पीयूसीएल जाँच दल की रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि पीयूसीएल की जांच टीम पुलिस के बयान और विवरण से असंतुष्ट है. पुलिस द्वारा जांच टीम को बताई गई तमाम बातों, तर्कों और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मद्देनजर यह बात तो बिलकुल साफ है कि महादलित किशोरी फूलकुमारी ( काल्पनिक नाम) की निर्मम हत्या की गई और उसका शव बहुत बुरी हालत में पोखर से बरामद किया गया.पीड़िता की माता के द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कथित बलात्कार और बर्बरतापूर्ण हत्या के आलोक में पुलिस के द्वारा बलात्कार नहीं होने,प्रेम प्रसंग और ऑनर कीलिंग साबित करने से पीड़ित पक्ष मर्माहत है. महादलित पीड़ित पक्ष को सुरक्षा व न्याय की गारंटी शासन की प्राथमिकता होनी चाहिए. 18 अगस्त के बलवा की घटना की रौशनी में दर्ज दोनों प्राथमिकी बलवाईयों के उपद्रव के खिलाफ हैं. बावजूद इन प्राथमिकियों में आसपास के गांवों के रविदास समाज के निर्दोष नौजवानों को नामजद किया गया है.इससे लालू-छपरा सहित पड़ोस के 20 के किलोमीटर दायरे के रविदास समाज में दहशत का माहौल है.पारू थाना के थानाध्यक्ष और सरैया के एसडीपीओ की चूक (इरादतन) की वजह से बलवाईयों को तोड़फोड़ का मौका मिला.अगर पुलिस ने मृतक पीड़िता के घर के सामने सभा की अनुमति नहीं दी होती और समय रहते कार्रवाई की होती तो बलवाईयों को इस तरह मुख्य अभियुक्त और उस मुहल्ले के निर्दोष परिवारों पर हमला करने की हिम्मत नहीं हुई होती.जांच दल ने पाया कि पारू थाना की पुलिस और एसडीपीओ की भूमिका विधि-व्यवस्था को नियंत्रित करने में संदिग्ध रही है.
पीयूसीएल की अनुशंसा यह है
1. पीयूसीएल संबंधित दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए महादलित किशोरी की बलात्कार,निर्मम हत्या और बलवाईयों के द्वारा तोड़फोड़ के मामलों की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की मांग करता है.
2. पीयूसीएल मांग करता है कि प्राथमिकियों में दर्ज रविदास समाज के निर्दोष दलित नौजवानों का नाम आरोपी की सूची से हटा कर उन्हें तत्काल दोषमुक्त कर किया जाए.साथ ही शासन से इस बात की अपील करता है कि पारू के इर्दगिर्द रविदास जाति के किसी मुहल्ले पर बदले की भावना में कोई अप्रिय घटना नहीं हो. पीड़िता के परिवार को गरिमापूर्ण सुरक्षित जीवन की गारंटी राज्य सरकार की प्राथमिक जिम्मेवारी होनी चाहिए.
3. मुख्य अभियुक्त संजय राय के सहोदर निर्दोष भाई और चचेरे निर्दोष भाई के आवास का पुलिस के द्वारा कुर्की और बलवाईयों के द्वारा मकान ध्वस्त करना संज्ञान में आया है. इसलिए इस निर्दोष पीड़ित परिवार के 17 सदस्यों को तत्काल सरकारी संरक्षण में आश्रय मुहैया कराया जाए.निर्दोष परिवारों के साथ पुलिसिया कार्रवाई उनके मानवाधिकार के खिलाफ है.
4. 18 अगस्त की तोड़फोड़ की जांच कर विधि -व्यवस्था को कायम रखने में अक्षम दोषी पुलिस अधिकारियों के वेतन से पीड़ितों को मुआवजा दिलवाया जाए.बलवाईयों को पीछे से शह देने में किसी स्थानीय राजनेता की भूमिका की तहकीकात जरूरी है.इस बात को विशेष महत्व दिया जाए कि जातीय विभाजन रेखा को अगर अगले विधान सभा चुनाव के लिहाज से कोई मजबूत कर रहा है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो.
5. पीयूसीएल लालू-छपरा में मानवाधिकार की रक्षा के प्रति पुलिस की शिथिलता और बलवा उपरांत द्वेषपूर्ण -मनगढ़ंत प्राथमिकी की कार्रवाई को मानवाधिकार के विरुद्घ मानता है. लालू-छपरा के संपूर्ण रविदास मुहल्ले को डरा-धमकाकर जमीन कब्जाने की आशंका खतरनाक संकेत है.पुलिस के उच्च अधिकारी व शासन महकमा को इसे गंभीरता से लेना चाहिए.
6.मृतक महादलित के पीड़ित परिवार का भयाक्रांत होकर भूमिगत जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त होना स्त्रियों व महादलितों की सुरक्षा के प्रति राज्य की असंवेदनशीलता को स्पष्ट करता है.राज्य महिला आयोग,पुलिस के कमजोर वर्ग ,राज्य बाल आयोग को ऐसे मामलों में ज्यादा सजग और सतर्क रहने की दरकार है.पीयूसीएल के महासचिव सरफराज ने जारी किया है.
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