुछ ज्वलंत प्रश्नों को प्रस्तुत करने की परंपरा को जारी रखते हुए, नाट्य रंगोत्सव थिएटर के माध्यम से समाज के कुछ सबसे उपेक्षित मुद्दों को उठाएगा। अशोक चक्रधर को आजीवन रंग सेवा पुरस्कार दिए जाने पर रतनव की संस्थापक रमा पांडे ने कहा कि “आपने जो रंगमंच के क्षेत्र में योगदान दिया है वह अद्भुत है। रतनव उन कलाकारों का सम्मान करती है जो 60 से ऊपर के हो चुके हैं और जिन्होंने पांच क्षेत्रों टेलेविज़न, थिएटर, रेडियो, फिल्म और लेखन में अहम योगदान दिया है। इस बार अशोक चक्रधर को ‘आजीवन रंग सेवा पुरस्कार’ देना हमारे लिए गर्व की बात है”। अशोक चक्रधर ने इस मौके पर कहा “ मैं एकांत में खुद से पूछता हूँ कि मैं क्या चीज हूँ , मेरा वजूद क्या है? तो मैं पाता हूँ की मैं एक नाटककार हूँ और ये एक सच्चाई है। और मैं समझता हूँ कि नाटक मेरा पहला प्रेम है,मैं मूलतः रंग कर्मी ही हूँ । और मैं आभारी हूँ कि मुझे आजीवन रंग सेवा पुरस्कार दिया जा रहा है”। भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने भारतीय लोक नृत्यों के विलुप्त होने पर अपनी चिंता जाहिर करते हुआ कहा कि “ लोक संगीत, लोक नृत्य इत्यादि विलुप्त हो रहे है। जिसको हम शास्त्रीय संगीत कहते है वो तो बचा हुआ है लेकिन शास्त्रीय नृत्य वो धीरे – धीरे किसी और दिशा में जा रहा है। यदि हम इसके प्रति सजग नहीं रहे तो शास्त्रीय नृत्य भी धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगा”।
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