हमें इस राष्ट्रीय पर्व पर अंतर्मन से यही विचार करना होगा कि हमारे राष्ट्रीय कर्तव्य क्या हैं? अगर इस दिशा में गंभीरता पूर्वक और सकारात्मक दृष्टि से चिंतन कर लिया तो स्वाभाविक रूप से हम और हमारा समाज राष्ट्रीय चेतना की भाव धारा को आत्मसात करते हुए अपने व्यवहार को राष्ट्र के अनुकूल बनाने के लिए मार्ग बना सकेगा। आज प्रायः यह देखने में आता है कि हम छोटी सी छोटी ऐसी समस्या के लिए शासन और प्रशासन को दोष देते हैं, जो हमारे स्वयं के द्वारा निर्मित की जाती है। हम जीवन में यह तय कर लें कि हम इस देश के लिए समस्या नहीं समाधान का हिस्सा बनेंगे तो कई समस्याएं अपने आप ही समाप्त हो जाएंगी। भारत के श्रद्धेय महापुरुषों ने इसी के लिए ही तो अपना सर्वस्व समर्पण किया था। महात्मा गांधी ने आजादी मिलने से पूर्व कहा था कि मैं एक ऐसे भारत का निर्माण करूंगा, जिसमें ऊंच नीच का भेद नहीं हो, जिसमें स्वदेशी का भाव प्रथम हो। लेकिन ऐसा लगता है कि महात्मा गांधी के ये विचार राजनीतिक स्वार्थ की बलिवेदी में स्वाहा हो गए हैं। समाज में भेद पैदा करने की दिशाहीन राजनीति का बोलबाला है। जिसके कारण देश कमजोर होता जा रहा है। महात्मा गांधी ने जो दर्शन दिया, वह भारत को मजबूत बनाने का दर्शन है। इसे हम सभी को धारण करना होगा। हम प्रायः एक गीत सुनते हैं और कभी गुनगुनाते भी हैं। ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी। कहने भर के लिए यह एक गीत है… लेकिन इसके प्रत्येक शब्द में एक प्रेरणा है। जिन महापुरुषों ने भारत की आने वाली पीढ़ियों के लिए आजादी दिलाई, उनके संघर्ष को हम भूल गए… उनकी कुर्बानी को विस्मृत कर दिया। आज हमारी आंखों में उन शहीदों की गाथा सुनकर पानी नहीं आता। इससे ऐसा लगता है कि आज का समाज संवेदना रहित हो गया है। आज के समय में एक बार फिर से अपने मन में राष्ट्र के प्रति संवेदना जगाने की आवश्यकता है।
मेरा सभी देश वासियों से आग्रह है कि आज देश के लिए मर मिटने की आवश्यकता नहीं, देश के लिए जीने की आवश्यकता है। जिसने देश के लिए जीना सीख लिया… वह अपने राष्ट्रीय कर्तव्य की कसौटी पर हर परीक्षा में पास होता जाएगा। जो बलिदान हो गए, उनको और उनके सपने को साकार करने के लिए हम सभी को राष्ट्रीय भाव के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। हमें यह भी याद रखना होगा कि हमारी विरासत हमारा गौरव है। यह विरासत भारत के महापुरुषों ने ही बनाई है। हम सभी इस विरासत को बचाने के लिए मन से तैयार हो जाएं, यह राष्ट्र को फिर से एक मजबूत आधार प्रदान करेगा। जो आने वाली पीढी के लिए एक सुखमय भारत का निर्माण करेगा। अंत में यही कहना चाहूंगा कि भारत अति प्राचीन राष्ट्र है। यहां सांस्कृतिक विरासत है। इस विरासत को सहेजना भी हमारी जिम्मेदारी है। मैं इस गाने की पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करूंगा।
अपनी आजादी को हम हरगिज भुला सकते नहीं।
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।
भारत माता की जय।
सुरेश हिन्दुस्थानी, वरिष्ठ पत्रकार
लश्कर ग्वालियर मध्यप्रदेश
मोबाइल : 9770015780
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