- श्री रामलला विराजमान एवं प्राण-प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में जारी पांच दिवसीय श्रीराम कथा
कथा के चौथे दिन जगद गुरु महावीर दास ब्रह्मचारी महाराज यज्ञ की रक्षा के लिए राजा दशरथ के दो पुत्र राम व लक्ष्मण को मांगकर ले जाना, प्रभु श्री राम द्वारा राक्षसी ताड़का का वध करना, ताड़का के वध का समाचार पाकर मारीच व सुबाहू से युद्ध करना तथा अहिल्या का उद्धार करना आदि प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि प्रभु श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के बड़े होने पर अयोध्या में मुनि विश्वामित्र का आगमन होता है। राजा दशरथ उनका खूब स्वागत सत्कार करते हैं। मुनि विश्वामित्र राजा दशरथ को बताते हैं कि वन में जब वे यज्ञ करते हैं तो राक्षस उन्हें तहस-नहस कर देते हैं। इसलिए वे यज्ञ की रक्षा के लिए राजा दशरथ से श्री राम और लक्ष्मण को साथ भेजने की बात कहते हैं। यह सुन राजा दशरथ उन्हें श्री राम-लक्ष्मण को भेजने से इंकार कर देते हैं। वे कहते हैं कि वे यज्ञ की रक्षा के लिए पूरी सेना ले जाएं लेकिन श्री राम और लक्ष्मण को नहीं। इस पर गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ को समझाया। गुुरु वशिष्ठ के समझाने पर राजा दशरथ श्री राम और लक्ष्मण को मुनि विश्वामित्र के साथ भेज देते हैं। जब मुनि विश्वामित्र ने रास्ते में श्री राम और लक्ष्मण को बताया कि इस जंगल में ताड़का नाम की राक्षसी का आतंक है जो लोगों को खा जाती है। इसी दौरान उनका सामना ताड़का से हो जाता है। ताड़का उन्हें देख उन पर आक्रमण कर देती है। इस पर श्री राम ताड़का का वध कर देते हैं। ताड़का के वध के बाद मुनि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण को लेकर आश्रम आ जाते हैं। मुनि विश्वामित्र आश्रम में शिष्यों के साथ यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ की रक्षा के श्री राम और लक्ष्मण तैनात रहते हैं। इसी दौरान मारीच और सुबाहु नाम के राक्षस यज्ञ को नष्ट करने के लिए पहुंच जाते हैं। श्री राम लक्ष्मण से उनका भीषण युद्ध होता है। अंत में श्री राम लक्ष्मण दोनों राक्षसों का वध कर देते हैं।
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