संपादकीय : काम और प्रगति जरुरी पर जीवन सर्वोपरि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 24 सितंबर 2024

संपादकीय : काम और प्रगति जरुरी पर जीवन सर्वोपरि

Anna-sebestian
ताजा मामला चर्चा में है। प्रतिष्ठित कंपनियों की सूची में शुमार वैश्विक सलाहकार कंपनी  "अर्नस्ट एंड यंग" (EY) के पुणे इकाई में कार्यरत रही एक युवा पेशेवर चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) 26 वर्षीय अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की विगत दिनों हुई असामयिक मौत बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है। हम काम और तरक्की के पीछे भागते हुए दरअसल जाना कहाँ चाह रहे हैं ,क्या हासिल करना चाह रहे हैं ?जिन कंपनियों के नाम,रुतबा और ग्लैमर के चक्रब्यूह में उलझ कर हम अपनी खुद की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे क्या वे भी हमारे लिए दिल से कुछ सोचती हैं?   सेमिनारों और कार्यशालाओं में लम्बे चौड़े लोकलुभावन वक्तव्यों से हर साल नैतिकता का पुरस्कार व प्रमाण पत्र हासिल करने वाली इन कंपनियों की नींव इतनी खोखली हैं कि ये अपने कर्मचारियों को इंसान नहीं समझ कर मशीन या रोबोट समझने लगी हैं। पेराइल की माँ का कहना हैं कि वह असीमित कार्य के बोझ से  परेशान थी और कई बार उसे कपडे़ बदलने तक की ताकत नहीं होती थी, ,इतना शारीरिक, मानसिक थकान और कार्य का बोझ उस पर हावी रहता था। कब ध्यान देंगे हम इन परेशानियों की तरफ ? नैतिकता का ढोल पीटने वाली EY जैसी संस्थानों में क्या इतनी भी नैतिकता नहीं बची थी कि प्रबंधन और सहयोगी इस नवांगतुक पेशेवर बच्ची के अंतिम संस्कार  में शामिल हो पाते।  सांत्वना के दो शब्द उसके माता पिता व परिवार से साझा कर पाते,कुछ दुख के हिस्से बांट पाते ? कौन सी पढ़ाई या परिवेश से आते हैं ऐसे  प्रबंधन के लोग और सहयोगी ?


बिज़नेस एथिक्स और प्रोफेशनल एथिक्स के साथ क्या ह्यूमन एथिक्स के चैप्टर नहीं पढ़ा इन्होंने ?  पेरायिल की माँ ने EY प्रबंधन को पत्र लिख कर उसके ऊपर हुए अत्याचार और अत्यधिक काम के बोझ डाले जाने का मुद्दा उठाया हैं लेकिन प्रबंधन ने चुप्पी साध रखी थीI पेरायिल की माँ ने EY शीर्ष प्रबंधन को पत्र लिख कर उसके ऊपर हुए अत्याचार और अत्यधिक काम के बोझ डाले जाने का मुद्दा उठाया हैं लेकिन प्रबंधन ने शुरुआत में कुछ भी टिप्पणी करने से बचना बेहतर समझा। क्या हम इन बातों पर ध्यान केंद्रित करेंगे कि हम ना बोलना सीख पाएं ,डरना छोड़ पाएं ,भविष्य के चक्कर में वर्त्तमान को बचाना सीख पाएं, अपने  स्वस्थ्य के प्रति ईमानदार हो पाएं ?


मात्र चार महीने की नौकरी में एक युवा पेशेवर की मौत हो जाए और आरोप  कंपनी के कामकाजी वातावरण पर लगे तो कंपनियों को सोचना होगा कि जो एथिक्स का रट वो लगते रहते हैं वह दरअसल हकीकत में  कहाँ पर लागू  हुआ हैं या हो रहा हैं ? पिछली बार EY ने अपने कर्मचारियों का हेल्थ चेकअप कब करवाया था? उनका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहे उसके लिए कार्यशाला या असेसमेंट कब करवाया था? कितना प्रेशर वह नए कर्मचारियों पर डाल रहे हैं ,उतना झेलने के लिए वो तैयार हैं या नहीं ,यह कब जांचा था? कब उन्हें "वर्क अंडर प्रेशर" के लिए तैयार रहने का प्रशिक्षण दिया था ? हालाँकि "ईवाई" कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन विभाग की सहायक निदेशक पुष्पांजलि सिंह ने "लाइव आर्यावर्त" को बताया कि कंपनी की तरफ से ऐसी परिस्थितियों में जो भी सहायता दी जा सकती है ,वह पूरी की गयी है और "ईवाई" पेरायिल की असामयिक निधन पर शोकाकुल है परन्तु मृतका की माता द्वारा "ईवाई" को लिखी गई चिट्ठी कुछ और ही बयां करती है।सच्चाई तो यह भी है कि कई कॉर्पोरेट कंपनियों ने इन महत्वपूर्ण बातों पर अब तक अमल नहीं किया है। निजी कंपनियों में काम के घंटे ही "तय" नहीं हैं। बड़ी कंपनियों में काम कर चुके कुछ पेशेवरों ने सामान्य बातचीत में बताया कि काम की अवधि समाप्त होने के बाद जब वे अपने घर के लिए निकलते हैं तो उनके वरिष्ठ ऐसे देखते या प्रतिक्रिया देते हैं जैसे वे कार्य समयावधि पूरी कर  कार्यस्थल छोड़कर  कोई अपराध कर रहे हैं। कुछ पेशेवरों विशेषकर नए रोजगार प्राप्त युवाओं ने स्पष्ट कहा कि कंपनी कर्मचारियों का उत्पीड़न करने में कोई मौका नहीं छोड़ती है, एथिक्स जैसे शब्द किताबों और भाषणों में ही सिमट कर रह जाता है। विश्व स्वस्थ्य संगठन और श्रम विभागों के मापदंड धरे रह जाते हैं । ध्यानार्थ यह भी कि अगर सचमुच कंपनियां कामगारों और मानव संसाधनों के प्रति ईमानदारी से सोचती हैं,उनका भला चाहती हैं तो फिर किसी भी छोटी सी मामूली गलती पर भी कंपनियां अपने कामगारों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने में एक मिनट भी क्यों नहीं सोचतीं?क्यों नहीं कंपनी के शीर्ष पर बैठे मठाधीश यह सोचते कि अचानक कार्यमुक्त किये जाने के परिणाम स्वरुप उस कर्मचारी के भरण पोषण का साधन क्या होगा,मकान का भाड़ा ,राशन,स्कूल की फीस, दवाई, ईएमआई आदि का खर्च वो कैसे पूरा करेगा?महिलाओं को प्रत्येक माह मिलने वाली "पीरियड लीव" के 'हर महीने के दिन' का हिसाब गिनने वाले अधिकारियों से आप किसी कर्मचारी की भलाई की उम्मीद तो कतई नहीं कर सकते ,नारे भले ही  नैतिकता का लगाते रहें। जरुरत है,तमाम मानव संसाधनों को सुरक्षित, स्वस्थ रखने की और यह काम किसी भी कंपनी का कोई अधिकारी या मालिक नहीं कर सकता,जागना स्वयं को ही होगा,चेतनता स्वयं में जगानी होगी,"वर्क लाइफ बैलेंस" के  मापदंड स्वयं तय करने होंगें। जीवन है तो तनाव भी आयेंगें ही, उन्हें संतुलित करने के लिए थोड़ा "रिलैक्स" रहने का हुनर सीखना होगा।संगीत ,आध्यात्म से 

 

जुड़िये,चलिए,दौड़िये,बातें कीजिये स्वयं से,मित्रों से,परिवार से,अपनों से, कोई परेशानी हो तो बताईये उन्हें जिन्हे आप उस योग्य समझते हों, क्योंकि कहते हैं कि "बात करने से ही बात बनती है।" याद यह भी रखना होगा कि कोई भी परेशानी आपके जीवन से बड़ी नहीं हो सकती I समस्या है तो समाधान भी है, बस धैर्य व संयम से रास्ते तलाशने होंगे। हम विशेषकर देश के तमाम युवाओं से आग्रह करना चाहते  हैं कि कोई भी परेशानी आपको अपने स्कूल ,कॉलेज,कार्यस्थल,संस्थान या  अन्यत्र महसूस हो तो उसे अपने घर परिवार ,माता-पिता,भाई-बहन ,सच्चे दोस्तों से साझा करें ,विचार करें, समाधान जरूर निकलेगा। याद रखना होगा कि ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है। कम्पनियों को भी अपने मानव संसाधनों को देश की अमूल्य धरोहर मानते हुए उनका पूरा ध्यान रखना होगा। पेरायिल की मौत को लेकर उठे विवाद के बाद ईवाई इंडिया के चेयरमैन राजीव मेमानी ने अंतत: खामोशी तोड़ते हुए पेरायिल के अंतिम संस्कार में कंपनी की तरफ से किसी के भी शामिल नहीं होने पर खेद प्रकट किया और भरोसा दिलाने की कोशिश की कि कार्यस्थल पर सौहार्द व सामंजस्ययुक्त माहौल स्थापित करना उनकी प्राथमिकता होगी I हम भी कंपनी के शीर्ष प्रबंधन से यही उम्मीद रखते हैं कि "कर्मचारी कल्याण"  सिर्फ नारा बन कर नहीं रहे ,सही मायनों ने वह चरितार्थ होता दिखे भी।


चाहे जितनी बड़ी कंपनी हो ,उन सभी कंपनियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की प्रगति और विकास का दुनिया भर में डंका बजाने का श्रेय इन्हीं कर्मचारियों, पेशेवरों, कामगारों को जाता है, इनका सर्व सम्मान करना हमारा सर्वोच्च  धर्म है।







विजय सिंह

वरिष्ठ पत्रकार 

(लेखक लाइव आर्यावर्त के प्रबंध संपादक हैं)

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