कविता : ऊंची है मंजिल मेरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 18 अगस्त 2024

कविता : ऊंची है मंजिल मेरी

ऊंची है मंज़िल मेरी,

राह मैं ख़ुद बनाऊँगी,

डगमगा जाऊँ अगर कहीं,

तो फिर खड़ी हो जाऊँगी,

आगे बढ़ना सीखा है मैंने,

पीछे कैसे मुड़ जाऊँगी,

ना मानूँगी हार कभी,

सफलता तभी तो पाऊँगी,

तैयार है पूरी मेरी,

मेहनत करते जाना है,

सपना है यह मेरा,

मंज़िल तक मुझे जाना है,

रहे तो है कई मगर,

मंज़िल मेरी एक है,

बढ़ते रहना आगे निरंतर,

रास्ता भी होना नेक है।।





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प्रियंका कोशियारी

कक्षा-10

कपकोट, उत्तराखंड

चरखा फीचर

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