कविता : हमर पहाडक रहन सहन (कुमाउनी कविता) - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 6 नवंबर 2023

कविता : हमर पहाडक रहन सहन (कुमाउनी कविता)

यो छु हमर पहाड स्वर्ग समान

यो छु हमर जनम भूमि महान

डुगं माटक कुढ या हुनी

पाथरक बिधी छत छावनी

शहरक लोग उठण बखत अलार्म धरनी

पहाडक मेष चिड़िया चहकेल उठ जानी

एक एकक आहटेल सब चलनी

मिल जूल बे समाज मे रुनी

चुल मे ज्यौ मडुवक रवट बढुनी

पीनाउक जस साग लगूनी

चार पांच तो भैंस रुनी

या बुवारी दूर जंगल बे घा काट लुनी

प्यास लागढ बखत धारक पाण पि लिनी

या शुद्ध हाव शुद्ध पाण पिनि

या मेष किसानी ले करनी

धान गियु भर पेट खानी





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महिमा जोशी

उम्र - 19 वर्ष

कन्यालीकोट, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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