- भारतीय कार्डिनल के रूप में कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो ने पोप फ्रांसिस का चुनाव में मतदान किया था, शनिवार को रांची महागिरजाघर में दफन होगा
- रांची महाधर्मप्रांत के बिशप तेलेस्फोर पी टोप्पो का निधन से मसीही समुदाय में शोक की लहर
रांची. गुमला के चौनपुर के सुदूरवर्ती झाड़गांव गुमला में हुआ था एशिया के प्रथम आदिवासी कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो का जन्म.उनका जन्म 15 अक्टूबर 1939 को हुआ था.वे पहले आदिवासी थे जो पुरोहित बने, बिशप बने,आर्च बिशप बने और कार्डिनल बने.आज यह इतिहास बन गया.उनका बुधवार को मांडर स्थित लिवंस हॉस्पिटल में निधन हो गया.वे 84 वर्ष के थे. रांची महाधर्मप्रांत के बिशप तेलेस्फोर पी टोप्पो का बुधवार को मांडर स्थित लिवंस हॉस्पिटल में निधन हो गया. कार्डिनल का इलाज कर रहे चिकित्सकों ने बताया कि कार्डिनल की हृदय गति कम होने लगी थी. और लगभग शून्य तक पहुंच गई थी. आज इलाज के दौरान उनका निधन हो गया. उनके निधन से मसीही समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है. वह काफी समय से बीमार थे, 4 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 3: 45 बजे मांडर स्थित लिवंस हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली. वह 84 वर्ष के थे. रांची महाधर्मप्रांत के सहायक बिशप थेओदोर मैस्करेनहास ने कहा कि छोटानागपुर चर्च के विकास में उनके अपार योगदान के लिए रांची आर्चडायसिस, धार्मिक और मंडली हमेशा उनका आभारी रहेगा. उन्होंने बिशप की देखभाल करने वाले अस्पताल के कर्मचारियों को भी धन्यवाद दिया है. 21 अक्टूबर 2003 को संत पिता के धर्माध्यक्ष तेलेस्फोर पी. टोप्पो को कॉलेज ऑफ कार्डिनल में शामिल किया गया. कैथोलिक कलीसिया के ऐसे सम्मानीय पद से नवाजे जाने वाले वे प्रथम एवं पूरी एशिया के पहले आदिवासी बिशप थे. जनवरी 2004 में दो साल के लिए कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीसीबीआई) के अध्यक्ष चुने गए. कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो का जन्म 15 अक्टूबर 1939 में गुमला के चैनपुर के सुदूरवर्ती झाड़गांव गुमला में हुआ था. उनके पिता एंब्रोस टोप्पो व माता सोफिया खलखो थी. वह 10 भाई-बहन थे. कार्डिनल पी टोप्पो भाई-बहनों में आठवें नंबर पर थे. बेल्जियम के पुरोहित के जीवन से प्रेरित होकर उन्होंने संत अल्बर्ट सेमिनरी में दाखिला लिया. संत जेवियर कॉलेज रांची से अंग्रेजी में स्नातक की डिग्री हासिल की. रांची यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए की पढ़ाई पूरी की. दर्शनशास्त्र की पढ़ाई संत अल्बर्ट कॉलेज रांची में जारी रखा. दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए उन्हें पोनटिफिकल अर्बन यूनिवर्सिटी रोम भेजा गया. 8 मई 1969 को बिशप फ्रांसिसकुस के द्वारा स्विट्जरलैंड के बसेल में एक पुरोहित अभिषेक किये गए. वे एक युवा पुऱोहित के रूप में भारत वापस लौटे और संत जोसेफ स्कूल तोरपा में पढ़ाने के लिए नियुक्त हुये. इसके साथ ही विद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य बने. सन 1976 में लीवनंस बुलाहट केंद्र तोरपा की स्थापना की और वे पहले अन्वेषक एवं निर्देशक बने. इसके बाद महाधर्माध्यक्ष पीयूष केरकेट्टा एसजे आर्चबिशप हाउस रांची के सेक्रेटरी बनाये गये. 8 जून 1978 को कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो को दुमका के बिशप के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने प्रभु का मार्ग तैयार करो को आदर्श वाक्य चुना.
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