सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता है. कहते है इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र के रूप में जन्म लिया था. भगवान विश्वकर्मा का जिक्र 12 आदित्यों और ऋग्वेद में है. उन्हें सृष्टि का पहला इंजीनियर माना जाता है. इस दिन घर, दुकान या फैक्ट्रियों में लोहे, वाहन और मशीनों की पूजा की जाती है. भगवान विश्वकर्मा की अनुकंपा से ये मशीनें जल्दी खराब नहीं होती हैं. कार्य, कारोबार में उन्नति आती है. भारत के कई हिस्सों में विश्वकर्मा पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. इस बार विश्वकर्मा पूजा यानी जयंती 17 सितंबर को है. खास यह है कि इस बार की विश्वकर्मा पूजा रवि योग में है. इस दिन रवि योग सुबह 6ः07 मिनट से प्रारंभ है, जो दोपहर 1ः53 मिनट तक है. जबकि दिन में 11ः44 मिनट से भ्रद्रा लग रही है. यह रात 9ः55 मिनट तक रहेगी. इस भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर है. धरती की भद्रा अशुभ प्रभाव वाली मानी जाती है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं. ऐसे में आपको विश्वकर्मा पूजा भद्रा से पहले कर लेनी चाहिए.
शुभ मुहूर्त
भाद्रपद महीने में सूर्य जब कन्या राशि से निकलता है और सिंह राशि में प्रवेश कर जाता है तो ऐसे में विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है. इस साल सूर्य, 16 सितंबर को शाम के वक्त 7 बजकर 29 मिनट पर कन्या राशि में प्रवेश करेंगे. ऐसे में विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर के दिन मनाई जाएगी. भद्रा काल लगने की वजह से इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए सीमित समय सीमा रहेगी. दोपहर को भद्रा काल लग रहा है. कहा जाता है कि भद्राकाल के दौरान पूजा नहीं करनी चाहिए. इससे नकारात्मकता बढ़ती है. 17 सितंबर को आप सुबह 06 बजकर 07 मिनट से लेकर 11 बजकर 43 मिनट तक विश्वकर्मा पूजा कर सकते हैं. तो इस लिहाज से विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त कुल 5 घंटे 36 मिनट का होगा. इसी दौरान ईश्वर की पूजा का लाभ प्राप्त होगा. जहां तक संयोग का सवाल है तो रवि योग तब बनता है जब चंद्रमा और सूर्य के नक्षत्र में बदलाव देखने को मिलते हैं. इस दिन सूर्यदेव की पूजा करने से बहुत लाभ होता है और सुख-समृद्धि में भी बढ़ावा होता है. रवि योग के बारे में कहा जाता है कि ये मनुष्य के सभी दोषों का नाश कर देता है और इस योग के लोगों को फल प्राप्ति भी जल्दी मिलती है. रवि योग सुबह 6 बजकर 7 मिनट से प्रारंभ है, जो दोपहर 1 बजकर 53 मिनट तक है. कहते है ब्रह्माजी ने जब सृष्टि की रचना की थी, तब उसके सजाने और संवारने का काम विश्वकर्माजी ने ही किया था। इसी श्रद्धा भाव से किसी कार्य के निर्माण और सृजन से जुड़े लोग विश्वकर्मा जयंती पर पूजा अर्चना करते हैं।
विश्वकर्मा पूजा विधि
विश्वकर्मा जयंती पर सुबह जल्दी उठकर स्नान व ध्यान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद ऑफिस, दुकान, वर्कशॉप, फैक्ट्री आदि छोटे या बड़े संस्थान की पूरी तरह साफ सफाई करें। साथ ही सभी उपकरण, औजार, सामान, मशीन की भी साफ सफाई करें। फिर पूरी जगह गंगाजल से छिड़काव करें। पूजा के लिए सबसे पहले पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें और फिर चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर विश्वकर्मा की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें और माला पहनाएं। इसके बाद हाथ में फूल और अक्षत लेकर ध्यान करें। इसके बाद फूल अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें और चारो ओर छिड़कें। इसके बाद सभी मशीन व औजार आदि पर रक्षा सूत्र बांधे और प्रणाम करें। फिर भगवान को फल, मिष्ठान आदि का भोग लगाएं। साथ में पूरे संस्थान और मशीन, औजार आदि चीजों की भी आरती करें। पूजन में भगवान विष्णु का भी ध्यान करें और यज्ञ आदि का आयोजन करें। इसके बाद पूजा के स्थान पर रंगोली बनाएं और इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति की स्थापना करें. इसके बाद देसी घी का दीपक जलाएं और भगवान विश्वकर्मा को फूल चढ़ाएं. भगवान विश्वकर्मा के सामने हाथ जोड़कर इस मंत्र का जाप करें... ’ओम आधार शक्तपे नमः’, ’ओम कूमयि नमः’ और ’ओम अनंतम नमः’ इस मंत्र के जाप के बाद व्यापार से जुड़े उपकरणों, मशीनरी और स्पेयर पार्ट्स की पूजा करना न भूलें. जहां पूजा कर रहे हों, उस परिसर में हर जगह आरती लेकर जाएं और भोग सभी में वितरण कर दें। पूजा के बाद भगवान विश्वकर्मा से सफलता की कामना करें।लगाएं भोग, बरसेगी कृपा
मूंग दाल की खिचड़ी की सरल तैयारी के लिए केवल दो मुख्य सामग्रियों मूंग दाल और चावल की आवश्यकता होती है, जिन्हें नमक, हल्दी और मसालों के साथ पकाया जाता है. भगवान विश्वकर्मा को चढ़ाने से पहले खिचड़ी के ऊपर देसी घी डाला जाता है. हिंदू परंपरा में हर शुभ अवसर पर खीर बनाई जाती है. चावल को दूध के साथ पकाया जाता है; चीनी, इलायची और ड्राइ फ्रुट्स मिलाए जाते हैं. बूंदी के लड्डू एक लोकप्रिय प्रसाद है और इसे कई हिंदू देवताओं को चढ़ाया जाता है. बूंदी को बेसन के साथ तैयार किया जाता है और फिर चीनी की चाशनी में भिगोया जाता है जिसे बाद में लड्डू का आकार दिया जाता है. नारियल के लड्डू को कसा हुआ नारियल, गाढ़ा दूध, इलायची पाउडर और घी के साथ बनाया जाता है, और कटे हुए मेवों से सजाने से पहले, गेंदों का आकार दिया जाता है. पंचामृत दूध, दही, शहद, घी और चीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर बनाया जाता है. इसे आमतौर पर हिंदू धार्मिक समारोहों के दौरान भोग के रूप में पेश किया जाता है. गेहूं के आटे, चीनी, दूध और इलायची पाउडर को घोल में मिलाकर बनाया जाता है. फिर मालपुआ सुनहरा भूरा होने तक डीप फ्राई किया जाता है. फल केला और सेब जैसे फल हिंदू धर्म में पूजा समारोहों के दौरान भोग के रूप में लोकप्रिय रूप से उपयोग किए जाते हैं.
विश्वकर्मा सनातन धर्म के सबसे बड़े रक्षक
भगवान विश्वकर्मा जी देवताओं के शिल्पकार थे। इसलिए इन्हें शिल्प के देवता के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विश्वकर्मा सनातन धर्म के सबसे बड़े रक्षक थे। देवी-देवताओं के ऊपर जब भी संकट आया, जब भी असुरों से लड़ाई हुई या आसुरी शक्तियों का विनाश करना हुआ तो देवताओं को अस्त्र-शस्त्र भगवान विश्वकर्मा ने ही प्रदान किया। सभी जानते हैं कि बिना अस्त्र-शस्त्र के कोई भी लड़ाई नहीं जीती जा सकती। भगवान विश्वकर्मा ने न सिर्फ सृष्टि की सुंदर रचना की, बल्कि उसे बचाया भी है। विश्व को बनाने वाले विश्वकर्मा जी के पुराण महाविश्वकर्मपुराण के बीसवें अध्याय में राजा सुव्रत को उपदेश करते हुए शिवावतार भगवान कालहस्ति मुनि कहते हैं :-
ब्राह्मणाः कर्म्ममार्गेण ध्यानमार्गेण योगिनः।
सत्यमार्गेण राजानो भजन्ति परमेश्वरम्।।
ब्राह्मण अपने स्वाभाविक कर्मकांड आदि से (चूंकि वेदसम्मत कर्मकांड में ब्राह्मण का ही अधिकार है), योगीजन ध्यानमग्न स्थिति से और राजागण सत्यपूर्वक प्रजापालन से परमेश्वर की आराधना करते हैं।
स्त्रियो वैश्याश्च शूद्राश्च ये च संकरयोनयः।
भजन्ति भक्तिमार्गेण विश्वकर्माणमव्ययम्।।
स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा वर्णसंकर जन, (जो कार्यव्यवस्था एवं धर्मव्यवस्था के कारण कर्मकांड अथवा शासन आदि की प्रत्यक्ष सक्रियता से दूर हैं,) वे भक्तिमार्ग के द्वारा उन अविनाशी विश्वकर्मा की आराधना करते हैं। इन्हीं विश्वकर्मा उपासकों के कारण भारत का ऐतिहासिक सकल घरेलू उत्पाद आश्चर्यजनक उपलब्धियों को दिखाता है, क्योंकि इनका सिद्धांत ही राजा सुव्रत को महर्षि कालहस्ति ने कुछ इस प्रकार बताया है,
शृणु सुव्रत वक्ष्यामि शिल्पं लोकोपकारम्।
पुण्यं तदव्यतिरिक्तं तु पापमित्यभिधीयते।।
इति सामान्यतः प्रोक्तं विशेषस्तत्वत्र कथ्यते।
पुण्यं सत्कर्मजा दृष्टं पातकं तु विकर्मजम्।।
हे सुव्रत ! सुनिए, शिल्पकर्म (इसमें हजार से अधिक प्रकार के अभियांत्रिकी और उत्पादन कर्म आएंगे) निश्चित ही लोकों का उपकार करने वाला है। शारीरिक श्रमपूर्वक धनार्जन करना पुण्य कहा जाता है। उसका उल्लंघन करना ही पाप है, अर्थात् बिना परिश्रम किये भोजन करना ही पाप है। यह व्यवस्था सामान्य है, विशेष में यही है कि धर्मशास्त्र की आज्ञानुसार किये गए कर्म का फल पुण्य है और इसके विपरीत किये गए कर्म का फल पाप है। यही कारण है कि संत रैदास को नानाविध भय और प्रलोभन दिए जाने पर भी उन्होंने धर्मपरायणता नहीं छोड़ी, अपितु धर्मनिष्ठ बने रहे।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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