कविता : आंखों से टपकती है धारा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

कविता : आंखों से टपकती है धारा

आखिर क्यों? स्त्री की आंखों से टपकती है धारा?

लोगों ने जब उसपर जुल्म बहुत है ढ़ाया,

जाने क्यूं मर्दों ने उसे समझा है कमजोर,

और उसपर पौरुष का लगाया जोर,

कभी मारा, कभी दी गाली और कभी सताया,

क्यों घृणा की नजर से देखी जाती है औरत?

क्यों उसे कमज़ोर समझता है ये समाज?

देश बदला और दुनिया बदली, मगर,

बदली ना कभी औरत की काया,

आखिर क्यों, स्त्री की आंखों से टपकती है धारा?





Anjali-bharti-charkha-feature


अंजली भारती

मुजफ्फरपुर

चरखा फीचर्स

कोई टिप्पणी नहीं: