क्या लिखूं कहानी अपनी,
न अच्छी है और न बुरी है,
बहुत मुश्किलों से हूं ढली,
बस शुरू यही कहानी है,
कभी सूरज उग रहा है और,
कभी है कि शाम ढल रही है,
बस अपनी भी उम्र बढ़ रही है,
न जाने लोगो ने भी क्या सोचा है,
बस अपनी तो कहानी ऐसी ही है,
कभी घर की चारदीवारी में कैद हूं,
कभी लोगों की गंदी सोच से डरी हूं,
लगा किसी लोहे की जंजीरों से घिरी हूं,
क्या लिखूं कहानी कोई और अपनी,
न अच्छी है और न बुरी है,
बस ख़त्म यही एक कहानी है अपनी।।
पिंकी अरमोली
गरुड़, बागेश्वर,
उत्तराखंड
चरखा फीचर्स
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