- मां के दर्शन को जागा पूरी काशी, भक्तों ने शक्ति को किया नमन, मां के एक झलक पाने को बेताब रहे श्रद्धालु
- निर्मल-शास्वत, उत्सवी रंग में डूबा, सतरंगी रोशनी में नहाया काशी का चप्पा-चप्पा, धूप-नवेद सुगंधित वातावरण, ढोल-ढाक, करताल के बीच मंत्रों से गुंजायमान गली-कूचा
वाराणसी (सुरेश गांधी)। अद्भूत व अलौकिक काशी में जगत जननी आदिशक्ति माता दुर्गा पूजा की धूम है। शुक्रवार को दुर्गापूजा घूमने आएं श्रद्धालुओं की भीड़ ऐसी सड़क पर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह बंद थी, बावजूद इसके लोगों के हुजूम से सड़क पटा था।, सृष्टि की देवी, त्रिनेत्र धारणी मां जगदंबा की भक्ति में शहर का लीन-तल्लीन है। मइया के चरणों पर रखे ज्वार अंकुरित होकर प्रष्फुटित हो चुके है, तो मां के दर्शन के लिए भक्तों की उत्कंठा भी हिलोरे मारती रही। पूरे शहर में कौतूहल, भवानी के दर्शन में कहीं पीछे न छूट जाय, हर कदम बरबस पूजा पंडालों की ओर, भक्तों का कारवां हरपल बढ़ता रहा। सूरज ने रास्ता बदला, शाम ढली, तो फिर भक्तों का रेला जैसे निकल पड़ा।
शहर के पूजा पंडाल एक से बढ़कर एक कहीं भारतीय संस्कृति की झलक तो कहीं भारतीय वास्तु कला का अद्भूत नजारा तो कहीं पौराणिक विरासत को याद कराती कलाकृति, इनकी भव्यता, सुंदरता ऐसी की हर कोई निहारता ही रह गया। कलाकारों की दक्षता-क्षमता पर इतराते लोग, बच्चों को कलाकृति की गुत्थियां समझाते बुजुर्ग, हर कदम पूजा पंडाल के पास जाकर ठीठक जाते। रातभर शहर गुलजार रहा। शाम हो या आधी रात, मेले की रौनक बनी रही। देवी दर्शन को सड़कों पर रेला लगा रहा। पूजा पंडालों के अंदर जितनी भीड़ थी, बाहर उससे ज्यादा लोग दर्शन को आतुर थे। कोई खरीदारी में मग्न, कोई खाने-पीने में तो काई माता की एक झलक पाने के लिए बेताब। गहराती शाम संग रंगीन लाइटों से सजा पूजा पंडाल व आस-पास का माहौल भी जगमगा उठा। पूजा पंडाल की खूबसूरती व भव्यता के साथ मां की प्रतिमा को भी लोग देर तक निहारते नजर आए। आरती की, प्रसाद चढ़ाया और ढेर सारा आर्शीवाद लेकर एक ओर लोग जाते रहे तो दूसरी ओर नए लोग जुटते रहे। यही सिलसिला देर रात तक चलता रहा। सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वेशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्रहि नो देवि दुर्गे देवि नमोùस्तुते।। शारदीय नवरात्र के नौवें दिन शहर हो या देहात देश के कोने कोने में दुर्गोत्सव का उल्लास, भक्ति और आराधना के रुप में प्रकट हो रहा है। आस्था का सैलाब सड़कों पर दिखा। सबके चेहरे पर उल्लास और उत्साह। पंडालों में विराजमान आदि शक्ति जगत जननी मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने सबके सब कतारबद्ध खड़े दिखे। भक्तों ने माथा टेक मां से सुख, शान्ति व समृद्धि की कामना की। बच्चों की खिलखिलाहट उत्सव को और उल्लासपूर्ण बना रहा है। चारों तरफ माता के भजनों की गूंज है।
सुबह देवी के पट खुलते ही दर्शन के लिए पंडालों में श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरु हुआ तो अख्खी रात तक थमा ही नहीं। लोग पूरे परिवार के साथ देवी दर्शन को सड़कों पर निकल पड़े। श्रद्धालु एक पंडाल से दूसरे पंडाल तक देवी दर्शन के लिए घूमते रहे। साथ ही पूजा-अर्चना कर हर साल की तरह उनसे अपने परिवार की खुशहाली के जिए आशीष मांगा। बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था। मां अंबे के जयघोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया था। मूर्तिकारों द्वारा जीवंत तरीके से पेश की गई प्रतिमाएं व पंडाल लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। घूमने आए लोगों ने इसकी खूब सराहना की। युवा काफी उत्साहित दिखे सभी पंडाल और प्रतिमा के साथ अपनी तसवीर खींच रहे थे। धूम-धड़ाके नाच-गाने के बीच मां के जयकारे गूंज रहे है। हाल यह रहा कि रौनक, रौशनी और भक्ति का ऐसा रंग काशी के कण-कण में ऐसे रच बस चुका है जो देखते ही बन रहा है। कहीं मां दुर्गा की प्रतिमा अनोखी है तो कहीं उनका साजो-श्रृंगार, लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसे भी पंडाल हैं जो न केवल पूजा-पाठ, सजावट के तौर पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं बल्कि समाज में फैली बुराइयों का एक दर्पण दिखाकर लोगों को एक सामाजिक संदेश भी देने का काम कर रहे हैं। गली-मोहल्लों में ढाक के डंके गूंज रहे है। शाम ढलते ही साज-सज्जा के रूप में त्योहार के इंद्रधनुषी रंग शहर की सड़कों गलियों में बिखर गए। मां विन्ध्यवासिनी धाम हो या काशी के माता मंदिर या फिर अन्य देवी मंदिर सब जगह भक्तों का अंबार लगा है। रात की रोशनी दिन के उजाले को फीका कर रही है। चारों ओर लोग मां दुर्गा की भक्ति में डूबे हुए नजर आ रहे है।
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